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उत्तराखंड के अविस्मरणीय साहित्यकारों पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

रानीपोखरी(अंकित तिवारी): उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ एवं लेखक गाँव, थानों, देहरादून के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन पूर्व शिक्षा मंत्री, भारत सरकार, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान की प्रधान संपादक डॉ. अमिता दुबे, उच्च शिक्षा निदेशक प्रो. विश्वनाथ खाली, जिलाधिकारी ,नैनीताल  ललित मोहन रयाल, उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति डॉ. सुधा रानी पाण्डेय, उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. नवीन चंद्र लोहनी और स्पर्श हिमालय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. गोविंद सिंह रजवार ने संयुक्त रूप से दीपप्रज्वलन करके किया।

कार्यक्रम के उद्घाटन के बाद कुलगीत गाया गया, और स्वागत भाषण पूर्व उच्च शिक्षा निदेशक डॉ. सविता मोहन ने दिया। उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने कहा, “व्यक्ति कहीं भी रहे, लेकिन यदि उसके अंदर कोई अंकुर है तो वह दबना नहीं चाहिए, वह हमेशा उभर कर सामने आना चाहिए। यदि वह सृजनात्मकता से जुड़ा है, तो उसे हर कीमत पर खाद और पानी मिलना चाहिए।” उन्होंने उत्तराखंड को शैक्षणिक हब बताते हुए कहा कि यह प्रदेश दुनिया भर के छात्रों को शिक्षा प्रदान करता है और यहां के विश्वविद्यालय अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरे उतरते हैं।

डॉ. निशंक ने आगे कहा कि लेखक गाँव ने यह तय किया है कि वह देशभर की साहित्य अकादमियों, कला अकादमियों, नाट्य अकादमियों और शैक्षणिक संस्थाओं के साथ एमओयू करके ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की परिकल्पना को साकार करेंगे। इसके तहत देशभर की सभ्यता, संस्कृति, परंपराओं और कला को नाट्य, कला और संस्कृति के माध्यम से प्रकट किया जाएगा, जिससे लोग हिमालय की गोद में आकर इसका आनंद ले सकेंगे।

संगोष्ठी के पहले सत्र में उत्तराखंड के अविस्मरणीय साहित्यकारों—गोविंद बल्लभ पंत, डॉ. पार्थ सारथी डबराल, डॉ. गोविंद चातक, और डॉ. शिव प्रसाद डबराल को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। इस सत्र में वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. सिद्धेश्वर सिंह, सुधा जुगरान, लोककला विशेषज्ञ डॉ. नंदकिशोर हटवाल और इतिहास विशेषज्ञ डॉ. योगेश धस्माना ने अपने विचार प्रस्तुत किए।

दूसरे सत्र में एक भव्य कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें इंदु अग्रवाल, सोमवारी लाल उनियाल, डॉ. गणेश खुगसाल ‘गणी’, मदन मोहन ढुकलान, डॉ. कल्पना पंत, मीरा नवेली, डॉ. सिद्धेश्वर सिंह, डॉ. किरण सूद, शिव मोहन सिंह, डॉ. कविता भट्ट ‘शैलपुत्री’, अनिल भारती, और भारती मिश्रा ने अपनी कविता प्रस्तुत की।

इस कार्यक्रम में पूर्व उच्च शिक्षा निदेशक डॉ. मुकुल द्विवेदी, डॉ. महेश्वरी, डॉ. जगदीश घिल्डियाल, सेवानिवृत्त प्राचार्य प्रो. (डॉ.) के.एल. तलवाड़, पूजा पोखरियाल, अमित पोखरियाल, डॉ. सुशील उपाध्याय समेत कई साहित्यकारों, लेखकों, कवियों और शोधार्थियों ने भाग लिया।कार्यक्रम का संचालन डॉ.दिनेश शर्मा और भारती मिश्रा ने किया।

यह संगोष्ठी उत्तराखंड के साहित्यिक धरोहर को सहेजने और आगामी पीढ़ियों को इस समृद्ध विरासत से अवगत कराने का एक महत्वपूर्ण प्रयास साबित हुआ।

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