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उत्तराखंड की माटी के लाल : साहित्यकार डॉ• योगम्बर सिंह बर्त्वाल

देहरादून

हम उन्हें चलता फिरता पुस्तकालय कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। दो हजार गांवों का भ्रमण और उन गांवों की भौगोलिक, ऐतिहासिक जानकारी स्वयं में समेटे हुए, 400 से अधिक लोगों से नेत्रदान का संकल्प पत्र भरवाने वाले समाजसेवी, सरकारी सेवा के साथ – साथ पत्रकारिता और साहित्य में अपनी विशिष्ट पहचान रखने वाले स्वास्थ्य विभाग से सेवानिवृत्त 75 वर्षीय डॉ• योगम्बर सिंह बर्त्वाल जी समाज के लिए आदर्श हैं। लगभग दो दर्जन पुस्तकों के लेखक डॉक्टर बर्त्वाल जी ने लगभग 300 दुर्लभ पत्र, डायरियां आदि भारत सरकार के रिकॉर्ड में दर्ज भी कराई हैं। यह दुर्लभ पत्र और डायरिया उन्होंने विभिन्न स्रोतों से, विभिन्न व्यक्तियों से जुटाई हैं। 75 वर्ष की उम्र में भी अभी डॉक्टर बर्त्वाल जी लेखन में सतत साधनारत हैं।

डॉ• बर्त्वाल जी ने बताया कि वह काल्पनिक कविता या कहानी लिखने में समय बर्बाद नहीं करते हैं बल्कि देश और प्रदेश के जो वास्तविक नायक हैं, जिन्होंने अपने देश – प्रदेश के लिए अपना समय, अपना जीवन नि:स्वार्थ भाव से लगाया है उन पर उनकी कलम चलती है। चंद्र कुंवर बर्त्वाल जी हों या उमाशंकर सतीश जी या नरेंद्र सिंह भंडारी जी—– ऐसे नायकों पर उनकी कलम खूब चली है। यायावर ययाति के पत्र—– उनकी विभिन्न महान हस्तियों को लिखे गए पत्रों का संकलन है; जो कि बहुत प्रसिद्ध और चर्चित है। डॉक्टर बर्त्वाल जी स्वास्थ्य विभाग में सेवा के दौरान देश के विभिन्न भागों में सेवारत रहे और वे जिस क्षेत्र में भी गए उन्होंने उस क्षेत्र के इतिहास, भूगोल की विस्तृत जानकारी प्राप्त की।

डॉक्टर बर्त्वाल जी की स्मरण शक्ति अद्भुत है। उन्हें उत्तराखंड के साथ – साथ देश के विभिन्न भागों का इतिहास कालखंड क्रमानुसार मौखिक याद है। विलक्षण प्रतिभा के धनी डॉ• बर्त्वाल जी विभिन्न सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। चंद्र कुमार बर्त्वाल शोध संस्थान के माध्यम से उन्होंने कई कार्यक्रम चलाए हैं जिससे कि आने वाली पीढ़ी चंद्र कुमार बर्त्वाल जी को जान सके।
समाज के सजग प्रहरी, सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर भाग लेने वाले, धरातलीय लेखन करने वाले, समाज के आदर्श, बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉक्टर योगम्बर सिंह बर्त्वाल जी को सादर नमन, वंदन और अभिनंदन।

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