उत्तराखण्ड//देहरादून//डोईवाला
उत्तराखंड, जिसे देवभूमि कहा जाता है, इन दिनों जंगल की आग से जूझ रहा है। हर साल वन विभाग आग लगने से होने वाले नुकसान को कम करने के बड़े-बड़े दावे करता है, लेकिन हकीकत यह है कि स्थिति साल दर साल भयावह होती जा रही है।
हाल ही में, राज्य के कई जिलों में भयंकर जंगल की आग लगी है, जिससे वनस्पतियों और जीवों को भारी नुकसान हुआ है। आग से कई घर और संपत्ति भी नष्ट हो गई हैं।
यह कहना गलत नहीं होगा कि जंगल की आग उत्तराखंड के लिए एक गंभीर समस्या बन गई है।
इस समस्या का समाधान ढूंढने के लिए, हमें जंगल के प्रबंधन में जनभागीदारी को बढ़ावा देना होगा।
*जनभागीदारी के महत्व:*
*स्थानीय लोगों को जागरूक बनाना:* जनभागीदारी के माध्यम से, हम स्थानीय लोगों को जंगल की आग के खतरों और इसके रोकथाम के तरीकों के बारे में जागरूक बना सकते हैं।
*आग लगने की सूचना देने में मदद:* स्थानीय लोग जंगल में आग लगने की सूचना तुरंत वन विभाग को दे सकते हैं, जिससे आग को समय रहते बुझाया जा सके।
*आग बुझाने में सहायता:* स्थानीय लोगों को आग बुझाने के प्रशिक्षण दिया जा सकता है, ताकि वे आपातकालीन स्थिति में वन विभाग की मदद कर सकें।
*वन संरक्षण में सहयोग:* जनभागीदारी के माध्यम से, हम स्थानीय लोगों को वन संरक्षण के महत्व के बारे में शिक्षित कर सकते हैं और उन्हें वनरोपण और अन्य गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं।
यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि जंगल की आग की समस्या का समाधान केवल वन विभाग के प्रयासों से नहीं हो सकता है। इसके लिए, हमें जनभागीदारी को बढ़ावा देना होगा और स्थानीय लोगों को इस समस्या से निपटने में शामिल करना होगा।
यह तभी संभव होगा जब वन विभाग और स्थानीय लोग मिलकर काम करें और जंगल के संरक्षण के लिए एकजुट प्रयास करें।
*अंकित तिवारी शोधार्थी, अधिवक्ता एवं पूर्व विश्वविद्यालय प्रतिनिधि हैं*