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लेखक गाँव की संकल्पना उत्तराखण्ड की सांस्कृतिक एवं साहित्यिक धरोहर का पुनर्जागरण : गुरमीत सिंह

लेखक गाँव(अंकित तिवारी): उत्तराखण्ड की पावन धरा, जहाँ हिमालय का सौम्य आशीर्वाद और माँ गंगा की अविरल धारा समाहित हैं, वह सदा से ही साहित्य, संस्कृति, और कला की महान साधना का केंद्र रही है। इसी विरासत को संजोते हुए ‘स्पर्श हिमालय फाउंडेशन’ द्वारा भारत के पहले ‘लेखक गाँव’ की स्थापना का प्रयास एक प्रेरणादायी पहल है, जो इस गौरवशाली धरती के सृजनशील मनकों को एक नई दिशा प्रदान करने का संकल्प रखता है। उत्तराखंड के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह ने इस पहल की सराहना करते हुए इसे युवा लेखकों और सृजनशील आत्माओं के लिए एक सुनहरे अवसर का स्वरूप माना।

उन्होंने कहा कि लेखक गाँव केवल एक स्थान नहीं, बल्कि एक मंच है जहाँ रचनाकार अपने विचारों और अनुभूतियों को समाज के समक्ष ला सकते हैं। यह वह स्थान है, जहाँ शब्दों की साधना की जाएगी, और जिनके माध्यम से समाज को नई दिशा मिलेगी। हमारे प्राचीन वेद, पुराण, और उपनिषद इस धरती पर ही सृजित हुए हैं, जिनमें सभ्यता की अमूल्य धरोहरें निहित हैं। इस लेखक गाँव की स्थापना उत्तराखंड के ज्ञान और साहित्य की निरंतरता का आधुनिक युग में पुनः साक्षात्कार कराएगी, जिससे आज की पीढ़ी उस पवित्र विरासत को महसूस कर सकेगी।

साहित्य और समाज के लिए एक नई राह

राज्यपाल ने कहा कि लेखन समाज को न केवल सजग करता है, बल्कि उसकी भावनाओं, आदर्शों और चुनौतियों को दिशा भी देता है। चाहे सामाजिक मुद्दों पर प्रखर दृष्टिकोण प्रस्तुत करना हो या मानवता के मूल्यों की रक्षा हेतु लोगों को प्रेरित करना, साहित्य सदा से ही समाज का सशक्त माध्यम रहा है। डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ का साहित्य समाज को जागरूक करने का माध्यम रहा है, जो हमें शिक्षा, पर्यावरण और राष्ट्रभक्ति जैसे विषयों पर सोचने के लिए प्रेरित करता है। ‘लेखक गाँव’ के रूप में उनका यह प्रयास सृजन की शक्ति को नए स्तर तक ले जाएगा।

नवाचार की दिशा में साहित्य का संचार

लेखक गाँव में आयोजित कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए राज्यपाल गुरमीत सिंह ने कहा आज, चौथी औद्योगिक क्रांति के युग में, जब तकनीकी विकास जीवन के हर क्षेत्र में अपने पंख फैला चुका है, साहित्य और लेखन भी इस बदलाव का हिस्सा बन रहे हैं। डिजिटल प्लेटफार्मों के माध्यम से साहित्य को वैश्विक पाठकों तक पहुँचाने का जो अवसर प्राप्त हुआ है, वह न केवल हमारी क्षेत्रीय भाषाओं की धरोहर को संरक्षित कर रहा है, बल्कि युवा पीढ़ी को भी इसके प्रति आकर्षित कर रहा है। ‘लेखक गाँव’ की यह पहल युवाओं को उनकी जड़ों से जोड़ेगी और उन्हें आत्म-चिंतन के नए आयाम प्रदान करेगी।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और तकनीकी नवाचार के माध्यम से हम साहित्य को न केवल संरक्षित कर सकते हैं बल्कि क्षेत्रीय साहित्य का वैश्विक स्तर पर संचार कर सकते हैं। यह तकनीकी प्रगति लेखकों को सशक्त बनाएगी कि वे अपने विचारों को और भी व्यापक रूप में समाज तक पहुँचा सकें। डिजिटल प्लेटफार्मों पर लेखन के माध्यम से युवा पीढ़ी को साहित्य के प्रति आकर्षित करना और इसे समाज के अन्य पहलुओं से जोड़ना, एक समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित रखने का मार्ग प्रशस्त करता है।

परिवर्तन का आधार: साहित्य और समाज की साझेदारी

लेखन, चाहे वह एक कविता हो, एक निबंध, एक ब्लॉग या फिर एक समाचार संपादकीय – यह समाज में जागरूकता का प्रसार करने और सकारात्मक परिवर्तन लाने का एक सशक्त माध्यम है। यह लेखनी की ताकत ही है कि लेखक अपने विचारों और शोध को जनमत में बदल सकते हैं।

उत्तराखंड की धरती, जहाँ महर्षि वेदव्यास, गुरु द्रोणाचार्य और आदि शंकराचार्य की तपस्या का अमिट प्रभाव है, वहीं आधुनिक काल में सुमित्रानंदन पंत और शैलेश मटियानी जैसे महान साहित्यकारों ने इस धरती को गौरव प्रदान किया है। यह पुण्यभूमि साहित्य, कला और संस्कृति के क्षेत्र में एक नई प्रेरणा का स्रोत बन सकती है, जहाँ नवोदित लेखक अपनी लेखनी के माध्यम से समाज में नए बदलाव का संचार कर सकें।

नए भारत के निर्माण में साहित्य का योगदान

महोत्सव को सम्बोधित करते हुए राज्यपाल ने कहा कि आज जब भारत ‘विकसित भारत’, ‘आत्मनिर्भर भारत’, और ‘विश्वगुरु भारत’ के संकल्पों के साथ आगे बढ़ रहा है, तब यह आवश्यक है कि हम अपनी सांस्कृतिक और साहित्यिक जड़ों को मजबूती से थामे रहें। एक नए भारत की दिशा में साहित्य और लेखन का यह प्रयास एक अहम भूमिका निभा सकता है।
राज्यपाल गुरमीत सिंह ने कहा की उत्तराखण्ड की इस धरती पर लेखक गाँव की स्थापना न केवल एक स्थल की रचना है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक और साहित्यिक जड़ों से जुड़े रहने का एक प्रयास है। इस पहल के लिए स्पर्श हिमालय फाउंडेशन और इसके संस्थापक डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ को  शुभकामनाएँ।

उन्होंने कहा कि ‘स्पर्श हिमालय फाउंडेशन’ का यह महोत्सव इस दिशा में एक सार्थक प्रयास है, जो उत्तराखंड को एक साहित्यिक पहचान प्रदान करेगा। यह महोत्सव, जो साहित्य, कला, और संस्कृति के सृजनात्मक प्रवाह का केंद्र बन चुका है, निस्संदेह आने वाले समय में समाज को नई दिशा देगा और साहित्य, संस्कृति, तथा कला के क्षेत्र में नए आयाम स्थापित करेगा।

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