देहरादून(अंकित तिवारी):- विश्व रेबीज दिवस (28 सितंबर) के मौके पर जहाँ राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत रेबीज से संबंधित जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है, विभिन्न लेखों के माध्यम से बताया जा रहा है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विश्वभर में 70 हजार तो भारत में 20 हजार लोगों की जान हर साल रेबीज से चली जाती है। विश्व रेबीज दिवस पर सतर्क किया जा रहा है कि रेबीज कुत्ते, बिल्ली,बंदर आदि जैसे जानवरों के काटने या खरोंचने के कारण हो सकता है। काटे जाने के बाद क्या करें और क्या न करें की जानकारी दी जा रही है। वहीं देहरादून के जोगीवाला स्थित आर.के.पुरम के निवासी एक और समस्या से जूझ रहे हैं—बंदरों का आतंक। यह समस्या इतनी गंभीर हो चुकी है कि स्थानीय लोगों के लिए घर से बाहर निकलना और अपने घरों में सुरक्षित रहना भी मुश्किल हो गया है।
सेवानिवृत्त प्राचार्य प्रो. के.एल. तलवाड़ ने बताया कि बंदरों के झुंड सुबह, शाम और रात के समय शहीद दीपक द्वार से रेलवे क्रासिंग तक के इलाके में भारी उत्पात मचा रहे हैं। बंदरों द्वारा महिलाओं और बच्चों को चोट पहुंचाने के कई मामले सामने आए हैं, जिससे स्थानीय लोगों में भय का माहौल बना हुआ है। इसके अलावा, इन बंदरों के कारण घरों की पानी की टंकियां, किचन गार्डन, केबल और वाई-फाई वायर, और गेट लैंप भी बर्बाद हो रहे हैं। सब्जी और फल के कैरीबैग्स पर बंदरों का हमला आम बात हो चुकी है।
लगभग दो साल पहले वन विभाग ने बंदरों को पकड़ने के लिए पिंजरा लगाया था, लेकिन उसके बाद से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। अब, आर.के.पुरम महिला समिति ने जनप्रतिनिधियों और वन विभाग से आग्रह किया है कि वे इस समस्या का समाधान निकालने के लिए त्वरित और प्रभावी कदम उठाएं।
रेबीज दिवस पर जारी किए गए निर्देशों में बताया गया है कि रेबीज कुत्ते, बिल्ली, और बंदर जैसे जानवरों के काटने से हो सकता है। इस विषय पर जागरूकता अभियान तो चल रहे हैं, लेकिन बंदरों के आतंक से निजात दिलाने के लिए ठोस कार्रवाई की आवश्यकता है। स्थानीय निवासी उम्मीद कर रहे हैं कि प्रशासन उनकी समस्या पर जल्द ध्यान देगा और उन्हें इस संकट से मुक्ति दिलाई जाएगी।