आधुनिकता की दौड़ में सम्भल कर चलना होगा : के के डुकलान
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रुड़की (हरिद्वार)
पारिवारिक संस्कारों के कारण युवा पीढ़ी में नैतिकता और संस्कारों का समावेश होगा तो नहीं घटित होगी समाज में अंकिता भण्डारी जैसी जघन्य घटनाएं।….
आधुनिकीकरण शब्द हमें एक प्रक्रिया का बोध कराता है। आधुनिकता से मेरा तात्पर्य है सतत् एवं लगातार होने वाली एक विशेष प्रकार की क्रिया। आधुनिकीकरण बदलाव की वह विस्तृत प्रक्रिया से है। वर्तमान आधुनिकता की चकाचौंध में हमें अपनी संस्कृति,सभ्यता,परम्परा, रीति-रिवाज एवं संस्कारों को विस्मृत नहीं किया जा सकता है। आज के समय में हम पश्चिमी अंधानुकरण के कारण शिष्टाचार,नैतिकता न होने के कारण उत्तराखंड में अंकिता भण्डारी हत्याकांड जैसी घटनाएं घट रही हैं। शिष्टाचार व नैतिकता हमारे जीवन में बहुत अहम चीजें हैं। आज हर कोई अपनी जिम्मेदारी से बचने का प्रयास कर रहा है और सारा दोष अपनी युवा पीढ़ी को ही दे रहा है। प्रश्न यह नहीं कि नैतिकता,शिष्टाचार के अभाव में अंकिता भण्डारी हत्याकांड को अंजाम देने वाले अंकित आर्य पैदा हो रहे हैं। प्रश्न यह भी है कि क्या सिर्फ युवा पीढ़ी पर दोषारोपण से हमारी जिम्मेदारियों की इतिश्री हो जाती है। क्या हम युवा पीढ़ी के लिए अपना कर्तव्य निष्ठापूर्वक निभा रहे हैं। क्या हम अपनी आज की युवा पीढ़ी का प्रातःकाल पांच बजे से रात्रि दस बजे तक की दिनचर्या अमल हो रहा है। क्या हम अपनी युवा पीढ़ी के खान-पान,रहन-सहन,मित्रता,दोस्ती पर बराबर नजर रख रहे हैं। वास्तव में अगर हम अपनी युवा पीढ़ी का एक अभिभावक के नाते उपरि लिखित बातों पर ध्यान दे रहे हैं तो समाज में अंकित आर्य जैसे व्याविचारी, दुराचारी पैदा ही नहीं होंगे। हमारी युवा पीढ़ी में शिष्टाचार व संस्कारों की कमी आना उसकी वजह अपने घर के अभिभावक होने के नाते सिर्फ और सिर्फ हम ही हैं। क्या हम एक अभिभावक होने के नाते अपने सामाजिक जीवन के लम्बे अनुभव के कारण युवा पीढ़ी में संस्कार नैतिकता शिष्टाचार नहीं भर पा रहे हैं? यह एक सोचने का विषय है। बाल्यकाल से ही कहा जाए तो परिवार ही हमारी नैतिक संस्कारों की पाठशाला है। अगर परिवार के बीच में रहते हुए हमारी भावी पीढ़ी में नैतिक संस्कारों का समावेश नहीं हो पा रहा है तो इसकी कमजोरी हमारी ही है।
अगर मैं अपनी युवा उम्र की युवा पीढ़ी को उदाहरण के तौर पर लेकर आगे बढूं तो बचपन में दादा-दादियों द्वारा हमें अच्छी-अच्छी कहानिया सुनाई जाती थीं। कहते हैं कि जब बच्चा छोटा होता है तो उसका दिमाग बिलकुल शून्य होता है। आप उसको जिस प्रकार के संस्कार व शिक्षा देंगे उसी राह पर वह आगे बढ़ता है। अगर बाल्यकाल में बच्चों को यह शिक्षा दी जाती है कि चोरी करना बुरी बात है तो वह व्याविचारी,दुराचरण जैसी हरकत करने से पहले सौ बार सोचेगा। छोटी अवस्था में बच्चों को संस्कारित करने में परिवार के माता-पिता, दादा-दादी व बुजुर्गो का बड़ा हाथ होता था। कहानियां भी प्रेरणादायी होती थीं।
