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बाल कैंसर की रोकथाम और उपचार में जागरूकता का महत्व: डॉ अमित सहरावत

ऋषिकेश (अंकित तिवारी): –  एम्स ऋषिकेश के मेडिकल ऑन्कोलॉजी विभाग एवं नेटवर्क ऑफ़ ऑन्कोलॉजी क्लीनिकल ट्रायल इन इंडिया (एनओसीआई) के सयुंक्त तत्वावधान में ‘गोल्ड सितंबर: बाल कैंसर जागरूकता माह’ के अवसर पर एक जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में कैंसर चिकित्सा विभाग के सह आचार्य डॉ. अमित सहरावत ने बाल कैंसर के महत्व, इसके लक्षण और समय पर निदान के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि कैंसर के प्रारंभिक लक्षणों को पहचानना और समय रहते उपचार करना बच्चों की जान बचाने के लिए अत्यंत आवश्यक है
डॉ. अमित सहरावत ने बताया की सितंबर का महीना “गोल्ड सितंबर ” के रूप में जाना जाता है, जो बच्चों में होने वाले कैंसर के प्रति जागरूकता प्रसारित करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। बच्चों के कैंसर के प्रकार, लक्षण और इसके उपचार की प्रक्रिया को समझना न केवल चिकित्सकों के लिए, बल्कि समाज के हर वर्ग के लिए जरूरी है।
बाल कैंसर जागरूकता: जीवन बचाने के लिए समय पर निदान का महत्व
बाल कैंसर के बारे में जागरूकता बढ़ाना अत्यधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि समय पर निदान से बच्चों के जीवन को बचाया जा सकता है। माता-पिता और देखभाल करने वालों को यह जानना चाहिए कि बच्चों में कैंसर के शुरुआती लक्षण अक्सर सामान्य बचपन की बीमारियों से मिलते-जुलते होते हैं, जिससे निदान में देरी हो सकती है। यह देरी कभी-कभी उपचार को कम प्रभावी बना सकती है और बीमारी के बढ़ने का खतरा बढ़ा देती है।
बचपन में कैंसर का त्वरित निदान क्यों आवश्यक है?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, हर साल लगभग 280,000 बच्चे और किशोर कैंसर का शिकार होते हैं। उनमें से 85% मामलों में ऐसे संकेत और लक्षण होते हैं जिन्हें माता-पिता और देखभालकर्ता पहचान सकते हैं। कैंसर का जल्द पता चलना कई बार जीवन और मृत्यु के बीच का अंतर साबित होता है। समय रहते निदान होने से उपचार सरल और अधिक प्रभावी हो सकता है।

बच्चों के कैंसर के प्रकार

बच्चों के कैंसर के प्रकार और लक्षण बचपन में होने वाले कैंसर एक गंभीर चुनौती के रूप में सामने आते हैं। पारिवारिक इतिहास और कुछ आनुवंशिक कारणों से कैंसर की संभावना बढ़ जाती है। बच्चों में कैंसर एक गंभीर और संवेदनशील विषय है, जिसे अक्सर समझने और जागरूकता फैलाने की आवश्यकता होती है। बच्चों के कैंसर के मामले वयस्कों से अलग होते हैं। बचपन में कैंसर के कई प्रकार हो सकते हैं। सबसे आम प्रकार हैं:ल्यूकेमिया (रक्त कैंसर) – 31%, ब्रेन ट्यूमर – 26%,लिम्फोमा – 10%, सॉफ्ट टिश्यू सारकोमा – 7%,न्यूरोब्लास्टोमा – 6%, किडनी ट्यूमर – 5%,हड्डियों के ट्यूमर – 4%,रेटिनोब्लास्टोमा (आँख का कैंसर ) – 3%,जर्म सेल ट्यूमर- 3%,लिवर ट्यूमर- 3% इत्यादि । इनमें से ल्यूकेमिया और ब्रेन ट्यूमर सबसे ज्यादा पाए जाते हैं, और इनके लक्षण अन्य सामान्य स्वास्थ्य समस्याओं से मिलते-जुलते हो सकते हैं, जिससे इनके निदान में देरी हो सकती है। इनमें से ब्रेन ट्यूमर बच्चों में बड़ों की अपेक्षा ज्यादा देखा जाता है।

