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जमीनी संघर्ष से शिक्षा के शिखर पर एन. सी. ई. आर. टी. निदेशक प्रो. दिनेश प्रसाद सकलानी

नई दिल्ली

देश-दुनिया के संघर्षमयी व्यक्तियों के अभावग्रस्त जीवन के संघर्षों को देखें तो स्पष्ट होता है कि उनकी ख्याति की ऊंचाई की जमीन का आधार ही उनका संघर्ष रहा है। दुनिया को खूबसूरती देने में ऐसे जमीनी नायकों का अपना इतिहास है. गाँव की एक ऐसी प्रतिभा जिनका जीवन संघर्ष, धूल-माटी में मेहनत मजदूरी में खूब रहा, तब पहाड़ के गांवों में पढ़ने लिखने के लिए रोशनी भी कहाँ उपलब्ध थी। पहाड़ पर लालटेन, लम्पू, छिलकों में किताबों के अक्षर ढूँढे। अपने जमीनी जीवन संघर्ष की संघर्षमयी यात्रा से आज देश की सर्वोच्च अकादमिक संस्था एनसीईआरटी के निदेशक हैं। गाँव की माटी एवं हिमालयी राज्य उत्तराखण्ड अपने ऐसे शैक्षिक शिखर प्राप्त सपूत पर गर्व करता है।

प्रो.दिनेश प्रसाद सकलानी का जन्म 1 जनवरी, 1963 को ग्राम- पुजारगांव पो.जाड़गाँव, सकलाना, टिहरी गढ़वाल में निम्न मध्यमवर्गीय परिवार में माताजी स्व.श्रीमती चन्द्रमा देवी एवं पिताजी स्व.श्री चन्द्रदत्त सकलानी जी के यहाँ हुआ था। बालपन से होनहार होने के कारण उन्हें अपने गुरूजनों का अपार स्नेह मिला. उनकी पढ़ाई-लिखाई रा.इ.का.पुजारगाँव से हुई. पुजार गांव स्कूल में तब सेवारत हिन्दी के शिक्षक आज सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य श्री महावीर प्रसाद बडोनी जी, जो व्यवस्था वादन पर कक्षा सात में गणित पढ़ाने गए थे. वे स्वयं गणित विषय के अच्छे जानकार हैं। उन्होंने ब्लैक बोर्ड पर कक्षा सात की गणित का एक प्रश्न हल किया और फिर दूसरा प्रश्न क्लास के विद्यार्थियों को दिया. जिसे तुरंत ही उनके शिष्य दिनेश प्रसाद सकलानी ने सही कर दिया. यहीं से गुरू शिष्य की बौद्धिक आत्मीयता का संगसाथ मिला जिनके आशीर्वाद से उन्होंने एकीकृत छात्रवृत्ति परीक्षा उत्तीर्ण की।

स्कूल के होनहार विद्यार्थी होने के कारण कक्षा नौंवी में वे विज्ञान वर्ग के साथ पढ़ाई करना चाहते थे, ऐसा ही सभी गुरूजन भी चाहते थे किंतु उनके पिताजी बिल्कुल भी नहीं चाहते थे कि वे विज्ञान वर्ग में पढ़ाई करें. अंततः पिता की इच्छा के अनुरूप मानविकी वर्ग से पढ़ाई की। कक्षा 10वीं में उन्होंने मण्डल (तब यह पर्वतीय क्षेत्र उत्तर-प्रदेश का हिस्सा था, जो अब उत्तराखण्ड है) टॉप किया. अपने संबोधन में NCERT निदेशक बनने के बाद उन्होंने अपना संस्मरण याद करते हुए कहा संभवतः पिताजी की तब की जबरन चाहत अपनी पारम्परिक सोच के कारण अधिक सार्थक भले न रही हो किंतु आज यह सार्थक रूप में मुझे महसूस होती है।