जब हमने स्कूल जाना प्रारंभ किया तो हमारे पास एक नैतिक शिक्षा की पुस्तक होती थी। जिसमें बहुत अच्छी कहानिया होती थीं। आज वह पुस्तक बच्चों के पास से गायब हो चुकी है। ढेरों कॉमिक्स,कंप्यूटर गेम्स,वीडियो गेम्स,फिल्मी गानों की दुनिया भर की सीडी मिल जाएंगी, लेकिन पंचतंत्र की कहानी, भगत सिंह,स्वामी विवेकानंद आदि महापुरुषों से सम्बन्धित जीवन प्रसंग की कहानियों की किताब बच्चों के स्कूली पाठ्यक्रम से गायब सी हो चुकी है। यहा तक कि हम कोशिश भी नहीं करते कि अपने बच्चों को ऐसी किताबे दें जिससे वह नैतिकता व शिष्टाचार को समझ सकें। वर्तमान युवा पीढ़ी में संस्कार, नैतिकता व शिष्टाचार की कमी न हो, इसके लिए हमें स्वयं से ही शुरुआत करनी होगी संस्कार,नैतिकता,शिष्टाचार,सभ्यता और जीवन दर्शन का सम्मान देश के नागरिकों का धर्म भी है। संस्कार यानी हमारी जड़ें हमारी पहचान,संस्कार शिष्टाचार एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित होती चली आई हैं।
हमारे स्कूलों में नैतिक शिक्षा व शिष्टाचार के लिए शिक्षा का प्रावधान होना अनिवार्य हो गया है। विद्यालयी शिक्षा को प्रभावशाली साधन बनाने के लिए परिवार समुदाय तथा राज्य आदि साधनों का उपयोग करना चाहिए जिससे बच्चों को संस्कारों से संबंधित शिक्षा दी जाए। बाल्यकाल से ही बच्चों में नैतिकता एवं संस्कारों का ऐसा समावेश हो बड़े होकर गलत आचरण की ओर न बढ़ सकें। परिवारी जनों द्वारा छोटे बच्चों के सामने नैतिकता व शिष्टाचार ऐसा समृद्ध हो कि उन्हें अनैतिक तत्वों की तरफ जाने की गुजाइंश ही न दिखे और अंकिता भण्डारी जैसी जघन्य घटनाएं इस समाज में न बढ़े।
वर्तमान शिक्षा प्रणाली में सबसे बड़ा दोष यह है कि हमारा आज का स्कूली पाठ्यक्रम हमारे स्कूली बच्चों के व्यक्तित्व के निर्माण में सहायक नहीं है। शिष्टाचार एवं नैतिकता किसे कहा जाता है बल्कि यह सिखाया जाता है कि गणित, विज्ञान,अंग्रेजी आदि विषयों में बच्चे के अधिक अंक कैसे आएं,विद्यालयी शिक्षा बोर्ड में वह वरीयता सूची में कैसे आये। जिससे कारण बच्चे पढ़ना तो सीख रहे हैं, लेकिन संस्कार,नैतिकता व शिष्टाचार किसे कहते हैं उससे वे आज भी अनभिज्ञ ही हैं। हमारे स्कूलों में बच्चों के व्यक्तित्व विकास हमें परिवेशीय सामाजिक वातावरण में रखते हुए करना चाहिए।
अनैतिकता ही अशिष्टता का कारण है। अनैतिकता को समाप्त करने के लिए हमें बच्चों को उसी प्रकार से शिक्षित करने की जरूरत है। संस्कार होंगे तो बच्चों में नैतिकता व शिष्टाचार भी आएंगे। हम अगर बच्चों को पुस्तकीय ज्ञान के साथ इस प्रकार की शिक्षा की व्यवस्था करें जिसमें बच्चों में नैतिकता व शिष्टाचार को बढ़ावा मिले तो जल्द ही यह बातें सुनने को नहीं मिलेंगी कि आज की पीढ़ी में अनैतिकता व अशिष्टता है। जब हम उन्हें ज्ञान ही नहीं देंगे तो उनसे शिष्टाचार की आस कैसे लगाएं।
बच्चों में अनैतिकता का एक कारण यह भी है कि आज हर परिवार में अभिभावक दोनों नौकरी करते हैं। बच्चा अकेला घर पर रह रहा है जिस साथ की उसे जरूरत है वह नहीं मिल पा रहा है। इससे वह खाली समय में टेलीविजन देख रहा है उसे बड़ों के साथ अच्छा समय बिताने को नहीं मिल पा रहा है। यह कुछ कारण हैं जिससे आज का युवा अनैतिक व अशिष्ट होता चला जा रहा है। इनमें नैतिकता व शिष्टाचार तथा संस्कार लाने के लिए हमें स्वयं ही सोचना होगा।
परम पिता परमेश्वर ने मनुष्य को एक अलग ही सोचने व समझने की शक्ति प्रदान की है। नैतिकता और संस्कार विहीन होना भी पशुता के समान है। हमारा यह दायित्व बनता है कि भटके हुए को अच्छे आचरण व स्नेह तथा दयालुता से अच्छे मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करना होगा।