उत्तराखंडयूथशिक्षासामाजिक

आर• एस• एस• कार्यकर्ता शिक्षक व साहित्यकार के•के• डुकलान जी से साक्षात्कार*

हरिद्वार//रुड़की//बहादराबाद

जगदीश ग्रामीण-* जीवन में उतार – चढ़ाव का सफ़र कैसा रहा?
कमल जी-* ग्रामीण जी! मेरा जन्म ११ नवम्बर,सन् १९७३ को पौड़ी गढ़वाल के कल्जीखाल में ग्राम नाव में हुआ। मेरी प्रारम्भिक शिक्षा अपने ही गांव के प्राथमिक विद्यालय में हुई। अगला शिक्षा का केंद्र हमारे गांव से अधिक दूर होने के कारण मैं सन 1986 में संस्कृत शिक्षा के लिए चाचा जी के साथ उत्तरकाशी गया। श्री विश्वनाथ संस्कृत महाविद्यालय में मेरी आगे की शिक्षा हुई। श्री विश्वनाथ संस्कृत महाविद्यालय में मेरी शास्त्री, व्याकरणाचार्य तक की शिक्षा हुई। मूलभूत सुविधाओं के अभाव में मेरा विद्यार्थी जीवन बहुत ही कठिनाई युक्त रहा।
*जगदीश ग्रामीण- ढाई दशक पहले दहेज रहित विवाह का विचार कैसे जन्मा?
*कमल जी- ग्रामीण जी! जहां तक ढाई दशक पूर्व दहेज रहित शादी के विचार की बात की जाए तो हमारा परिवार एक मध्यमवर्गीय परिवार है। हम तीन भाई और तीन बहिनें हैं। मेरे पिता उस समय बंगाल इंजीनियरिंग फोर्स में उस समय के सूबेदार थे। मेरे बड़े भाई साहब भी छठवीं गढ़वाल राइफल से सूबेदार सेवा निवृत्त हैं। कुल मिलाकर मेरा परिवार एक सैन्य पृष्ठभूमि का है। लम्बे समय तक मनेरी प्रकल्प में काम करने के बाद डाक्टर नित्यानंद जी ने मेरा परिचय वरिष्ठ साहित्यकार एवं उस समय के तत्कालीन विभाग प्रचारक श्री विजय जी से कराया। विजय जी जब भी उत्तरकाशी आते तो मुझसे जरुर मिलते। 1994 में संघ शिक्षा वर्ग प्रथम वर्ष करने के बाद विजय जी ने मुझे प्रचारक निकाला। मैं जब भी माता जी मिलने जाता तो माता जी पूछती थीं कि कुछ कमा भी रहा है या नहीं? होते करते एक दिन मां ने कह ही दिया कि ये ऐसे नहीं मानेगा इसकी शादी कर दो। ये तब बतायेगा कि इसकी कमाई कहां जा रही है।
सुख-दुख के साझेदार हुए
जीवनभर के लिए साथ हुए
कानों में संगम गीत प्रिये
तुम तो मेरी मीत प्रिये
इस जीवन के गीतों के
स्वर वही आसान प्रिये
जहां मिले स्वर हमारा
मधुर वही संगीत प्रिये

