कर्णप्रयाग (अंकित तिवारी):डॉ. शिवानंद नौटियाल राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय कर्णप्रयाग में आगामी 20 एवं 21 फरवरी 2026 को संस्कृत विभाग द्वारा एक द्वि-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया जाएगा। इस संगोष्ठी का आयोजन भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद (ICPR) और महाविद्यालय के संस्कृत विभाग द्वारा संयुक्त रूप से किया जा रहा है। संगोष्ठी का मुख्य विषय “भारतीय दर्शन: आत्मनिर्भर भारत का आधार” होगा, जिसका उद्देश्य भारतीय दर्शन के विभिन्न पहलुओं और उनके संबंध में शोध कार्यों का अवलोकन करना है।
संगोष्ठी में देशभर के शिक्षाविद, शोधकर्ता, नीति निर्माता और छात्र-छात्राओं को अपने शोध पत्र प्रस्तुत करने का अवसर मिलेगा। इस आयोजन का प्रमुख आकर्षण यह है कि यह अवसर न केवल भारतीय दर्शन के विविध आयामों को समझने का होगा, बल्कि यह आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में भारतीय दर्शन की भूमिका पर भी विचार विमर्श किया जाएगा।
संगोष्ठी के संयोजक, डॉ. मृगांक मलासी ने बताया कि इस संगोष्ठी में शामिल होने के लिए सभी प्राध्यापक और शोधार्थी को अपने शोध सारांश और शोध पत्र 15 दिसम्बर 2025 तक प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया गया है। शोध पत्र हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में स्वीकार किए जाएंगे। इसके लिए महाविद्यालय स्तर पर विभिन्न समितियों का गठन भी किया गया है ताकि संगोष्ठी के आयोजन में किसी भी प्रकार की कोई कठिनाई न आए।
संगोष्ठी में प्रस्तुत सभी शोध पत्रों को राष्ट्रीय स्तर पर आईएसबीएन पुस्तक और जर्नल में प्रकाशित किया जाएगा। इससे न केवल शोधार्थियों को अपने शोध कार्यों को साझा करने का एक मंच मिलेगा, बल्कि यह उनके कार्यों के राष्ट्रीय स्तर पर प्रसार का एक बड़ा अवसर भी होगा।
महाविद्यालय के प्राचार्य, प्रोफेसर राम अवतार सिंह ने इस संगोष्ठी को महाविद्यालय के लिए गर्व का पल बताते हुए कहा कि संस्कृत विभाग द्वारा तीसरी बार इस प्रकार की राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इस संगोष्ठी से पाठ्यक्रम से परे जाकर नई अवधारणाओं और दृष्टिकोणों को समझने का अवसर मिलेगा। साथ ही यह संगोष्ठी भारतीय दर्शन के विभिन्न पहलुओं पर महत्वपूर्ण चर्चा करने और अंतर्दृष्टि प्राप्त करने का एक बेहतरीन मौका प्रदान करेगी। उन्होंने सभी प्राध्यापकों, शोधार्थियों, छात्रों और छात्राओं से इस अवसर का अधिकतम लाभ उठाने की अपील की है, और संगोष्ठी में अधिक से अधिक शोध पत्र प्रस्तुत करने का आग्रह किया।
यह संगोष्ठी शोधकर्ताओं, छात्रों और शिक्षकों के लिए एक महत्वपूर्ण मंच प्रदान करेगी, जहां वे अपने विचारों, शोध और निष्कर्षों को साझा कर सकते हैं। भारतीय दर्शन की गहरी समझ और आत्मनिर्भर भारत के संदर्भ में इसके योगदान पर विचार-विमर्श से यह आयोजन एक प्रेरणादायक और ज्ञानवर्धक अनुभव साबित होगा।




