देहरादून(अंकित तिवारी): सहस्रधारा और मालदेवता का क्षेत्र उत्तराखंड की हसीन घाटियों में एक प्रमुख स्थल है, जहां का प्राकृतिक सौंदर्य पर्यटकों को आकर्षित करता है। लेकिन यह क्षेत्र न केवल अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता है, बल्कि भौगोलिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील भी है। यहाँ की चट्टानें इतनी कमजोर हैं कि किसी भी छोटे से दबाव में यह चटक सकती हैं। इसी कारण, यह इलाका प्राकृतिक आपदाओं के लिए अत्यधिक संवेदनशील है। यहां हर साल बादल फटने और भारी बारिश के कारण भूस्खलन और बाढ़ जैसी घटनाएं होती रहती हैं। लेकिन इस प्राकृतिक संवेदनशीलता के साथ-साथ, इस क्षेत्र में अंधाधुंध विकास ने स्थिति को और भी विकट बना दिया है।
अंधाधुंध विकास की चुनौती
कभी प्रकृति का सौंदर्य बिखेरने वाला यह क्षेत्र अब विकास के नाम पर अपनी पहचान खोता जा रहा है। नदी किनारे अवैध निर्माण, रिसॉर्ट्स और अनियंत्रित भवन निर्माण ने प्राकृतिक संतुलन को बुरी तरह से प्रभावित किया है। नदी के किनारे और यहां तक कि उसकी धारा के भीतर तक भवनों का निर्माण किया जा रहा है, जो न केवल जल के स्वाभाविक बहाव को रोकता है, बल्कि बाढ़ की स्थिति को और भी खतरनाक बना देता है। कमजोर चट्टानों पर सड़क और भवन निर्माण से भूस्खलन का खतरा कई गुना बढ़ गया है।
बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय (केंद्रीय विश्वविद्यालय) लखनऊ, के भू विज्ञान विभाग के डॉ. अनूप कुमार सिंह कहते हैं कि यह क्षेत्र मेन बाउंड्री थ्रस्ट (मुख्य सीमा भ्रंश) पर स्थित है, जहां पुरानी और नई पहाड़ी चट्टानों की टकराहट होती है। यही कारण है कि भूकंप और भूस्खलन की घटनाएं यहां अधिक होती हैं। प्रकृति की इस जटिलता को नज़रअंदाज़ करते हुए, अंधाधुंध निर्माण कार्य और विकास योजनाओं का बढ़ता दबाव इस क्षेत्र को एक संभावित आपदा की ओर धकेल रहा है।
समाधान: प्रकृति और विकास का सामंजस्य
हम यह जानते हैं कि प्राकृतिक आपदाओं को पूरी तरह से रोका नहीं जा सकता, लेकिन अगर सही उपाय अपनाए जाएं, तो इनके प्रभाव को नियंत्रित किया जा सकता है। सबसे पहले, नदी किनारे के निर्माण पर कठोर नियम और प्रतिबंध लगाने की जरूरत है। विशेष रूप से निचली फ्लड टेरेस पर निर्माण पर रोक लगानी चाहिए, जहां बाढ़ का पानी अक्सर पहुंचता है। इसके अलावा, संवेदनशील क्षेत्रों में स्वचालित मौसम स्टेशन लगाए जाने चाहिए, ताकि किसी भी प्राकृतिक आपदा से पहले चेतावनी मिल सके और लोगों को सुरक्षित किया जा सके।
डॉ. अनूप कुमार सिंह कहते है कि इसके साथ ही, विकास योजनाओं को शुरू करने से पहले उनके भूगर्भीय और पर्यावरणीय प्रभाव का अध्ययन करना आवश्यक है। ऐसा करने से हम प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान को काफी हद तक कम कर सकते हैं। यही नहीं, जनजागरूकता अभियान चलाकर लोगों को नदी किनारे निर्माण के खतरों से अवगत कराया जा सकता है, ताकि वे समझ सकें कि विकास के नाम पर किए गए गलत कदम कितने खतरनाक हो सकते हैं।
विकास का जिम्मेदार तरीका
विकास जरूरी है, लेकिन वह ऐसा विकास होना चाहिए जो प्रकृति के साथ तालमेल बैठाकर किया जाए। अगर हम प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए जरूरी कदम उठाएं और अंधाधुंध निर्माण कार्यों पर कड़ी निगरानी रखें, तो आने वाली पीढ़ियां भी इस क्षेत्र की सुंदरता का आनंद ले सकेंगी और उनके लिए यह क्षेत्र सुरक्षित भी रहेगा। इस दिशा में अगर सरकार, समाज और नागरिक सभी मिलकर काम करें, तो हम इस इलाके को संकट से बचा सकते हैं और प्राकृतिक संतुलन को बनाए रख सकते हैं।