जब कोई भी बालिका किसी भी क्षेत्र में अपने उस मुकाम में कामयाबी हासिल करती है जिसके सपने वह संजोए रहती है तो वह हर बालिका के लिए प्रेरणा बन जाती है। घर-परिवार से लेकर बाहर तक सभी गौरवान्वित होते हैं। देश का नाम रोशन होता है। भारत में बालिकाओं को आगे न बढ़ने देने की जो परंपरा चली आ रही है उसमें बदलाव भी हो रहा है। जिन बालिकाओं के अभिभावक यह समझते हैं कि बालिकाओं को उनके अधिकारों से वंचित नहीं रखना चाहिए वे ही बेहिचक किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए कदम उठा पाती हैं। राज्य सरकारें व केंद्र सरकारें बालिकाओं के विकास के लिए अनेकों योजनाएं चलाती आ रही हैं। इन योजनाओं का लाभ तभी मिलेगा जब वे जागरूक होंगी, उनके अभिभावक जागरूक होंगे। उनको उनके अधिकारों से वंचित नहीं रखा जाएगा। जब बालिकाओं की नींव मजबूत होगी तभी एक स्वस्थ समाज की परिकल्पना साकार होना संभव होगा। महिला सशक्तिकरण को लेकर काफी कुछ किया जा रहा है। मगर समाज में अभी भी ऐसी संकीर्ण सोच के लोग हैं जो बालिकाओं को स्वतंत्र रूप से जीने का अधिकार छीन लेते हैं। यही कारण है कि बालिकाओं के साथ आज भी ऐसे-ऐसे कुकृत्य होते हैं जिनके बारे में जाानकर रूह कांप उठती है। यह सत्य है कि बालिकाओं की स्थिति में सुधार हुआ है लेकिन इस बात को नकारा भी नहीं जा सकता कि बालिकाओं की स्थिति वर्तमान में भी काफी चिंताजनक ही है। यदि निष्पक्षता से पूरे देश में बालिकाओं की वास्तविक स्थिति का सर्वेक्षण कराया जाए तो उनको सशक्त बनाने का दावा ठोकने वालों का सच धरातल पर आ जाएगा। आज के दौर में भी अनेकों बालिकाएं अपने घर-परिवार व समाज के बीच पिसकर नरक व कुंठा का जीवन जी रही हैं। उनकी आवाज को दबा दिया जाता है। इसका जिम्मेदार समूचा समाज ही तो है। एक तरफ पाबंदियां तो दूसरी तरफ उन्हें सशक्त बनाने के खोखले दावे।
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