लेखक गांव //थानो//देहरादून
कभी माल की मंडी के नाम से मशहूर था देहरादून जिले का गांव थानों। यहां से नेपाल और तिब्बत तक व्यापार होता था।
समय ने करवट बदली और यह प्रसिद्ध माल की मंडी धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खो बैठी और आज उन अधिकांश *व्यापारियों के आवास खंडहरों में तब्दील हो गए।*
थानो निवासी श्री गोपीचंद मित्तल जी ने एक मुलाकात के दौरान बताया कि थानों पहले प्रमुख व्यापारिक केंद्र था। दूर – दराज के क्षेत्र से लोग अपनी उपज इस बाजार में लाते थे और यहां से दैनिक उपयोग की वस्तुएं ले जाते थे। उस समय अधिकांश व्यापार घोड़े और खच्चरों के द्वारा किया जाता था। यहां के व्यापारियों के अपने घोड़े और खच्चर भी रहते थे जिससे व्यापार में मदद मिलती थी। धीरे-धीरे लोग यहां से बड़े शहरों की ओर निकलने लगे और यह बाजार समाप्त हो गया।
थानों के व्यापारियों ने यद्यपि बहुत उन्नति की है और वह आज बड़े-बड़े शहरों में अपने प्रतिष्ठान चला रहे हैं। *श्री गोपीचंद मित्तल जी ने बताया कि* उनके पूर्वज बहुत लंबे समय तक व्यापार करते रहे और अच्छा मुनाफा कमाया। श्री मित्तल जी ने बताया कि थानों के व्यापारियों ने थानो क्षेत्र के विकास के लिए भी बहुत कार्य किए। उन्होंने जमींदार सेठ सुमेरचंद जी का जिक्र करते हुए बताया कि थानों में अधिकांश भूमि सेठ सुमेंरचंद जी की ही थी क्योंकि वह जमींदार थे। सेठ सुमेरचंद जी सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी करते थे। सेठ सुमेरचंद जी भी थानो के ही प्रसिद्ध व्यापारी थे। श्री गोपीचंद मित्तल जी ने बताया कि *थानों आजादी के आंदोलन के समय क्रांतिकारियों का केंद्र भी था। वैद्य सैनपाल सिंह जी, पदम सिंह जी, भूरिया सिंह मनवाल जी, गौरीश वर्मा जी, रामेश्वर भट्ट जी सहित असंख्य लोगों का आजादी के लिए रणनीति बनाने का केंद्र भी थानों ही था।*
भारत हैवी इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड हरिद्वार से सेवानिवृत्त हुए श्री गोपीचंद मित्तल जी 71 वर्षीय वे शख्स हैं जिन्हें थानों क्षेत्र के बारे में प्रामाणिक जानकारी है। *मित्तल जी* बताते हैं कि एक बार टिहरी नरेश ने *उनके दादाजी के 40 खच्चर रजवाड़े की लड़ाई के समय ले लिए थे और बाद में उनकी कीमत भी नहीं चुकाई थी।*
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