मालदेवता
सौंग घाटी – घुत्तू क्षेत्र का दर्द! हालांकि किसी से छिपा हुआ नहीं है लेकिन इस दर्द की दवा भी है लगता है शायद किसी के पास नहीं है। यदि इस क्षेत्र के दर्द की दवा किसी के पास है तो उपचार भी किया जाना जरूरी है।
सौंग घाटी – घुत्तू क्षेत्र इस वर्ष बरसात में आपदा की भेंट चढ गया। अभी भी क्षेत्र में तबाही के निशान मौजूद हैं। मालदेवता से हिलांसवाली तक तो कच्चा मार्ग किसी तरह आवागमन योग्य है लेकिन उससे आगे “रगड़ गांव – गंधक पानी” तक का मार्ग बहुत खराब स्थिति में है। यहां पैदल चलना भी मुश्किल है। दुपहिया वाहन जान जोखिम में डालकर चलाया जा रहा है; और शिक्षकों/ कर्मचारियों का वाहन किसी तरह हिचकोले खाते खाते अपनी यात्रा मजबूरी में पूरी कर रहा है।
इस पूरे क्षेत्र में जहां नेटवर्क की समस्या है, सड़क की समस्या है स्वास्थ्य की समस्या है वहीं दूसरी ओर इस सौंग घाटी क्षेत्र में उत्तर प्रदेश के विभिन्न जनपदों से जो मजदूर काम करने के लिए 8 महीने क्षेत्र में रहते हैं उनके बच्चे शिक्षा से आज भी वंचित हैं।
यह मजदूर इसी सौंग घाटी क्षेत्र में झोपड़ियों में निवास करते हैं: और प्रातः काल से देर रात तक नदी में चुगान के काम में लगे रहते हैं। इन्हें अपने बच्चों को विद्यालय भेजने का समय नहीं है। विद्यालय भी निकट नहीं है। आवागमन की व्यवस्था का तो प्रश्न ही नहीं उठता है। ऐसे में शिक्षा का अधिकार अधिनियम इन मजदूरों के बच्चों के लिए न जाने कहां खो गया है। यह बच्चे कभी आंगनबाड़ी केंद्रों का मुंह भी नहीं देख पाते हैं। इन बच्चों की शिक्षा के लिए तो कुछ प्रयास सामाजिक संगठनों और सरकार को करना ही चाहिए। इन को शिक्षित करने का एक ही विकल्प है कि “शिक्षक और शिक्षा” इन बच्चों के दरवाजे तक पहुंचें। तभी “सब पढ़ें सब बढ़ें” का नारा सफल हो पाएगा।
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