लेखक: अंकित तिवारी
धरती, जिसे हम अपनी मातृभूमि मानते हैं, आज कई संकटों का सामना कर रही है। यह संकट केवल पर्यावरणीय नहीं है, बल्कि हमारे अस्तित्व के लिए भी गहरी चिंता का विषय बन चुका है। जल, जो जीवन की सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है, आज संकट के दौर से गुजर रहा है। “जल है तो कल है”—यह कोई मात्र नारा नहीं है, बल्कि हमारी सभ्यता और धरती के भविष्य की सबसे सच्ची और गहरी चेतावनी है। जल के बिना न जीवन संभव है, न ही विकास। इस पृथ्वी दिवस पर, जब हम अपने पर्यावरण और धरती की रक्षा की शपथ लेते हैं, हमें यह समझना होगा कि जल का संरक्षण न केवल एक जिम्मेदारी है, बल्कि हमारे अस्तित्व की आवश्यकता भी है।
उत्तराखंड, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता, नौलों, धारों, तालाबों और छोटी नदियों के लिए प्रसिद्ध है, आज जलविहीनता की ओर बढ़ रहा है। यह प्रदेश सदियों से अपनी जल संसाधनों पर निर्भर रहा है, लेकिन जलवायु परिवर्तन, अतिक्रमण, शहरीकरण, और अन्य मानवीय गतिविधियों के कारण उत्तराखंड के जल स्रोतों पर संकट गहरा गया है। उत्तराखंड की जलवायु विशेष रूप से संवेदनशील है। यहाँ के नौल, तालाब, धारें और छोटी नदियाँ वर्षों से जीवनदायिनी बनकर लोगों की जरूरतों को पूरा करती आ रही थीं, लेकिन अब ये जल स्रोत सूखने की कगार पर हैं।
स्प्रिंग एंड रिवर रिज्युविनेशन अथॉरिटी (सारा) की रिपोर्ट 2024 के अनुसार, उत्तराखंड में 5179 प्राकृतिक जल स्रोत और 206 नदियाँ विलुप्ति के कगार पर हैं। यह आंकड़े केवल समस्या की सतह को दर्शाते हैं, जबकि वास्तविकता इससे कहीं अधिक गंभीर है। जलवायु परिवर्तन और मानवीय हस्तक्षेप ने राज्य के पारंपरिक जल स्रोतों को प्रभावित किया है। जल स्रोतों की कमी का सबसे अधिक प्रभाव पहाड़ी क्षेत्रों के निवासियों पर पड़ा है, क्योंकि वहाँ पानी की आपूर्ति पहले से ही सीमित थी। पानी का अभाव न केवल पीने के पानी की समस्या पैदा कर रहा है, बल्कि कृषि, उद्योग और अन्य जीवनरक्षक कार्यों के लिए भी जल की कमी हो रही है।
जल केवल प्यास बुझाने का साधन नहीं है, बल्कि यह जीवन के हर पहलू से जुड़ा हुआ है। कृषि, स्वास्थ्य, जैव विविधता, और पर्यावरण—इन सभी में जल का महत्वपूर्ण स्थान है। उत्तराखंड के ग्रामीण इलाकों में जल स्रोतों के सूखने से न केवल पानी की समस्या बढ़ी है, बल्कि कृषि की उत्पादन क्षमता भी घट गई है। जल संकट के कारण किसान परेशान हैं, क्योंकि उनके पास पर्याप्त पानी नहीं है, जिससे उनकी फसलें सूख रही हैं और आर्थिक नुकसान हो रहा है। यह केवल एक आर्थिक समस्या नहीं है, बल्कि समग्र जीवन प्रणाली के लिए भी खतरनाक है।
जब जल संकट बढ़ता है, तो उसका सीधा प्रभाव पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ता है। जब पानी की कमी होती है, तो जंगलों में जीवों का जीवन संकट में पड़ जाता है, और शहरीकरण के साथ-साथ जल स्रोतों का अतिक्रमण एक बड़ा संकट बन गया है। पशुओं के लिए पीने का पानी, पक्षियों के लिए जल स्रोत, और जंगलों के लिए नदियों और जलस्रोतों का महत्व नकारा नहीं जा सकता। जब जल स्रोत सूखते हैं, तो यह जैव विविधता को प्रभावित करता है, और अनेक प्रजातियाँ खतरे में पड़ जाती हैं।
हमारे लिए यह समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि जल का संकट केवल प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि मानवीय गतिविधियों का परिणाम है। जलवायु परिवर्तन, जंगलों की अंधाधुंध कटाई, और जल स्रोतों का अतिक्रमण इसके प्रमुख कारण हैं। इन समस्याओं का समाधान केवल सामूहिक प्रयासों से ही संभव है। जल संकट का समाधान सिर्फ सरकार या वैज्ञानिकों के हाथ में नहीं है, बल्कि प्रत्येक नागरिक को भी जल संरक्षण में अपनी भूमिका निभानी होगी।
हमें पारंपरिक जल स्रोतों की मरम्मत और संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करना होगा। उत्तराखंड के नौलों, धारों, तालाबों और गाड़-गदेरों की पुनः देखरेख की आवश्यकता है। इन जल स्रोतों का संरक्षण और पुनर्जीवन जल संकट को कम कर सकता है। इसके साथ ही, वृक्षारोपण के माध्यम से जल चक्र को बनाए रखने में मदद मिल सकती है। जल के पुनर्चक्रण और वर्षा जल संचयन के उपायों को बढ़ावा देना भी आवश्यक है।
इसके अलावा, जल संरक्षण के लिए शिक्षा और जागरूकता बढ़ाना भी महत्वपूर्ण है। हमें स्कूलों, कॉलेजों और पंचायतों के स्तर पर जल संरक्षण के महत्व को समझाना होगा। समुदायों को जल प्रबंधन में भागीदार बनाना जरूरी है। जब लोग अपने जल स्रोतों के महत्व को समझते हैं और उनका संरक्षण करते हैं, तो जल संकट का समाधान अधिक प्रभावी तरीके से हो सकता है।
पृथ्वी दिवस केवल एक दिन मनाने का अवसर नहीं है, बल्कि यह हमें जल के महत्व को समझने और उसके संरक्षण के लिए संकल्प लेने का दिन है। यदि हमें आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ और समृद्ध पर्यावरण छोड़ना है, तो हमें जल को एक अमूल्य संसाधन समझना होगा। जल का संरक्षण केवल हमारे लिए नहीं, बल्कि धरती की हर जीवित प्रजाति के लिए आवश्यक है।
आज के इस पृथ्वी दिवस पर, हम सभी यह संकल्प लें कि हम जल को बचाने के लिए सक्रिय कदम उठाएंगे और उसे व्यर्थ नहीं बहने देंगे। जल संकट की ओर बढ़ते कदमों को रोकने के लिए हमें मिलकर कार्य करना होगा, क्योंकि जल है तो कल है। जल हमारे जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है, और इसे बचाना ही हमारे भविष्य को बचाने का सबसे महत्वपूर्ण कदम होगा।
जल है तो कल है!