कर्णप्रयाग(अंकित तिवारी): डॉ. शिवानंद नौटियाल राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, कर्णप्रयाग के एनसीसी कैडेटों ने 23 अगस्त को दूसरे राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस के रूप में चंद्रयान-3 की चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर ऐतिहासिक सॉफ्ट लैंडिंग की वर्षगांठ मनाई। इस अवसर पर, 13 एसडी प्लाटून एनसीसी सब यूनिट ने भारत के अंतरिक्ष अन्वेषण में बढ़ती प्रतिष्ठा और सफलता को चिह्नित करने के लिए एक विशेष व्याख्यान श्रृंखला आयोजित की।
विशेष अतिथि और प्रमुख व्याख्यान
कार्यक्रम का उद्घाटन प्रभारी प्राचार्य डॉ. अखिलेश कुकरेती द्वारा किया गया। उन्होंने इसरो के वैज्ञानिकों को श्रद्धांजलि अर्पित की और छात्रों को विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में करियर बनाने के लिए प्रोत्साहित किया। इस अवसर पर, डॉ. एम. एल. शर्मा ने भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रमों की विस्तार से चर्चा करते हुए बताया कि कैसे इसरो ने उपग्रह प्रक्षेपण में वैश्विक स्तर पर अपनी भूमिका को बढ़ाया है। उन्होंने 2035 तक प्रस्तावित भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन और भारत की बढ़ती व्यावसायिक भूमिका पर भी प्रकाश डाला।
डॉ. इंद्रेश पांडे ने भारत के खगोलीय ज्ञान की प्राचीन धारा पर चर्चा करते हुए आर्यभट्ट की सूर्यकेंद्रित अवधारणा को याद किया, जो कोपरनिकस से भी पहले थी। उन्होंने अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के विभिन्न क्षेत्रों में उपयोग, जैसे सुदूर संवेदन, जीआईएस, मौसम पूर्वानुमान, कृषि और रक्षा, पर विस्तृत जानकारी दी।
भारत की अंतरिक्ष यात्रा की उपलब्धियाँ
इस अवसर पर डॉ. नरेंद्र पंघाल ने भारत की हालिया अंतरिक्ष उपलब्धियों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया, जिनमें ऑपरेशन सिंदूर, मंगलयान, आदित्य एल1 सौर वेधशाला, और भारत के भविष्य के मिशन जैसे गगनयान, चंद्रयान-4 और 5, शुक्रयान, मंगलयान-2 और भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की योजनाओं पर चर्चा की। उन्होंने 2040 तक चंद्रमा पर एक भारतीय को उतारने की योजना का भी उल्लेख किया।
कार्यक्रम का संचालन और भागीदारी
इस कार्यक्रम का संचालन सार्जेंट अंशुल ने किया। कैडेटों ने एसयूओ अनुज के मार्गदर्शन में सक्रिय रूप से भाग लिया और भारत की अंतरिक्ष यात्रा पर अपने विचार साझा किए। इस समारोह में डॉ. कमल किशोर द्विवेदी और डॉ. पूजा भट्ट सहित कई प्राध्यापकों की उपस्थिति रही, जिन्होंने कैडेटों की उत्साहपूर्ण भागीदारी की सराहना की।
इस कार्यक्रम ने भारत के अंतरिक्ष अन्वेषण के प्राचीन ज्ञान और आधुनिक उपलब्धियों को एक साथ लाकर छात्रों को वैज्ञानिक प्रयासों में योगदान करने के लिए प्रेरित किया।