अटल आदर्श उत्कृष्ट राइका पुजार गाँव,सत्यों सकलाना में स्वतंत्रता दिवस समारोह में अपने संबोधन में प्रो.सकलानी जी ने स्कूली दिनों को याद करते हुए अभिव्यक्त किया। उस समय की टाटपट्टी वाली क्लास भले अब यहाँ न दिखे किंतु एहसास तो मुझे आज भी करवाती है. यहीं से कक्षा की धूल माटी में मैं पढ़ा हूँ. उन्होंने अपने व्याख्यान में कहा मैंने अपने समर्पित गुरूजनों के मुख से सुना था कैम्ब्रिज, ऑक्सफोर्ड, इरादा शिक्षा में बौद्धिकता के साथ निष्ठा का था फिर देर कहाँ? दोनों विश्व स्तरीय विश्वविदयालयों के प्रोफेसरों के साथ मिलकर शैक्षिक संवाद एवं शोधकार्य करने का अवसर भी मिला। सरकारी स्कूल की माटी, पाटी और टाटपट्टी दुनिया के शैक्षिक शिखरों को नाप लायी. आज एनसीईआरटी निदेशक के रूप में विश्व के तमाम देशों से उनके शैक्षिक एवं शोधात्मक विषयों पर संवाद होना अब सामान्य बात है। अपने गरीबी के दिनों को याद किया किंतु गरीबी कभी प्रतिभा पर भारी नहीं पड़ी.बशर्त हौसलों की उड़ान मजबूत हो। माँजी-पिताजी ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे किंतु ऐसे संस्कार मुझे दिए जिस पर मैंने अपने समर्पण से ऊँची शैक्षिक मंजिल खड़ी की।

अभावग्रस्त मार्ग से आगे बढ़े हैं फलतः वे अभावग्रस्त विद्यार्थियों के शैक्षिक प्रोत्साहन के साथ आर्थिक सहयोग भी करते हैं। बालपन की अपनी पाठशाला के प्रतिभाशाली बच्चों को प्रतिवर्ष अपनी माता जी स्वर्गीय श्रीमती चन्द्रमा देवी जी की स्मृति में विगत वर्षों से चार प्रतिभाओं को छात्रवृत्ति एवं शैक्षिक प्रोत्साहन देते आ रहे हैं. वर्ष 2021 में पिताजी स्व.श्री चंद्र दत्त सकलानी जी की स्मृति में पहली बार शैक्षिक प्रतिभावान छात्रवृत्ति देनी प्रारम्भ की. मेरे बेटे मयंक कुदवान ने राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय प्रतिभा खोज परीक्षा ( N.T.S.Exam-2020) में देश के चयनित 2000 प्रतिभाओं में स्थान पाया। अतः प्रोफेसर सकलानी ने धनराशि 5100/ रूपये की प्रतिभा प्रोत्साहन राशि प्रदान करते हुए उसे आशीर्वाद दिया. जो अब IIT गुवाहाटी में कम्प्यूटर सांइस में अध्ययनरत है. प्रो.सकलानी के स्नेह आशीष एवं शिक्षा की गहनता से विद्यार्थी एवं लोक समाज फलिभूत हो रहा है।
मध्य प्रदेश P.C.S में चयनित होने के बाद भी उन्होंने उच्च शिक्षा में सेवा देना अधिक सार्थक माना. जो निसंदेह एक अच्छा निर्णय था। मई 1991 से 2022 तक का सेवाकाल प्रो.सकलानी का हेमवंती नंदन केन्द्रीय गढ़वाल विश्वविद्यालय रहा। इतिहास विषय के प्रोफेसर के रूप में उनके शोधात्मक कार्य उल्लेखनीय है। अकादमिक कार्यो के अतिरिक्त प्रशासनिक कार्यों में भी प्रभावशाली सुधारात्मक भूमिका दी। चीफ प्रोक्टर एवं कैम्पस निदेशक आदि के दायित्व निर्वहन में विश्वविदयालय में प्रशंसनीय एवं उल्लेखनीय कार्य किए।

