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केदारखंडी भाषा “उत्तरांचली लिपि” पुस्तक का विमोचन

“देहरादून”

आजदिनांक 07 जनवरी 2023 को उत्तराखंड की तीनों बोलियों को भाषागत स्वरूप प्राप्त करने के उद्देश्य से सेवानिवृत्त शिक्षक श्री हर्ष पति रयाल जी ने ऐतिहासिक कालजयी प्रयास करते हुए “केदारखंडी भाषा” “उत्तरांचली लिपि” का एक प्रयास समाज के सम्मुख प्रस्तुत किया। पुस्तिका का विमोचन ऑफिसर ट्रांजिट हॉस्टल रेस कोर्स में किया गया। विमोचन कार्यक्रम के अतिथि सुप्रसिद्ध लोक गायक मीना राणा एवं लेखक रचनाकार एवं गीतकार डॉ राकेश रयाल, साहित्यकार शिक्षाविद, गीत कार , रचनाकार बेलीराम कंसवाल, शिक्षाविद, साहित्यकार, जगदीश ग्रामीण जी,वरिष्ठ फिजिशियन डॉक्टर एस डी जोशी जी ने कहा कि हमें गर्व महसूस होना चाहिए कि हमें अपनी बोली को बोलने के लिए एक सशक्त माध्यम प्राप्त हो गया है।
इस अवसर पर पुस्तक के लेखक श्री हर्षपति रयाल जी ने कहा कि आज इस “उत्तरांचली लिपि” को अपने व्यवहार में लाना होगा। जब यह लिपि व्यवहार में आएगी तभी यह स्वीकार भी की जाएगी।आज हमें शासन स्तर पर भी इस लिपि की स्वीकार्यता हेतु प्रयास करना चाहिए। अपने उद्बोधन में डॉक्टर एस डी जोशी जी ने कहा कि आज समाज को उत्तराखंड में बोली जाने वाली बोलियों के प्रति अपना लगाव दिखाने की नितांत आवश्यकता है। अन्यथा एक समय ऐसा आएगा कि हमारे बच्चे अपनी बोलियों को भूल जाएंगे। श्री रयाल जी का यह प्रयास अत्यंत सराहनीय है। इस अवसर पर बोलते समय पत्रकार एवं लेखक श्री जगदीश ग्रामीण ने कहा कि हम सभी को गर्व होना चाहिए कि हम उत्तराखंड की ऐसी पावन भूमि में निवास करते हैं जहां विभिन्न प्रकार की बोलियों के कारण एक सांस्कृतिक भाव उत्पन्न होता है। इस सांस्कृतिक भाव को राष्ट्रीय महत्व देने का कार्य श्री रयाल जी की लिपि के द्वारा किया जाना संभव हो पाएगा ।अपने संबोधन में श्री बेलीराम कंसवाल जी ने कहा कि आज हम सब विभिन्न भाषाओं, विभिन्न बोलियों में अनेक रचनाओं का निर्माण करते हैं परंतु यदि हमारी स्वयं की लिपि होती तो हम इस भाषा से और अच्छी रचनाओं को प्रस्तुत कर सकते थे ।उन्होंने अपनी कविता के माध्यम से कुछ रचनाएं प्रस्तुत की ।कार्यक्रम में बोलते हुए डॉ राकेश रयाल ने कहा कि आज हर्ष का विषय है कि हम उत्तरांचली लिपि का विमोचन कर रहे हैं। हमें आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि समाज इस लिपि को स्वीकार कर इसे भाषागत स्वरूप प्रदान करने के उद्देश्य से कार्य करेगा। हम सभी शासन स्तर से वार्ता कर इसको शीघ्र ही भाषा का स्वरूप प्रदान करने के लिए यथासंभव प्रयास करेंगे। कार्यक्रम में उपस्थित अतिथि सुप्रसिद्ध लोक गायिका मीना राणा जी ने कहा कि हमें गर्व है कि हम अपनी गढ़वाली भाषा के साथ अपनी रचनाओं को, गीतों को, कहानियों को प्रस्तुत कर पाएंगे हम सब का समन्वित प्रयास होना चाहिए कि हम अपनी बोली को भाषा का एक स्वरूप प्रदान कर सकें।
कार्यक्रम का संचालन शिक्षक श्री कंसवाल जी द्वारा किया गया। कार्यक्रम में अमित भट्ट,रमेश चौहान, जे पी कंसवाल, कुंदन सिंह पंवार, किशोरी लाल थपलियाल, दिनेश प्रसाद रणाकोटी, जगदीश रतूड़ी, संतोष भट्ट, अमरीश शर्मा , ज्योति बलूनी, मुकेश रयाल, सहदेव रयाल, सुनील गुप्ता, राजनीश ध्यानी, संजय रयाल, पुनुरूथान रूरल डेवलपमेंट एंड वेलफेयर सोसायटी के अध्यक्ष ज्योति प्रसाद , रजनीश उनियाल, विकास राणा, विपिन कुलियाल , मनोज रयाल सुधीर रयाल, दीपक बलूनी, अनूप रयाल सहित बड़ी संख्या में शिक्षाविद, साहित्यकार, पत्रकार और भाषा प्रेमी उपस्थित रहे।



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