कैंसर के सामान्य संकेत और लक्षण

कैंसर के सामान्य संकेत और लक्षण बच्चों में कैंसर के कुछ सामान्य लक्षणों में शामिल हैं: गर्दन, बगल या कमर में गांठ, अचानक वजन घटना, रात में पसीना आना, आंखों में सफेद चमक, लाल धब्बे या आँखों का पीलापन, सिरदर्द, थकान, भूख में कमी, हड्डियों और जोड़ों में दर्द, गंभीर और लगातार संक्रमण इनमें से कोई भी लक्षण दिखाई देने पर बिना देरी के डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए। जितनी जल्दी कैंसर का निदान होगा, बच्चे के ठीक होने की संभावना उतनी ही अधिक होगी। बच्चों में कैंसर के लक्षण कई बार सामान्य बीमारियों जैसे प्रतीत होते हैं, जिससे इसका समय पर निदान मुश्किल हो सकता है। हैं। यदि ऐसे लक्षण समय पर पहचाने जाएं, तो चिकित्सा के द्वारा इसका उपचार प्रारंभ किया जा सकता है।

माता-पिता और देखभालकर्ताओं की भूमिका
कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए कैंसर चिकित्सा विभाग के सह आचार्य डॉ दीपक सुन्द्रियाल ने कहा की बच्चों में कैंसर के शुरुआती लक्षण पहचानने में माता-पिता और देखभालकर्ताओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। नियमित रूप से बच्चों के स्वास्थ्य पर ध्यान देना और किसी भी असामान्य बदलाव को नज़रअंदाज़ न करना ज़रूरी है। अगर बच्चा बार-बार थका हुआ महसूस करता है, सिरदर्द की शिकायत करता है, जी मितलाना या उसकी भूख में कमी है, तो यह चेतावनी का संकेत हो सकता है। इसके अलावा, शरीर पर गांठ, आंखों में चमक, या किसी अन्य असामान्यता का पता चलने पर तुरंत विशेषज्ञ की सलाह लेना महत्वपूर्ण है।
समय पर निदान से फायदे
कैंसर के त्वरित निदान से न केवल बच्चे की जान बचाई जा सकती है, बल्कि उसे पीड़ा से भी बचाया जा सकता है। समय रहते निदान होने पर कम गहन और अधिक किफायती उपचार संभव होता है, जिससे बच्चे की जीवन की गुणवत्ता भी बनी रहती है।
किशोर बच्चों को आत्म-जांच के लिए शिक्षित करना
बचपन से ही बच्चों को अपने शरीर के प्रति जागरूक बनाना महत्वपूर्ण है। जैसे-जैसे वे बड़े होते हैं, उन्हें अपने शरीर में किसी भी असामान्य बदलाव को पहचानने और माता-पिता या डॉक्टर को बताने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। यह उनके स्वास्थ्य को बनाए रखने में सहायक हो सकता है और किसी गंभीर बीमारी का पता समय रहते लगाने में मददगार साबित हो सकता है।

