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“ढलती शाम का दर्पण: कैमरे की आँखों से प्रकृति की मौन कथा”

ऋषिकेश(अंकित तिवारी):शाम का समय सदियों से साहित्य, कला और संगीत में प्रेरणा का स्रोत रहा है। एक शोधार्थी के दृष्टिकोण से देखी जाए तो यह समय केवल सुंदरता का प्रतीक नहीं, बल्कि आत्मनिरीक्षण, विचारशीलता और नई अंतर्दृष्टियों का उद्घाटन भी है। शिखा मोरंग, एक युवा शोधार्थी, ने इसी प्रेरणा को अपने कैमरे में समेटते हुए सूरज की अंतिम किरणों को कैद किया है। उनकी इस तस्वीर में न केवल सूर्यास्त का सौंदर्य है, बल्कि एक विदाई का अद्भुत आभास भी है।

शिखा की फोटोग्राफी में प्रकृति के प्रति उनकी संवेदनशीलता और समझ स्पष्ट दिखाई देती है। वे उस क्षण को कैमरे में संजोने का प्रयास करती हैं, जब दिन धीरे-धीरे रात में परिवर्तित हो रहा होता है। यह समय महज एक क्षणभर की अनुभूति नहीं, बल्कि जीवन के अनिश्चितता और निरंतरता को प्रतिबिंबित करता है।

शिखा ने इस दृश्य को जिस कुशलता से कैमरे में कैद किया है, वह शोधार्थियों के भीतर की कल्पनाशक्ति और उनकी निरीक्षण क्षमता का प्रतीक है। यह तस्वीर दर्शकों को उन अनदेखे पहलुओं की ओर आकर्षित करती है, जिन्हें अक्सर हम अपनी व्यस्त दिनचर्या में अनदेखा कर देते हैं। यह हमें यह भी स्मरण कराती है कि कैसे एक सच्चा कलाकार या शोधकर्ता प्रकृति की सूक्ष्मताओं में भी गहरी अंतर्दृष्टि प्राप्त कर सकता है।

सूर्यास्त की इस छवि में वह विश्राम और शांति है, जो हमें याद दिलाती है कि हर दिन के अंत में हमें अपने विचारों को व्यवस्थित करने, और अपनी आत्मा को विश्राम देने का समय भी चाहिए। शिखा की इस तस्वीर के माध्यम से न केवल एक दृश्यात्मक आनंद मिलता है, बल्कि यह हमें अपने जीवन के प्रति एक नई दृष्टि देने का प्रयास भी करती है। इस प्रकार की फोटोग्राफी न केवल कला का उदाहरण है, बल्कि शोध के क्षेत्र में भी एक नवीन दिशा का परिचायक है।

शिखा मोरंग की यह तस्वीर हमें यह सिखाती है कि कैसे एक शोधार्थी अपने संवेदनशील दृष्टिकोण के साथ कला और विज्ञान को जोड़ सकता है, और एक सुंदर, प्रेरणादायक, और ध्यान आकर्षित करने वाला अनुभव प्रस्तुत कर सकता है।

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