चंदा मामा कुंवारे बैठे हैं। चांदनी इंस्टाग्राम पर इठला रही है। रील बना रही है। यूट्यूब चैनल पर कुंवारों से सब्सक्राइबर बढ़ा रही है। फ्रेंड रिक्वेस्ट सेंड कर रही है लेकिन शादी के नाम पर ठेंगा दिखा रही है।
सरकारी नौकरी भी है; लेकिन घर एक पहाड़ी जिले के गांव में है जहां से राजधानी का सफर पूरे दिन का है। बहुत बरसों से चांदनी की खोजबीन हो रही है; लेकिन हर दल बदलू नेता की लालबत्ती पाने की इच्छा की तरह हर चांदनी की चाहत है कि उसका चांद राजधानी में रहता हो।
साहब हैं कि हर साल दूसरों का चांद देखते – देखते कब 40 प्लस के हो गए पता ही नहीं चला। सर के घने काले बाल सब यूं उड़ गए हैं जैसे चार धाम यात्रा मार्गों से सुंदर सजीले वृक्ष।सरकारी दूल्हा देखकर भी घर की दहलीज पर आया रिश्ता कई बार यूं अचानक रुक जाता है ज्यों राजधानी देहरादून में टोल प्लाजा पर नया चार पहिया वाहन। भारत – चीन सीमा तक सड़क मार्ग बन गया है, ऋषिकेश – कर्णप्रयाग रेल लाइन का काम प्रगति पर है, गौचर, अगस्त्यमुनि, केदारनाथ, बद्रीनाथ तक हवाई सेवा उपलब्ध है, दुनिया हाथ में फोन साथ में लेकिन गढ़वाली फिल्मों/एलबम की बांद और छोरी जैसे —-शब्दों की तरह पहाड़ी पहलवान से रिश्ता कायम करने को कोई नखरीली नायिका हामी नहीं भर रही है।
साहब! एक दिन कह रहे थे कि सुबह जब सोकर उठता हूं और मुंह धुलता हूं तो पता ही नहीं चलता कि मुंह और शीश की सीमा भारत चीन सीमा की तरह है कहां तक।
उत्तराखंड में ज्यों रोज विधायक जी से पत्नी पूछती हैं आप मंत्री पद की शपथ कब ले रहे हैं? की तर्ज पर साथी पूछते हैं डॉक्टर साहब डॉक्टरनी कब आएगी। भाभी पूछती हैं देवरानी कब आएगी। छोटा भाई पूछता है भाभी जान कब आएंगी। माता – पिता पूछते हैं बहु रानी कब आएगी।
हर साल करवाचौथ पर दूसरों के चांद को देखकर साहब बहुत विचलित हो जाते हैं। बहुत ढूंढने और खोजबीन करने पर भी यहां तक कि समझौते के मंत्र का जाप करते हुए भी गठबंधन सरकार बनने की दूर-दूर तक कहीं कोई संभावना नजर नहीं आ रही है।
साहब का कहना है कि पूनम का चांद न सही अमावस का चांद भी चलेगा, चंद्र ग्रहण की चांदनी भी मान्य है अर्थात परित्यक्ता चांद, वैधव्य जीवन जीने वाले चांद से भी गृहस्थी का घराट प्रसन्नता पूर्वक चलाने को भी राजी हूँ। मगर छोटे दल, निर्दलीय भी अपनी शर्तों पर भी समर्थन देने को तैयार नहीं हैं। एक दिन साहब मुलायम सिंह यादव जी का गुणगान करते हुए कहने लगे चचा ठीक ही कहते थे। वे भविष्य द्रष्टा थे। वे ठीक ही कहते थे कि जवानी में बच्चों से गलतियां हो ही जाती हैं। कुंवारे कुमारों द्वारा भविष्य में गलतियों की सम्भावना खतरे की घण्टी है। विवाह नामक संस्था चुनौती बन सकती है। गन्धर्व विवाह को तो स्वीकृति मिल ही गई है अब राक्षस विवाह मजबूरी बन जाएगी। भली करें राम जी।
तभी साहब गुनगुनाने लगते हैं। तन से तन का मिलन हो न पाया तो क्या
मन से मन का मिलन कोई कम तो नहीं
उधर जब टीवी / मोबाइल या रेडियो पर गाना बजता है-
सजना है सजना के लिए—— तो साहब बहुत रोमांटिक हो जाते हैं। अपने मन की व्यथा सबसे जताते हैं लेकिन आशा/ उम्मीद का मरहम लगाने को कोई हामी नहीं भरता है।
हे करवाचौथ! तू बार-बार आता है, कुंवारों को तड़पाता है।
आधा है चंद्रमा रात आधी
रात आधी बात आधी—
उम्र भी आधी निकल गई है और बात भी पूरी नहीं हो पाई अर्थात गृहस्थी का चूल्हा जला ही नहीं।
हे करवाचौथ! तू कुंवारे पुरुषों की पीड़ा नहीं समझ पाता है।
अपना उत्तराखंडी तो नहीं लगता है तू। हमारे गढ़वाली, कुमाऊंनी, जौनसारी तो इतने क्रूर नहीं होते हैं लगता है तू कहीं दूसरे मुल्क से यहां आया है। तूने सोचा होगा कि —साडे नाल रहोगे तो ऐस करोगे—-खूब करोड़ों का व्यापार चल रहा है।
अब तो ज्यों हम पहाड़ियों को पहाड़ी तो छोड़ो हिंदी बोलने में भी शर्म आती है। टूटी – फूटी /अशुद्ध अंग्रेजी बोलने में शर्म नहीं आती है—–।
सरल, निर्व्यसनी, परिश्रमी, शिक्षित पहाड़ी युवाओं से गृहस्थी बसाने में सौ नखरे, हजार फरियाद और अपरिचित कूली – कबाड़ी, फेरी वाले, नशे के व्यापारी से इश्क जताने, सैकड़ो किलोमीटर की दौड़ लगाने के बाद लौट के बुद्धू घर को आए——सावधान!
हेलो करवाचौथ! आई एम स्पीकिंग फ्रॉम उत्तराखंड।
#हैप्पी_करवाचौथ