इलाज की चुनौतियां और संभावना
बच्चों के कैंसर का इलाज संभव है। कीमोथेरेपी, सर्जरी और रेडिएशन से बच्चों को कैंसर से मुक्ति दिलाई जा सकती है।बच्चों के लिए यह सौभाग्य की बात है कि उनके शरीर पर कीमोथेरेपी का सकारात्मक प्रभाव वयस्कों की तुलना में अधिक होता है और इलाज की संभावना भी अधिक रहती है। बच्चों में कैंसर का इलाज सर्जरी, रेडिएशन और केमोथेरेपी से किया जाता है, लेकिन यह प्रक्रिया भी उनके लिए आसान नहीं होती। इसके अलावा, बच्चों को बड़ों से अलग तरह की केमोथेरेपी और रेडिएशन दिया जाता है, जो उनके भविष्य के स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डाल सकता है। केमोथेरेपी और रेडिएशन के दूरगामी प्रभाव बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास पर गहरा असर डाल सकते हैं। विशेष रूप से ब्रेन ट्यूमर के मामलों में बच्चों का इलाज चुनौतीपूर्ण होता है क्योंकि इससे मानसिक और शारीरिक विकास में बाधा उत्पन्न हो सकती है।

मनोवैज्ञानिक समर्थन की भूमिका
बच्चों का शारीरिक उपचार जितना जरूरी है, उतना ही महत्वपूर्ण उनके और उनके परिवार का मानसिक रूप से समर्थन करना है। चिकित्सक के लिए यह एक चुनौतीपूर्ण कार्य होता है, क्योंकि बच्चों को न केवल शारीरिक दर्द का सामना करना पड़ता है, बल्कि मानसिक तनाव से भी गुजरना होता है।
चिकित्सकों के लिए यह एक बड़ी चुनौती होती है कि वे न केवल शारीरिक रूप से बच्चों का इलाज करें, बल्कि उनके और उनके परिवार का मनोवैज्ञानिक समर्थन भी प्रदान करें। कैंसर का सामना करते समय बच्चों और उनके परिवारों के मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना उतना ही महत्वपूर्ण होता है जितना कि उनका शारीरिक उपचार। इसके लिए समाज को भी अपना योगदान देना चाहिए ताकि कैंसर से लड़ रहे बच्चे एक दिन स्वस्थ होकर समाज की मुख्य धारा में शामिल हो सकें। समाज के प्रति बच्चों को एक नई दिशा में लौटाना, उनकी मानसिक स्थिति को सुधारना और परिवार को इस कठिन दौर में सहयोग देना आवश्यक है। चिकित्सकों के लिए बच्चों के कैंसर का इलाज केवल शारीरिक नहीं बल्कि मानसिक और भावनात्मक भी होता है। बच्चे और उनका परिवार गहरे मानसिक तनाव से गुजरता है, इसलिए चिकित्सक को मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना भी आवश्यक है। उनके इलाज का मुख्य उद्देश्य यह होता है कि बच्चे स्वस्थ होकर फिर से समाज की मुख्य धारा से जुड़ सकें।
वित्तीय सहायता और सामाजिक जागरूकता
सरकार और गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) की भूमिका इस दिशा में महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा विभिन्न योजनाओं के तहत बच्चों के इलाज के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
इस सहायता का उद्देश्य कैंसर पीड़ित बच्चों को सही इलाज मुहैया कराना और उन्हें मुख्यधारा में वापस लाना है। हालांकि, कुछ मामलों में कैंसर के अंतिम अवस्था का इलाज एक बड़ी चुनौती साबित होता है, जिसमें हॉस्पिस केअर और पीडियाट्रिक ऑन्कोलॉजी जैसे सेवाओं के विस्तार की आवश्यकता होती है।

समाज की भूमिका और जागरूकता अभियान
बच्चों में कैंसर के प्रति समाज को जागरूक करना और सरकार द्वारा इस दिशा में विशेष अभियान चलाने की आवश्यकता है। एनजीओ, चिकित्सक, और स्थानीय प्रशासन का योगदान महत्वपूर्ण है। यातायात सुविधाएं, मनोवैज्ञानिक इलाज, और हॉस्पिस केअर जैसे क्षेत्रों में ध्यान देकर कैंसर से पीड़ित बच्चों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, कई एनजीओ बच्चों और उनके परिवारों को मनोवैज्ञानिक समर्थन, हॉस्पिस केयर, और यातायात सहायता प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

