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उत्तराखंड के नीति – नियंताओं को पहाड़ की पीड़ा का आभास शायद आज भी नहीं है।

टिहरी

पहाड़ की “पहाड़” जैसी समस्याओं का समाधान होना अभी बाकी है। राजधानी देहरादून से सटे हुए जनपद टिहरी गढ़वाल के गांव भी आज तक मूलभूत सुविधाओं के लिए जूझ रहे हैं। राजधानी देहरादून से 20 से 25 किलोमीटर की दूरी में बसे गांव भी सड़क, स्वास्थ्य, नेटवर्क जैसी समस्याओं से निजात पाने के लिए टकटकी लगाए सरकार, शासन – प्रशासन और जन प्रतिनिधियों की ओर एकटक निहार रहे हैं। न जाने कब किसी सत्तासीन राजा की या किसी अधिकारी की नजर में यह गांव आएंगे। ग्राम पंचायत “सेरा” के “ऐरल गांव” का दर्द गांव जाकर ही महसूस किया जा सकता है। सुख – दु:ख के क्षणों में इस गांव में जब मोबाइल की घंटी भी नहीं बज पाती है तो मन को बड़ी पीड़ा होती है।
पहाड़ की पगडंडियों पर आज भी सिर और पीठ पर बोझा ढोने की लाचारी है। स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए तो राजधानी देहरादून आना बहुत बड़ी चुनौती है। जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों को गांव की पगडंडियों पर चलकर एक बार समस्याओं के समाधान की ओर जरूर प्रयास करना चाहिए तभी उत्तराखंड राज्य बनने का लाभ जनता को मिल सकेगा।
दैनिक जरूरत की चीजों के लिए पूरा दिन पगडंडियों को नापते – नापते ही बीत जाता है। मरीज को समय पर इलाज नहीं मिल पाता और वह समय से पहले ही स्वर्ग सिधार जाता है। गांव लगातार खाली हो रहे हैं; कारण कि मूलभूत सुविधाएं आज तक भी गांव तक नहीं पहुंच सकी हैं।
उत्तराखंड के नीति – नियंताओं को पहाड़ की पीड़ा का आभास शायद आज भी नहीं है।

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