अपने शोध निर्देशन में 15 विद्यार्थियों को डी.फिल करवा चुके है। उत्तराखण्ड हिमालयी ऐतिहासिकता के विभिन्न पक्षों पर 6 पुस्तकें प्रकाशित है एवं तीन पुस्तकें प्रकाशाधीन हैं। विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में व्याख्यान दे चुके हैं। लगभग बयालीस से अधिक देशों की शैक्षिक एवं शोधात्मक संवाद दे चुके हैं। 60 से अधिक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं में शोध पत्र भारतीय इतिहास एवं संस्कृति पर प्रकाशित कर चुके हैं. जर्मनी के हेडलवर्ग विश्वविद्यालय की एक वृहद शोध परियोजना के लिए उन्होंने प्रो.विलियम सैक्स के साथ कार्य किया. अपनी अध्ययन अभिरूचि एवं शोधात्मक अप्रौच से भारतीय उच्चतर शिक्षा संस्थान, शिमला में राष्ट्रीय अध्येतावृत्ति के लिए गौरवपूर्ण उपलब्धि प्राप्त कर चुके हैं। उत्तराखण्ड हिमालयी लोक पारम्परिक चिकित्सा पर उनका मौलिक कार्य यहां के पारम्परिक वैद्य, गारूड़ी, आयुर्वेदाचार्यों की ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षित करता हैं. रामायण के संदर्भ में भी उनका मौलिक विमर्श गढ़वाल हिमालयी लोक संस्कृति में विशिष्ट आधार स्तम्भ हैं. निसंदेह प्रो. सकलानी की बौद्धिक विरासत देश-दुनिया में अपनी मौलिक पहचान एवं ख्याति रखती हैं।

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 पर इस समय उनकी व्यस्तता शिक्षा में पाठयक्रम हेतु ग्लोबलाइजेशन के साथ तालमेल में भारतीय संस्कृति की व्यापकता के साथ समन्वय सतत स्वरूप में प्रगतिमान है. अपनी अकादमिक अप्रौच के साथ प्रशासनिक दक्षता में देश की सर्वोच्च शैक्षिक संस्था में नवाचारी क्रियाकलापों हेतु सक्रिय है। संस्था का आठ मंजिला पुस्तकालय एवं नेचुरल फार्मिंग रिसर्च उनके ड्रीम प्रोजेक्ट का हिस्सा है। पाठयक्रम में पुस्तकीय लेखन में देश दुनिया के विभिन्न विषयों के विद्वतों के माध्यम से कार्य किया जा रहा है। मेडिकल एवं आई.आई.टी. के प्रोफेसरों के समन्वय से कक्षा 11वीं एवं 12वीं के पाठयक्रम को तार्किक एवं स्कूली शिक्षा से बिना कोचिंग संस्थानों के सहयोग से शहरी एवं ग्रामीण भारत के प्रतिभावान छात्र देश के प्रतिष्ठित संस्थानों तक पहुंच सके। *गणित में फिल्ड मेडल प्राप्त प्रिंसटन यूनिवर्सिटी अमेरिका के प्रो. मंजुल भार्गव, डॉ. सुधामूर्ति, अजीम प्रेमजी जैसे नामी शिक्षाविदों के शिक्षा दर्शन में वैश्विक आधारभूत आवश्यकताओं के अनुरूप विषय वस्तु बने, ऐसे प्रयास उनकी प्राथमिकताओं में रहे हैं।* निदेशक प्रो. सकलानी का मानना है कि लम्बी अवधि तक विषय वस्तु में बदलाव न किया जाना सार्थक नहीं है. आवश्यकता के अनुरूप भले ही शिक्षा के मौलिक मूल्य यथावत रहे किंतु यर्थात् का चिंतन भी समय के साथ चलता रहे। उनके दिशा निर्देशन में इस समय बुनियादी स्टेज – NCF- FS एवं NCF फॉर स्कूल ऐजूकेसन तैयार किया गया. समय के साथ बदलाव आवश्यक है। इस संदर्भ को आधार रखते हुए पाठयपुस्तकों में इतिहास, समाज संस्कृति एवं राजनीति के संदर्भ में शिक्षा की व्यापकता को मौलिक स्वरूप देने का प्रयास किया गया।