गोल्ड सितंबर बच्चों के कैंसर के प्रति जागरूकता फैलाने का एक महत्वपूर्ण समय है। माता-पिता, समाज, और सरकार सभी की जिम्मेदारी है कि वे इस दिशा में योगदान दें और यह सुनिश्चित करें कि कैंसर से पीड़ित हर बच्चा उचित इलाज और मानसिक समर्थन प्राप्त कर सके। कैंसर से लड़ाई सिर्फ एक चिकित्सा चुनौती नहीं है, बल्कि यह एक मानवीय दायित्व भी है, जिससे बच्चों को उनके जीवन का सुनहरा भविष्य मिल सके।
बच्चों का कैंसर एक गंभीर और चुनौतीपूर्ण स्थिति है, लेकिन समय पर निदान और सही उपचार से इसे पराजित किया जा सकता है। समाज, सरकार, और चिकित्सकों को मिलकर इस दिशा में प्रयास करना चाहिए, ताकि प्रत्येक कैंसर पीड़ित बच्चा स्वस्थ जीवन की ओर अग्रसर हो सके। जागरूकता, वित्तीय सहायता, और मानसिक सहयोग से बच्चों के कैंसर के खिलाफ जंग में हम सभी को साथ आना होगा।
हर साल सितंबर महीने को ‘गोल्ड सितंबर’ के रूप में मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य बच्चों के कैंसर के प्रति जागरूकता बढ़ाना है। इस दौरान सरकार और समाज को विशेष अभियान चलाने की आवश्यकता है ताकि इस गंभीर मुद्दे पर व्यापक रूप से जागरूकता फैलाई जा सके। कैंसर से लड़ रहे बच्चों के माता-पिता को भी प्रोत्साहित करना आवश्यक है ताकि वे अपने बच्चों के इलाज और मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रख सकें।
कैंसर की अंतिम अवस्था में पहुँचे बच्चों के लिए इलाज करना चिकित्सकों और समाज दोनों के लिए चुनौतीपूर्ण होता है। इसके लिए सरकार और समाज को विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। अधिक से अधिक एनजीओ और समाजसेवी संस्थाओं को इस दिशा में काम करना चाहिए ताकि हर बच्चा, चाहे वह किसी भी अवस्था में हो, उसे बेहतर इलाज और समर्थन मिल सके।
अंततः, चिकित्सक का मुख्य उद्देश्य बच्चों को कैंसर से ठीक कर उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ना होता है। जागरूकता और सहयोग के साथ, हम एक ऐसा भविष्य बना सकते हैं जहाँ बच्चों का कैंसर किसी के लिए भी जीवन का अंत न बने, बल्कि एक नई शुरुआत का प्रतीक हो।
बचपन का कैंसर सिर्फ एक चिकित्सा चुनौती नहीं है, यह एक सामाजिक जिम्मेदारी भी है। हमें इस दिशा में बच्चों के इलाज, उनके मानसिक स्वास्थ्य और परिवार के सहयोग के लिए प्रयास करना चाहिए। जागरूकता, सहयोग, और सकारात्मक दृष्टिकोण से हम बच्चों को एक स्वस्थ और बेहतर भविष्य दे सकते हैं।
बाल कैंसर की पहचान और जागरूकता बढ़ाने के लिए यह आवश्यक है कि हम माता-पिता, शिक्षकों, और स्वास्थ्य कर्मियों के रूप में सतर्क रहें। बच्चों के स्वास्थ्य में किसी भी असामान्यता को अनदेखा नहीं करना चाहिए। समय पर निदान और त्वरित कार्रवाई से बच्चों के जीवन को बचाया जा सकता है और उनका स्वस्थ भविष्य सुनिश्चित किया जा सकता है।
इस मौके पर डॉ मृदुल खन्ना, डॉ निशांत, डॉ कार्तिक, डॉ अनुषा, एनओसीआई से रजत गुप्ता, कुमुद बडोनी, आरती राणा, अनुराग पाल,गणेश पेटवाल सहित कई लोग मौजूद थे ।

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