उत्तराखंड: उत्तराखंड सहित देश के कई सीमांत राज्यों में ग्रामीण पलायन एक गंभीर समस्या बन चुकी है। इस पलायन के कारणों पर अगर गहराई से विचार करें, तो यह सवाल उठता है कि जब हमारी पहाड़ी वादियाँ, स्वच्छ जल, शुद्ध हवा, प्राकृतिक सौंदर्य और धार्मिक स्थल जैसे कीमती संसाधनों से भरपूर हैं, तो आखिर क्यों लोग यहां से पलायन कर रहे हैं?
हाल ही में, चीन सीमा के पास बसे गांवों में न केवल गांवों की संख्या बढ़ रही है, बल्कि यहां के रहने वाले लोगों के लिए सुरक्षा, रोजगार और बेहतर जीवन की व्यवस्था भी की जा रही है। यह सवाल उठता है कि क्या भविष्य में हमारे गांव भी इसी दिशा में अग्रसर होंगे, या फिर पलायन की यह प्रक्रिया और बढ़ेगी?
हमारे पहाड़ों के गांव स्वर्ग से सुंदर हैं। यहां की प्रकृति, जल, हवा, और शुद्ध वातावरण अनमोल हैं। यहां की घाटियाँ, वादियाँ और विशेष प्रकार के फूल मुग़ल गार्डन में भी नहीं मिलते। पहाड़ में अब बिजली, पानी के नल, और संचार के साधन उपलब्ध हैं। हर व्यक्ति के पास मोबाइल फोन है, और परिवहन सेवाएँ भी गांवों तक पहुँच चुकी हैं। फिर भी, इन गांवों में बसने वाले लोग कहाँ गए हैं?
शिक्षा और स्वास्थ्य की कमी
आज तक पहाड़ों में शिक्षा और चिकित्सा में बुनियादी सुधार नहीं हो पाए हैं। उच्च स्तरीय शिक्षा और मेडिकल सुविधाओं का अभाव ही पलायन के प्रमुख कारणों में से एक है। यदि पहाड़ों में अच्छे बोर्डिंग स्कूल, मेडिकल कॉलेज, तकनीकी शिक्षा और योगा सेंटर स्थापित किए जाएं, तो लोग अपनी ज़िंदगी यहीं पर बिता सकते हैं। इसके लिए सरकार को एक ठोस योजना बनानी होगी।
धार्मिक और पर्यटन संभावनाएँ
उत्तराखंड में तीर्थ स्थलों की कोई कमी नहीं है। बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री जैसे प्रमुख धार्मिक स्थल हैं ही, साथ ही कई छोटे और बड़े देवी-देवताओं के मंदिर भी हैं जो अन्य स्थानों से कम खूबसूरत नहीं हैं। लेकिन इन स्थलों की व्यवस्थाएँ और प्रचार-प्रसार बहुत कमजोर हैं। यदि यहां अच्छी सुलभता, मार्ग, और ठहरने की व्यवस्था हो, तो न केवल भारतीय बल्कि विदेशी पर्यटकों की भी भीड़ इन स्थानों पर बढ़ सकती है। टूरिज्म विभाग को इस दिशा में काम करना होगा, ताकि पहाड़ों की बेरोजगारी और पलायन की समस्या का समाधान हो सके।
स्वास्थ्य सेवाएँ और रोजगार की आवश्यकता
आज पहाड़ों में स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव है। मैदानों में स्थित बड़े अस्पतालों तक इलाज कराने के लिए पहाड़ी लोगों के पास न तो शारीरिक ताकत है और न ही वित्तीय साधन। सरकार जो राशन वितरण की योजनाएँ चला रही है, वह केवल तात्कालिक समाधान हैं। अगर पहाड़ी लोग अपने रोजगार के लिए खुद सक्षम होंगे, तो उन्हें किसी की मदद की आवश्यकता नहीं होगी। रोजगार और स्वालंबन ही पहाड़ों के विकास की कुंजी है।
जनसंख्या का विकेन्द्रीकरण
देश के कुछ शहरों में जनसंख्या का घनत्व लगातार बढ़ रहा है, जबकि पहाड़ों में लोग कम हो रहे हैं। पहाड़ों में बाघ और जंगली सूअर अब आम होने लगे हैं, जो पहले कभी नहीं होते थे। इसके लिए एक ठोस योजना की आवश्यकता है, ताकि पहाड़ों में जनसंख्या का संतुलन बना रहे और वहां के लोग सुख-शांति से रह सकें।
सरकारी दफ्तरों का स्थानांतरण पहाड़ों में
यह एक अच्छा विचार हो सकता है कि सरकार के सभी बड़े दफ्तर और विधानसभा सचिवालय पहाड़ों में हों। यदि बड़े लोग पहाड़ों में रहेंगे, तो बाकी लोग भी वहां रहने के लिए प्रेरित होंगे। इस निर्णय से पहाड़ों का विकास होगा और लोगों को रोजगार के अवसर मिलेंगे।
निष्कर्ष:
अगर सरकार सही दिशा में काम करें और पहाड़ों में सुविधाएँ उपलब्ध कराए, तो पलायन पर काबू पाया जा सकता है। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और पर्यटन के क्षेत्र में सुधार से पहाड़ों का विकास होगा। सबसे जरूरी बात यह है कि पहाड़ों के लोगों को स्वालंबी बनाने के लिए सरकार को योजनाएं बनानी चाहिए। तभी पहाड़ों में फिर से गांवों की आबादी बढ़ेगी, और पलायन पर रोक लगेगी।
यह लेख एक जागरूकता का आह्वान है, जिसे सरकार, प्रशासन और समाज को गंभीरता से लेना चाहिए।
लेखक: एडवोकेट लाखी सिंह चौहान