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संपादकीय : हिंदी दिवस–अपनी भाषा अपनी पहचान

उत्तराखंड//देहरादून
(अंकित तिवारी)

हिंदी दिवस हमारे देश के सांस्कृतिक और भाषाई धरोहर का प्रतीक है। यह दिन न केवल हिंदी भाषा के महत्व को रेखांकित करता है, बल्कि यह हमें अपने भारतीय होने पर गर्व भी दिलाता है। हिंदी, जो भारतीय जनमानस की आत्मा है, सदियों से हमारे देश की विविध संस्कृतियों और विचारधाराओं को एक सूत्र में पिरोने का कार्य करती आई है। यह भाषा न केवल संवाद का साधन है, बल्कि हमारे इतिहास, साहित्य, और सभ्यता का दर्पण भी है।यह कहना है स्पर्श हिमालय विश्वविद्यालय देहरादून के हिंदी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ मनीषा अग्रवाल का।उनके अनुसार
आज के इस आधुनिक युग में, जहाँ अंग्रेजी और अन्य भाषाओं का भी बहुत महत्व है, वहाँ हिंदी की महत्ता कहीं कम नहीं हुई है। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि जो देश अपनी मातृभाषा को सशक्त बनाता है, वह देश विश्व में अपने स्थान को सुदृढ़ करता है। हिंदी के प्रति हमारी श्रद्धा और समर्पण ही उसे नई ऊँचाइयों पर ले जा सकता है।

हिंदी विभाग, स्पर्श हिमालय विश्वविद्यालय की सहायक आचार्य डॉ ममता कुंवर कहती है कि हिंदी दिवस पर हम सभी को यह संकल्प लेना चाहिए कि हम अपने दैनिक जीवन में हिंदी का अधिकाधिक प्रयोग करेंगे। हिंदी भाषा न केवल हमारी मातृभाषा है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक और बौद्धिक धरोहर भी है। जिस प्रकार से आज के समय में हम अन्य भाषाओं का महत्व समझते हैं, उसी प्रकार हिंदी को भी एक सशक्त और वैश्विक भाषा बनाने के लिए प्रयासरत होना चाहिए।

*हिंदी शोध के प्रति विचार*
हिंदी भाषा और साहित्य में शोध करना न केवल अकादमिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक और सामाजिक चेतना को भी प्रोत्साहित करता है। डॉ मनीषा अग्रवाल के अनुसार, “हिंदी शोध का क्षेत्र व्यापक है और यह विभिन्न विषयों जैसे साहित्य, समाजशास्त्र, मीडिया, और लोकसाहित्य के माध्यम से समाज की जटिलताओं को समझने का एक सशक्त माध्यम है।” उन्होंने यह भी बताया कि शोध छात्रों को समसामयिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और हिंदी भाषा के माध्यम से नए विचारों का सृजन करना चाहिए।

डॉ ममता कुंवर मानती हैं कि हिंदी में शोध करने का अर्थ केवल किसी विषय पर जानकारी एकत्र करना नहीं है, बल्कि इसके माध्यम से समाज में परिवर्तन लाने का प्रयास करना है। उन्होंने कहा, “हिंदी शोध का उद्देश्य केवल साहित्यिक या भाषाई अध्ययन नहीं होना चाहिए, बल्कि यह समाज के हर वर्ग तक पहुंच कर सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक परिवर्तनों का मार्गदर्शन भी करना चाहिए।”

इस हिंदी दिवस पर, हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम हिंदी भाषा को नई ऊँचाइयों तक ले जाने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे। हिंदी भाषा में शोध को और अधिक प्रोत्साहित करना हमारी जिम्मेदारी है ताकि यह आने वाली पीढ़ियों को एक सशक्त और समृद्ध भविष्य दे सके।

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