प्रो. सकलानी के शिक्षा दर्शन की ख्याति वैश्चिक आधार रखती है, साथ ही उनका अपने गाँव समाज से भी आत्मीय नाता है। रिवर्स पलायन हेतु स्थानीयता में ‘प्रो.साहब की कोठी’ के नाम से उनके पारम्परिक आवास में आधुनिक एवं पारम्परिक सुख सुविधा सम्पन्न है। यह कोठी पहाड़ की भौगोलिक एवं जलवायिक आधार पर पर्यावरणीय आत्मीयता आधारित निर्मित है। कोठी की ऊपरी छ्त तिकोने छतों में राज्य वृक्ष बुरांस के फूल के रंग वाली टिनों से सजी है. देवदार चीड़ की भांति छ्त के ढलान तिकोने होने का अभिप्राय बर्फवारी आदि में बर्फ छ्त में ही जमीं न रहे. पठालीनुमा छतों के वास पहाड़ी जलवायु के अनुरूप होने के कारण बनाये जाते हैं। प्रो.सकलानी ने अपने गाँव में विविध किस्मों के फलदार पौधों का बगीचा भी तैयार कर रखा है। जो रिवर्स पलायन में युवाओं को एवं स्थानीयता को स्वरोजगार की जागरूकता देता है। भले गाँवों में ऐसे ख्याति प्राप्त व्यक्तित्व अपने कार्यों की व्यस्तता से कभी कभार आये किंतु अपने गांव समाज, अपने लोगों के संगसाथ होने का भावनात्मक एहसास जरूर करायें। प्रो. सकलानी की गाँव में कोठी होने की मूल भावना का भाव भी यही है।

नि:संदेह हिमालयी भूमि उत्तराखण्ड एवं पुजार गाँव, टिहरी गढ़वाल की माटी शिक्षा जगत में अपनी ऐतिहासिक विरासत लिख चुकी है. जो उत्तराखण्ड के हम सब पहाड़वासी, हिमालयीवासियों हेतु गौरवमयी हैं। प्रो.सकलानी सर मेरे शोध निर्देशक रहे है। मैंने इतिहास विषय में अपना शोध-प्रबन्ध ‘ गढ़वाल हिमालय में पारम्परिक चिकित्सा पद्धति’ जो पुस्तकीय रूप में अब प्रकाशित हो चुकी है. इन्हीं के निर्देशन में पूरा किया. अर्थात मैं वैयक्तिक रूप से अपने गुरूजी की विद्वत गहनता एवं स्पष्टवादी दृष्टिकोण से विज्ञ हूँ। देश की प्रतिष्ठित शैक्षिक संस्था में आपकी निष्ठा एवं व्यापकता का आंकलन देर सबेर राष्ट्रीय सम्मानों में प्राप्त होगा, जिसमें गाँव की माटी के साथ जमीनी संघर्ष में संघर्ष करने वाली प्रतिभाएं एवं समाज भी प्रोत्साहित होगा। आपकी तमाम शैक्षिक उपलब्धियां एवं शिक्षा से प्राप्त शिखर, शिक्षा की परिभाषा की सार्थकता है. जो न केवल स्वयं की ऊंचाई देती है अपितु दुनिया में बदलाव की नींव भी रखती है।

डॉ.पवन कुदवान
असिस्टेंट प्रोफेसर हिस्ट्री
राजकीय महाविद्यालय
चकराता, देहरादून

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