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उत्तराखंड की पारंपरिक संस्कृति को वैश्विक मंच तक पहुँचाने का मिशन: पिछौड़ी वूमेन मंजू टम्टा

देहरादून: उत्तराखंड की धरोहर, परंपरा और सांस्कृतिक पहचान को समृद्ध करने के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं। इनमें से एक महत्वपूर्ण प्रयास है, पिछौड़ी वूमेन मंजू टम्टा द्वारा शुरू किया गया पहाड़ी ई कार्ट। इस पहल का उद्देश्य न केवल उत्तराखंड की पारंपरिक पहाड़ी वस्त्र और कला को दुनिया भर में पहचान दिलाना है, बल्कि महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने और उन्हें रोजगार से जोड़ने का भी है।पिछौड़ी वूमेन ने साईं सृजन पटल के उपसंपादक अंकित तिवारी को उत्तराखंडी टोपी भेंट की, साथ ही उन्हें माँ सुरकण्डा देवी मंदिर के लिए बद्रीश खंडेली भी भेंट दी। इस दौरान कवि, लेखिका और आकाशवाणी की उद्घोषिका भारती आनंद भी उनके साथ मौजूद थीं। इस मौके पर कई महत्वपूर्ण विषयों पर विचार-विमर्श हुआ, जिसमें उत्तराखंड की संस्कृति, महिलाओं के सशक्तिकरण और पारंपरिक कारीगरी के संरक्षण पर चर्चा की गई।

पिछौड़ी का जादू: उत्तराखंडी परिधान की पुनरुत्थान

मंजू टम्टा, जो “पिछौड़ी” नामक उत्तराखंड के पारंपरिक वस्त्र के प्रचार-प्रसार में लगी हैं, बताती हैं कि इस विशेष परिधान में एक खास बात है—उसमें भगवान बद्रीनाथ के पहनाए जाने वाले वस्त्र के छोटे से अंश का प्रयोग किया गया है। इसे भगवान बद्रीनाथ का प्रसाद मानकर बनाना और पहनना, न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह “पिछौड़ी” उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ी लोक कला का एक अद्वितीय उदाहरण है, जो अब राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपनी पहचान बना रही है।

इस परिधान के प्रचार-प्रसार की प्रक्रिया में, मंजू टम्टा और उनकी टीम ने इसे केवल एक फैशन स्टेटमेंट के रूप में पेश नहीं किया, बल्कि इसे पहाड़ी जीवनशैली और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा भी बनाया। “पहाड़ी ई कार्ट” के माध्यम से इस परिधान को स्थानीय बाजारों से लेकर वैश्विक बाजारों तक पहुँचाने का कार्य किया गया है।

स्थानीय महिलाओं का सशक्तिकरण

“पहाड़ी ई कार्ट” द्वारा इस परिधान को तैयार करवाने से न केवल उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर को बचाया जा रहा है, बल्कि इसके जरिए स्थानीय महिलाओं को रोजगार के अवसर भी मिल रहे हैं। मंजू टम्टा का कहना है कि यह पहल उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों जैसे उत्तरकाशी, चमोली, रूद्रप्रयाग और टिहरी घाटी की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में मदद कर रही है। इसके परिणामस्वरूप महिलाएं अपनी पारंपरिक कला को जीने के साथ-साथ आर्थिक स्वतंत्रता की ओर भी बढ़ रही हैं।

वर्तमान में, “पहाड़ी ई कार्ट” ने 250 से अधिक महिलाओं को रोजगार प्रदान किया है और पलायन पर भी अंकुश लगाया है। यह न केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक रूप से भी एक महत्वपूर्ण बदलाव ला रहा है, जो उत्तराखंड के गांवों और छोटे कस्बों में रहने वाली महिलाओं के लिए वरदान साबित हो रहा है।

वैश्विक पहचान की ओर एक कदम

“पहाड़ी ई कार्ट” की सफलता का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इसने अपनी उत्पाद रेंज को ऑनलाइन प्लेटफार्मों जैसे अमेज़न पर भी उपलब्ध कराया है, जिससे यह परिधान न केवल भारत के विभिन्न शहरों में बल्कि विदेशों में भी लोकप्रिय हो रहा है। दुबई, लंदन और अन्य अंतर्राष्ट्रीय स्थानों पर इस परिधान की मांग बढ़ी है, और विदेश में रहने वाले उत्तराखंडी समुदाय ने इस परिधान को अपनी संस्कृति और पहचान के रूप में अपनाया है।

भविष्य की योजनाएँ

मंजू टम्टा और “पहाड़ी ई कार्ट” की योजनाएं केवल उत्तराखंड के परिधानों के प्रचार-प्रसार तक सीमित नहीं हैं। उनका लक्ष्य इस पहल को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाना है। इसके अलावा, रोजगारपरक प्रशिक्षणों का आयोजन करके प्रशिक्षुओं को स्वरोजगार से जोड़ना और महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए अधिक से अधिक योजनाओं को लागू करना भी उनकी प्राथमिकता में शामिल है।

मंजू टम्टा और उनकी “पहाड़ी ई कार्ट” टीम का यह प्रयास उत्तराखंड की संस्कृति और परंपरा को जीवित रखने के साथ-साथ महिलाओं के लिए आर्थिक अवसरों को बढ़ावा दे रहा है। उनका यह मिशन न केवल उत्तराखंड बल्कि देशभर और विदेशों में भी अपनी छाप छोड़ रहा है। एक ओर जहाँ यह उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर को वैश्विक मंच पर पहचान दिलाने का कार्य कर रहा है, वहीं दूसरी ओर यह स्थानीय महिलाओं को आत्मनिर्भर बना कर उन्हें सशक्त भी कर रहा है।

यह पहल हमें यह सिखाती है कि संस्कृति, व्यापार और समाज सेवा को एक साथ जोड़ कर हम अपने पारंपरिक धरोहरों को न केवल संरक्षित कर सकते हैं, बल्कि उन्हें एक नया जीवन भी दे सकते हैं।

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