सन् 1999 में मेरी शादी मीरा डुकलान जी से हुई।
जगदीश ग्रामीण- आर• एस• एस• की लाठी व टोपी कैसे भायी?
*कमल जी-* बाल विद्यार्थी जीवन में ही मेरा सम्पर्क बहिन श्रीमती सरोज बलोदी से हुआ। *महाशय राजीव कुमार सरस्वती शिशु मंदिर* में आचार्य होने के कारण वह हमारे घर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कार्य से आती रहती थीं। उसी समय मैं संघ के संपर्क में आया। उस समय पहाड़ पर संघ कार्य विस्तार की दृष्टि से प्रारम्भिक दौर में था; तो शिशु मंदिर में पढ़ाने वाले आचार्यों के परिवारी जनों का सहजता से शाखा से सम्पर्क हो जाता था। उस समय उत्तरकाशी जिले के जिला प्रचारक सहारनपुर भायला के रामपाल सिंह हुआ करते थे।* रामपाल पुण्डीर जी के अन्दर बड़ी खासियत थी कि वे क्षेत्रीय बोली भाषा बहुत ही जल्दी आत्मसात कर लेते थे। मैं उस समय के तत्कालीन जिला प्रचारक श्री रामपाल सिंह पुण्डीर जी से बहुत प्रभावित हुआ और शाखा जाने लगा। प्रारम्भ से ही हमारे घर पर संघ के वरिष्ठ अधिकारियों का सम्पर्क होने के कारण मेरा सम्पर्क उस समय के तत्कालीन *गढ़वाल विभाग प्रचारक श्रद्धेय श्रीमान श्याम लाल जी, डाक्टर नित्यानंद जी, पश्चिम उत्तर प्रदेश प्रांत के प्रचारक स्व• ओम प्रकाश जी से बराबर बना रहा।* उसके बाद सन् 1991 के भूकम्प में सबसे अधिक नुकसान भटवाड़ी ब्लाक में हुआ; जिसे उस समय लाल घाटी यानि कम्युनिष्टों का प्रभाव वाला क्षेत्र माना जाता था। भटवाड़ी ब्लाक को दैविक आपदा संरक्षण की दृष्टि से उस समय के *प्रांत कार्यवाह डाक्टर नित्यानंद जी ने अपना केंद्र बनाया।* बचाव और राहत कार्यों में प्रभावितों की मदद के बाद उस क्षेत्र में स्वास्थ्य, शिक्षा के प्रकल्प चलाए गए।
डाक्टर नित्यानंद जी द्वारा शिक्षा के प्रकल्प के रूप में भटवाड़ी ब्लाक की लाल घाटी में सबसे पहले संस्कार केन्द्र, एकल विद्यालय चलाए गए; जिसमें सबसे पहले मेरी और मुझे आज भी याद है बड़कोट के श्री शान्ति बैलवाल जी की नियुक्ति हुई। इस तरह से मेरा सम्पर्क राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से आया और मुझे संघ की लाठी – टोपी भायी।
जगदीश ग्रामीण- विद्या भारती में आज आप स्वयं को रथी मानते हैं या सारथी?
*कमल जी- ग्रामीण जी! जहां तक संघ में रथी या सारथी का प्रश्न है; तो मैं अपने को संघ में एक कार्यकर्ता के रूप में मानता हूं। जब कभी भी मेरी गिनती हो तो मैं अपने को रथी अर्थात एक योद्धा के रूप में अपनी गिनती करूंगा। मेरा परिवार सैन्य पृष्ठभूमि का रहा है और सैनिक की सेना में एक योद्धा की भूमिका रहती है। इसलिए संघ में भी कार्यकर्ता की पहचान एक योद्धा की ही होनी चाहिए।
जगदीश ग्रामीण-* साहित्यिक यात्रा के पथ में आप आदर्शवादी हैं या यथार्थवादी?
कमल जी- ग्रामीण जी! साहित्य लेखन की कहानी भी मेरी अजीबो गरीब है।जैसा कि मैंने पहले भी कहा कि डाक्टर नित्यानंद जी ने मेरा परिचय देहरादून विभाग के तत्कालीन विभाग प्रचारक साहित्यकार वर्तमान में विश्व संवाद केंद्र देहरादून के निदेशक श्री विजय जुनेजा जी से कराया। विजय जी कार्यकर्ता की परख शाखा,संघ के अलावा लेखन अभिरुचि में भी करते थे। विजय जी अपने साथ के विस्तारकों, प्रचारकों को संघ विचार को लेख रुप में परख करते थे। मेरी अभिरुचि प्रारम्भ से ही लेखन कला में रही। विजय जी मुझसे सम्पादक के नाम लेख लिखवाते थे। पत्र लिखने के बाद विजय जी कहते थे अपने पत्र/लेख में अपनी स्वयं गलतियां ढूंढो।
लम्बे समय तक मेरे सम्पादक के पत्र / लेख छपते रहे। उसके बाद विजय जी लखनऊ से प्रकाशित राष्ट्रधर्म पत्रिका में सम्पादक बने। मेरे लेख लखनऊ से प्रकाशित राष्ट्रधर्म पत्रिका में भी छपते रहे। भगवान की कृपा और आप सब के सहयोग से वर्तमान समय में मेरे सम सामयिक विषयों पर देहरादून से प्रकाशित पत्रिका हलन्त मासिक, हिमालय हुंकार पाक्षिक, विशेषांकों में मेरे लेख छपते रहे हैं। साहित्यिक पन्ने के पथ में आदर्शवाद को ही प्रार्थमिकता दूंगा क्योंकि आदर्शवाद ही देश-काल में जगत की परिमितता और जगत की ईश्वर द्वारा रचना के विषय में धर्म को जड़सूत्र के निकट पहुँचाता है। लेखन कला में यहां तक पहुंचाने में अपना आदर्श साहित्यकार श्री विजय जी को ही आदर्श मानता हूं।

ऊंचे – ऊंचे पर्वत चढ़ने
बहुत हैं,
मन में मन से युद्ध लड़ने बहुत हैं।
हर पल परीक्षाओं की घड़ी बहुत हैं,
नई उम्मीदों की कल्पना शक्ति बहुत हैं।।
जगदीश ग्रामीण- भावी भविष्य की आपकी क्या योजना है?
कमल जी- ग्रामीण जी! आगे सब ठीक-ठाक रहा तो मैं अपनी कोई मासिक पत्रिका का सम्पादक करना चाहूंगा थोड़ा वर्तमान समय में आर्थिक तंगियां हैं देखते हैं उनसे कैसे निपटा जा सकता है।

कमल किशोर डुकलान जी का आवासीय पता-
कमल कुंज
सुमन नगर
बहादराबाद,
हरिद्वार।

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