देहरादून(अंकित तिवारी): साहित्य, संस्कृति और समाज में परिवर्तन की बयार लाने वाली रचनात्मक अभिव्यक्तियाँ सदैव समय के साथ नए आयाम खोलती हैं। जब कोई पत्रिका अपनी यात्रा आरंभ करती है, तो वह न केवल शब्दों का संकलन होती है, बल्कि वह विचारों, भावनाओं और सृजनात्मक ऊर्जा का प्रतिबिंब भी होती है। इसी क्रम में, साई सृजन पटल मासिक पत्रिका ने अपनी निरंतरता के सातवें अंक तक का सफर तय किया है। इस गौरवपूर्ण अवसर पर, पद्मश्री कवि लीलाधर जगूड़ी का मार्गदर्शन और शुभकामनाएँ न केवल पत्रिका के लिए, बल्कि समस्त साहित्य जगत के लिए प्रेरणास्पद हैं।
सृजनशीलता की अनवरत धारा
कवि लीलाधर जगूड़ी ने पत्रिका का अवलोकन करते हुए कहा कि “सृजन हमेशा मौलिकता की खोज में लगा रहता है, जैसे एक अंधेरी रात के बाद वही अस्त हुआ सूरज नया होकर नया दिन पैदा करता है”—हमारी रचनात्मकता के मूल स्वभाव को परिभाषित करता है। सृजन कभी ठहरता नहीं, वह सतत प्रवाहित रहता है, जैसे कोई नदी अपने तटों को गढ़ती हुई आगे बढ़ती जाती है।
समय, सृजन और भविष्य की संभावनाएँ
पद्मश्री कवि लीलाधर जगूड़ी ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि “समय हमें पुराना नहीं होने देता, नई तिथि नई गति से हमें अपनी ऊर्जा को जानने-पहचानने की शक्ति प्रदान करती है”—एक महत्वपूर्ण संदेश है। सृजनशीलता का मूल आधार ही नवीनता है। जब सृजन पटल जैसी पत्रिकाएँ साहित्यकारों को मंच प्रदान करती हैं, तो वह केवल लेखन को नहीं, बल्कि विचारों की गति को भी दिशा देती हैं।
आज के युग में, जब लेखन और प्रकाशन के स्वरूप बदल रहे हैं, तब भी पत्रिकाएँ एक सशक्त माध्यम बनी हुई हैं, जो साहित्य के सार्थक विमर्श को जीवंत बनाए रखती हैं। सृजन पटल पत्रिका ने अपने अल्पकालिक सफर में ही यह सिद्ध कर दिया है कि वह न केवल साहित्यकारों के लिए एक मंच है, बल्कि वह उन विचारों का भी संकलन है, जो समाज को नई दृष्टि देने में सक्षम हैं।
सृजन पटल: नाम में छिपा दर्शन
“पटल” शब्द की व्युत्पत्ति पर चर्चा करते हुए जगूड़ी ने इसे पाषाण काल से जोड़ते हुए आधुनिक समय के “कागज के पृष्ठ” का प्रतीक बताया। यह संकेत करता है कि लेखनी की परंपरा उतनी ही पुरानी है जितना स्वयं मानव सभ्यता का इतिहास। संस्कृत में “पाटल” शब्द गुलाब की कोमलता को दर्शाता है, जिससे हृदय पटल, मानस पटल जैसे शब्दों की उत्पत्ति हुई। ऐसे में, सृजन पटल नाम स्वयं ही साहित्यिक संवेदनाओं और रचनात्मक ऊर्जा का प्रतीक बन जाता है।
नवीन प्रवेश द्वार की ओर…
कवि लीलाधर जगूड़ी ने अपने संदेश में यह शुभकामना व्यक्त करते हुए कहा है कि “आने वाला समय, नया प्रवेश द्वार खोलने वाला सिद्ध हो।” यह कथन न केवल पत्रिका के लिए, बल्कि संपूर्ण साहित्यिक जगत के लिए एक प्रेरणा है। जब कोई नया साहित्यिक मंच स्थापित होता है, तो वह केवल विचारों का आदान-प्रदान नहीं करता, बल्कि वह उन लेखकों को भी उभरने का अवसर देता है, जिनके शब्द समाज में परिवर्तन की चेतना ला सकते हैं।
साई सृजन पटल का यह सातवाँ अंक इस दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम है। संपादक प्रो. (डॉ.) के.एल. तलवाड़, उपसंपादक अंकित तिवारी, सह संपादक अमन तलवाड़ सहित संपूर्ण संपादकीय मंडल की यह प्रयासशीलता सराहनीय है कि वे साहित्यिक यात्रा को आगे बढ़ा रहे हैं और सृजन की ऊर्जा को निरंतर प्रवाहित कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि सृजनशीलता की इस अनवरत धारा के साथ, हम यह आशा करते हैं कि साई सृजन पटल पत्रिका आने वाले समय में साहित्यिक नवाचार का एक सशक्त मंच बनेगी और लेखनी की शक्ति से समाज को नई दिशा देने में सफल होगी।
इस अवसर पर पत्रिका के संपादक प्रो० (डॉ०) के० एल० तलवाड़ ने कहा कि साई सृजन पटल पत्रिका का यह सतत प्रयास रहा है कि वह अपने पाठकों को केवल विचारों की अभिव्यक्ति तक सीमित न रखे, बल्कि उन्हें सृजन की आकांक्षा से भी जोड़े। साहित्य और लेखनी का वास्तविक उद्देश्य यही होता है कि वह समाज में बौद्धिक जागरूकता लाए और संवेदनाओं को जीवंत बनाए। इस दिशा में, पत्रिका का यह नया अंक साहित्यिक नवाचार और विचारशीलता की नई संभावनाएँ प्रस्तुत करता है।