कर्णप्रयाग (अंकित तिवारी)। डा. शिवानंद नौटियाल राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, कर्णप्रयाग में प्रथम बुग्याल संरक्षण दिवस के अवसर पर भूगोल विभाग के तत्वावधान में एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर विशेषज्ञों ने हिमालयी पारिस्थितिकी, आपदा प्रबंधन, जैव विविधता और सांस्कृतिक धरोहर के संदर्भ में बुग्यालों की महत्ता पर विस्तार से विचार रखे।
कार्यक्रम का उद्घाटन महाविद्यालय के प्रभारी प्राचार्य डॉ. अखिलेश कुकरेती ने किया। उन्होंने बुग्यालों को हिमालय की जीवनदायिनी भूमि बताते हुए इनके संरक्षण हेतु सामूहिक जागरूकता की आवश्यकता पर जोर दिया। मुख्य वक्ता एवं भूगोल विभाग के प्रभारी डॉ. आर.सी. भट्ट ने अपने संबोधन में कहा कि बुग्याल केवल सुंदर चारागाह ही नहीं, बल्कि आपदा न्यूनीकरण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्होंने कहा, “हिमालय में बार-बार आने वाली प्राकृतिक आपदाओं को रोकने के लिए बुग्यालों सहित अन्य पर्यावरणीय घटकों का संरक्षण अत्यावश्यक है।”
वनस्पति विज्ञान विभाग के डॉ. इंद्रेश पाण्डेय ने बुग्यालों के वैज्ञानिक, परिस्थितिकीय और सांस्कृतिक महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि बुग्यालों में पाई जाने वाली विशिष्ट वनस्पतियाँ न केवल जैव विविधता का प्रतीक हैं, बल्कि स्थानीय संस्कृति, आस्था और परंपराओं से भी गहराई से जुड़ी हुई हैं।
इस अवसर पर डॉ. बी.सी.एस. नेगी, डॉ. नेहा तिवारी, डॉ. नरेंद्र पंघाल सहित महाविद्यालय के अन्य प्राध्यापक और बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएँ उपस्थित रहे। सभी ने एक स्वर में यह संकल्प लिया कि हिमालयी पारिस्थितिकी की अमूल्य धरोहर — बुग्यालों — के संरक्षण के लिए निरंतर प्रयास किए जाएंगे।