मुन्नी देवी जी का मायका “गडूल” ग्राम पंचायत के “माणकी” गांव में है। ससुराल वर्तमान में “झीलवाला”।
“झीलवाला” नाम किसी झील के नाम से नहीं पड़ा। क्योंकि यहां कोई झील नहीं है। बताया जाता है कि यह क्षेत्र दाल के लिए बहुत पहले से प्रसिद्ध है। यहां पर नौरंगी दाल की ही एक प्रजाति है जिसे झिलंगा कहते हैं। यह झिलंगा दाल इस “झीलवाला” में बहुत अधिक मात्रा में होती थी। जिस कारण इसे “झिलंगावाला” कहते थे। जो बाद में अपभ्रंश होकर झीलवाला बन गया।झिलंगी की दाल सर्दी के मौसम में बहुत अच्छी होती है । इसे उबालकर, पीसकर भरी रोटी बनाई जाती है; जिसे “बेल्डी रोटी” कहते हैं । इस भरी हुई रोटी के साथ यदि घी/ मक्खन और दही मिल जाए तो भोजन का आनंद कई गुना बढ़ जाता है।
“झीलवाला” जंगल के किनारे बसा हुआ है। जहां जंगली जानवर रात ही नहीं कभी-कभी दिन में भी सैर सपाटे के लिए आ जाते हैं। डांडी चौक से झीलवाला तक का रास्ता कच्चा है, संकरा है, उबड़ – खाबड़ है। और बहुत खराब स्थिति में है; यूं कहें कि पैदल चलने लायक भी नहीं है।
मुन्नी देवी के पति की असमय मौत हो गई थी। एक बार खेतों में हाथी आया। हाथी को देखने के लिए वह अपनी छत पर गए और पता ही नहीं चला कब छत से नीचे गिर गए और स्वर्ग सिधार गए। पति की मृत्यु के बाद मुन्नी देवी ने अपने को संभाला। कर्जा निपटाया और अपने बच्चों का पालन – पोषण, पढ़ाई और बालिकाओं के विवाह किए। दुर्भाग्यवश 24 वर्षीय इकलौता बेटा भी वाहन दुर्घटना में वर्ष 2002 में काल के गाल में समा गया।
मुन्नी देवी ने अपने खेतों में जी तोड़ मेहनत की और पशुपालन पर ध्यान देना प्रारंभ किया। मुन्नी देवी ने बैलों से अपने खेतों में स्वयं भी हल लगाया। पुरुषों को भी मात देने वाली ऐसी मातृशक्ति को नमन। आज भी मुन्नी देवी अपनी खेती स्वयं संभाले हुए हैं। मुन्नी देवी आज भी 40 गोवंश का पालन कर रही हैं। बैल अभी भी रखे हुए हैं। हालांकि खेतों की जुताई अब ट्रैक्टर से होती है। बैल भी अभी काम आते हैं। अ
भी हम जब रविवार को उनके घर पर गए तो तोड़िया की दाईं बैलों से उन्होंने की यह सुनकर अच्छा लगा। आज भी मुन्नी देवी 20 किलो दूध प्रतिदिन बेचती हैं। पशुधन अधिक है। इसलिए गोबर खेतों में काम आ जाता है। रासायनिक खादों का प्रयोग नहीं करती हैं। मकान बहुत बड़ा है लेकिन मरम्मत की मांग कर रहा है। आधे मकान पर प्लास्तर होना शेष है।
घर की सुरक्षा व खेतों की सुरक्षा के लिए सोलर फेंसिंग पर उन्होंने ₹300000 से अधिक की धनराशि अपनी जेब से व्यय की है। पशुओं के लिए पानी की दिक्कत रहती है इसलिए ट्यूबेल की बोरिंग कराने पर भी ₹300000 की धनराशि खर्च की है। यह सब लाखों की धनराशि उन्होंने पशुपालन और खेती से कमाई है।
75 वर्षीय मुन्नी देवी जी स्वाभिमानी और आत्मनिर्भर हैं। किसी अन्य का सहयोग लेती भी नहीं है और चाहती भी नहीं हैं। मुन्नी देवी जैसी महिलाएं किसी कहानीकार की कहानी की पात्र होनी चाहिएं। मुन्नी देवी आज हम सबको दर्पण दिखा रही हैं।
मुन्नी देवी कहती हैं मैंने अपने पशुओं को अपने बच्चों की तरह प्यार से पाला है। आज लोग पशुओं को जंगलों में छोड़ देते हैं। पशुओं से लोग दूध लेते हैं और जब पशु दूध नहीं देते हैं तो उनको जंगलों में छोड़ देते हैं। यह बात उनको बहुत खलती है। कुल मिलाकर सुबह से लेकर रात के अंधेरे तक मुन्नी देवी को पता ही नहीं चलता कि कब दिन बीत गया।
ऐसी मेहनती, स्वाभिमानी, सजग पशु प्रेमी, मिट्टी में से सोना उगाने वाली मुन्नी देवी को दोस्तों हम सब शीश झुकाते हैं।