ऋषिकेश(अंकित तिवारी):
एम्स ऋषिकेश के चिकित्सकों ने एक अभूतपूर्व सर्जरी करके उत्तर प्रदेश की 7 वर्षीय बच्ची को नया जीवन प्रदान किया है। जन्मजात हृदय रोग से पीड़ित इस बच्ची की हृदय की धमनियां असमान्य रूप से विपरीत दिशा में स्थित थीं, जिसके कारण उसकी जान संकट में थी। सर्जरी के बाद अब बच्ची पूरी तरह से स्वस्थ है और उसे अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया है।
उत्तर प्रदेश के भंगरोला गांव की रहने वाली राधिका (बदला हुआ नाम) पिछले एक वर्ष से सांस लेने में तकलीफ और जन्म से शरीर के नीलेपन की समस्या से जूझ रही थी। उसे कई अस्पतालों में ले जाया गया, लेकिन कहीं भी इलाज संभव नहीं हो पाया। अंतिम आशा के रूप में, उसके परिवारजन उसे एम्स ऋषिकेश लाए, जहां डॉक्टरों ने जांच के बाद पता लगाया कि वह “ट्रांसपोजिशन ऑफ ग्रेट आर्टरीज” नामक एक गंभीर जन्मजात हृदय रोग से पीड़ित है। इस रोग में हृदय की मुख्य धमनियां विपरीत स्थानों पर होती हैं, जिससे शरीर में ऑक्सीजन की आपूर्ति सही ढंग से नहीं हो पाती है।
इस विकार में दो मुख्य धमनियों की स्थिति उलट होती है:
फुफ्फुसीय धमनी: यह धमनी रक्त को फेफड़ों तक पहुंचाने का काम करती है।
महाधमनी: यह धमनी हृदय से ऑक्सीजन युक्त रक्त को शरीर के अन्य हिस्सों में पहुंचाती है। धमनियाँ शरीर के परिसंचरण तंत्र का हिस्सा होती हैं, जो पूरे शरीर में रक्त का प्रवाह सुनिश्चित करती हैं। आमतौर पर धमनियाँ ऑक्सीजन युक्त रक्त लेकर शरीर के हिस्सों तक पहुंचती हैं, लेकिन फुफ्फुसीय धमनी ऑक्सीजन-रहित रक्त फेफड़ों तक ले जाती है।
सी.टी.वी.एस विभाग के पीडियाट्रिक कार्डियक सर्जन डाॅ. अनीश गुप्ता ने रोगी की सभी आवश्यक जाचें करवायीं और परिजनों की सहमति पर बच्ची के हृदय की सर्जरी करने का प्लान तैयार किया। इससे पूर्व कार्डियोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. भानु दुग्गल एवं डॉ. यश श्रीवास्तव द्वारा रोगी की इको कार्डियोग्राफी और एन्जियोग्राफी की गयी। डाॅ. अनीश गुप्ता ने बताया कि यह बीमारी जानलेवा है और अधिकांश मामलों में इस बीमारी से ग्रसित 90 प्रतिशत शिशुओं की जन्म के कुछ दिनों बाद ही मृत्यु हो जाती है। डाॅ. अनीश ने बताया कि इस बच्ची को वीएसडी समस्या नहीं थी। ऐसे में बांया वेट्रिकल सिकुड़ जाता है और धमनियों को बदलने वाला (आर्टीरियल स्विच ऑपरेशन) मुश्किल हो जाता है। इसलिए उसके हृदय की धमनियों को न बदलकर एट्रियल चैम्बर के खानों को आपस में बदल दिया गया।सीटीवीएस (कार्डियोथोरेसिक और वैस्कुलर सर्जरी) विभाग के पीडियाट्रिक कार्डियक सर्जन डॉ. अनीश गुप्ता के नेतृत्व में राधिका के हृदय की जटिल सर्जरी की गई। इस प्रक्रिया को “सेनिंग ऑपरेशन” के नाम से जाना जाता है, जिसमें एट्रियल चैम्बर के खानों को आपस में बदल दिया गया। सामान्यत: इस प्रकार की सर्जरी जन्म के तीन सप्ताह के भीतर की जानी चाहिए, लेकिन राधिका के मामले में यह ऑपरेशन उसके 7 साल की उम्र में किया गया, जो कि एक अत्यंत चुनौतीपूर्ण कार्य था। डॉ. अनीश गुप्ता ने बताया कि सर्जरी के बाद बच्ची का ऑक्सीजन सेचुरेशन लेवल 65% से बढ़कर 95% हो गया है, और अब वह बिना किसी कठिनाई के सांस ले पा रही है।
डॉक्टरों की टीम की शानदार उपलब्धि
सर्जरी करने वाली टीम में डॉ. अनीश गुप्ता के साथ डॉ. दानिश्वर मीणा और एनेस्थेसिया विशेषज्ञ डॉ. अजय मिश्रा शामिल थे। इस सफलता के लिए सीटीवीएस विभाग के प्रमुख प्रो. अंशुमान दरबारी और डॉ. नम्रता गौड़ ने इसे विभाग के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि बताया है।
संस्थान का गौरव
एम्स ऋषिकेश की कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर (डॉ.) मीनू सिंह और चिकित्सा अधीक्षक प्रो. संजीव कुमार मित्तल ने इस जटिल शल्य चिकित्सा की सफलता पर खुशी जाहिर की और सर्जरी करने वाली टीम की सराहना की। इस सर्जरी ने उत्तराखंड में चिकित्सा के क्षेत्र में एक नया मील का पत्थर स्थापित किया है।
यह सर्जरी न केवल राधिका के लिए जीवनदान साबित हुई है, बल्कि चिकित्सा के क्षेत्र में एम्स ऋषिकेश की विशेषज्ञता और समर्पण का भी प्रतीक है।