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बांग्लादेश के घटनाचक्र पर भारत की कूटनीतिक मोर्चे पर चुनौतियां : कमल किशोर डुकलान ‘सरल’

उत्तराखंड//हरिद्वार//रुड़की

बांग्लादेश के घटना चक्र पर भारत की कूटनीतिक मोर्चे पर चुनौतियां बढ़ती दिख रही हैं। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के पलायन के बाद बांग्लादेश में जो भारत विरोधी तत्व पहले से सक्रिय थे उनके द्वारा भारत विरोधी भावनाएं एक बार फिर से बढ़ रही हैं,जो कि चिंताजनक है।……

बांग्लादेश देश की पूर्व प्रधानमंत्री का पलायन के बाद उनके भारत आने और बांग्लादेश लौटने की संभावनाएं शून्य होने के साथ ही पश्चिम के देशों ने जिस प्रकार उनसे मुंह मोड़ा,उससे साफ है कि भारत को बांग्लादेश में अपने हित सुरक्षित करना और कठिन हो सकता है। ब्रिटेन शेख हसीना को शरण देने को तैयार नहीं और अमेरिका ने तो न केवल उनका वीजा ही रद कर दिया, बल्कि वहां की सेना को यह जानते हुए भी सलाम किया कि वह अंतरिम सरकार में कट्टरंपथी तत्वों की भागीदारी के लिए आज भी तैयार है।
फिलहाल यह कहना कठिन है कि बांग्लादेश में सेना के वर्चस्व वाली अंतरिम सरकार का भारत के प्रति मित्रवत रवैया रहेगा। इस सरकार में घोर भारत विरोधी कट्टरपंथी संगठन जमाते इस्लामी के शामिल होने के साथ ही विपक्षी नेता एवं पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया की भागीदारी से इंकार नहीं किया जा सकता, जिनसे भारत के संबंध कभी सहज नहीं रहे। यदि इस अंतरिम सरकार में उन तत्वों की भागीदारी बढ़ी,जो कभी शेख हसीना को नई दिल्ली की कठपुतली बताते थे,उनसे भारत की चुनौतियां और बढ़ जाएंगी।
बांग्लादेश में भारत के नजरिये से असहमत पश्चिमी देशों के साथ चीन का भी दखल बढ़ने का अंदेशा है। चीन पहले से ही मालदीव एवं नेपाल में अपना प्रभाव बढ़ा चुका है और पाकिस्तान तो उसकी गोद में ही बैठा है। वह श्रीलंका में भी अपना दबदबा बढ़ाने की ताक में है। एक अन्य पड़ोसी देश म्यांमार भी अस्थिरता से जूझ रहा है और वहां भी चीन का दखल साफ बढ़ता दिख रहा है।

भारत की समस्या केवल यह नहीं है कि वह बांग्लादेश में अपने हितों की रक्षा कैसे करे,बल्कि यह भी है कि वहां के अल्पसंख्यकों और विशेष रूप से हिंदुओं को वहां कैसे बचाया जाए? आरक्षण विरोध के बहाने शेख हसीना को सत्ता से हटाने के आंदोलन के दौरान हिंदुओं पर छिटपुट हमले ही हो रहे थे,लेकिन तख्तापलट के बाद तो उनकी शामत ही आ गई है।
बांग्लादेश का शायद ही कोई ऐसा देश है,जहां से हिंदुओं के घरों, दुकानों और मंदिरों को निशाना बनाए जाने का समाचार लगातार आ रहे हैं। बांग्लादेश देश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के शासन में जो हिंदू खुद को थोड़ा-बहुत सुरक्षित महसूस करते थे,वे फिलहाल घटनाचक्र के बाद अपने को असहाय-निरुपाय महसूस कर रहे हैं।
बांग्लादेश के घटनाचक्र के बाद चिंता की बात यह है कि जो हिन्दू शेख हसीना के शासन में अपने को सुरक्षित महसूस कर रहे थे वे शेख हसीना के पलायन के बाद बांग्लादेश की सेना उनकी रक्षा को उतनी तत्पर नहीं दिखती,जितना उसे दिखना चाहिए। बांग्लादेश देश में जिस तरह से अराजकता के बीच नेताओं पर हमले किए जा रहे हैं और मंदिरों पर हमला करके उन्हें जलाया जा रहा है तथा हिन्दुओं पर हमले किए जा रहे हैं इसके लिए
भारत को बांग्लादेश के हिंदुओं को बचाने के लिए कुछ करना होगा, अन्यथा उनका वैसा ही बुरा हाल होगा, जैसे अफगानिस्तान में पहले हुआ और पाकिस्तान में हो रहा है।

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