उत्तराखंड(अंकित तिवारी): भारत की धरती सदा से ज्ञान, विज्ञान और साहित्य की महान परंपराओं का केंद्र रही है। यह वही भूमि है जहां नालंदा और तक्षशिला जैसे प्राचीन विश्वविद्यालयों में ज्ञान की गंगा बहती थी। आज, उसी परंपरा को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से ‘लेखक गाँव’ की अवधारणा हमारे सामने प्रस्तुत की गई है, जो न केवल साहित्यिक सृजन, बल्कि कला, संस्कृति और विज्ञान के विभिन्न आयामों को एक मंच प्रदान करने का प्रयास है।
विज्ञान धाम, देहरादून में ‘लेखक गाँव’ की महत्त्वपूर्ण कार्यशाला का आयोजन हुआ, जिसका विषय था, “लेखक गाँव- साहित्य सृजन, कला, संस्कृति और विज्ञान से बनता विश्व के लिए प्रेरणा”। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि, पूर्व शिक्षा मंत्री, भारत सरकार डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने अपने विचार रखते हुए कहा कि भारत विश्व गुरु रहा है और हमारे प्राचीन विश्वविद्यालयों ने ज्ञान के प्रसार में अद्वितीय योगदान दिया है। उनकी इस बात से स्पष्ट होता है कि भारतीय ज्ञान-विज्ञान की पद्धतियाँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं, जितनी प्राचीन काल में थीं। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि ‘लेखक गाँव’ न केवल साहित्यिक गतिविधियों का केंद्र बनेगा, बल्कि यह भारत की ज्ञान परंपरा को विश्व पटल पर ले जाने का माध्यम बनेगा।
‘लेखक गाँव’ के माध्यम से साहित्यकारों, कलाकारों, वैज्ञानिकों और संस्कृति प्रेमियों को एक ऐसा मंच मिलेगा, जहां वे अपनी सृजनात्मकता का प्रदर्शन कर सकेंगे। यह गाँव, साहित्य और विज्ञान को एक साथ जोड़ने का प्रयास है, जिससे कि आने वाली पीढ़ियाँ न केवल अपनी सांस्कृतिक धरोहर से जुड़ी रहें, बल्कि वे विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी अग्रणी बनें। प्रोफेसर दुर्गेश पंत, महानिदेशक यूकॉस्ट ने स्वागत भाषण में साहित्य और विज्ञान के पूरक संबंधों पर बल देते हुए कहा कि लेखक गाँव की अवधारणा साहित्य के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
कार्यक्रम में उपस्थित वक्ताओं ने इस बात पर बल दिया कि हमारी प्राचीन परंपराओं और ग्रंथों में निहित ज्ञान और विज्ञान का विस्तार और प्रसार आज के युवाओं के लिए अत्यंत आवश्यक है। भूतपूर्व निदेशक उच्च शिक्षा डॉ. सविता मोहन ने कहा कि हमारे पौराणिक ग्रंथों और वेदों की ऋचाओं में जो ज्ञान और विज्ञान छिपा है, उसे शिक्षण संस्थानों में पढ़ाया जाना चाहिए।
डॉ सुधा रानी पांडे,भूतपूर्व कुलपति, संस्कृत विश्वविद्यालय हरिद्वार ने कहा कि साहित्य की मौलिकता से सृजनात्मकता आती है जो समाज मे सकारात्मक परिवर्तन लाया जाता है । नयी शिक्षा नीति का मूल ही यही है कि भारतीय ज्ञान परम्परा के माध्यम से समाज का विकास करना चाहिए।
इस अवसर पर लेखक गाँव व हिमालयी क्षेत्र और साहित्य से संबंधित एक सूक्ष्म वीडियो संदेश भी दिखाया गया. कार्यक्रम का संचालन व संयोजन अमित पोखरियाल, जनसंपर्क अधिकारी यूकॉस्ट ने किया । डॉ डी पी उनियाल, संयुक्त निदेशक, यूकॉस्ट ने सभी अतिथियों और प्रतिभागियों का धन्यवाद किया औए कहा कि लेखक ग्राम की अवधारणा साहित्य और विज्ञान के क्षेत्र के लिए एक सकारात्मक संदेश है।
लेखक गाँव की यह पहल हमारे देश के साहित्य और विज्ञान प्रेमियों के लिए एक बड़ा अवसर लेकर आई है। यह एक ऐसा मंच प्रदान करेगा, जहां साहित्यिक पुस्तकों और कृतियों का व्यापक प्रसार होगा, और विभिन्न कार्यशालाओं के माध्यम से नवोदित लेखक, कलाकार और वैज्ञानिक अपनी प्रतिभा को निखार सकेंगे।
आज के समय में, जहां वैश्विक चुनौतियों का सामना करने के लिए सृजनात्मकता और नवाचार की आवश्यकता है, ‘लेखक गाँव’ जैसी अवधारणाएँ युवाओं में नई प्रेरणा का संचार करती हैं। यह गाँव, न केवल साहित्य और विज्ञान का केंद्र बनेगा, बल्कि यह वैश्विक मंच पर भारतीय ज्ञान परंपरा को नए सिरे से पहचान दिलाएगा।
नयी शिक्षा नीति 2020 के माध्यम से देश में ‘स्टे इन इंडिया’ और ‘स्टडी इन इंडिया’ जैसे स्लोगनों को लागू करते हुए यह प्रयास किया जा रहा है कि भारत की शिक्षा व्यवस्था वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बने। इस दिशा में ‘लेखक गाँव’ जैसी पहलें एक अहम भूमिका निभा सकती हैं, क्योंकि ये सृजनात्मकता और नवाचार के माध्यम से नई पीढ़ी को प्रेरित करती हैं।
कार्यक्रम के दौरान माँ सरस्वती की मूर्ति का अनावरण और पौधारोपण जैसे प्रतीकात्मक कार्यों ने इस बात को भी दर्शाया कि यह केवल एक साहित्यिक पहल नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण का भी प्रतीक है। यह गाँव शब्द, शक्ति और साधना का केंद्र बनेगा, जो मानव चेतना के विकास में सहायक सिद्ध होगा।
अंत में, यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि ‘लेखक गाँव’ भविष्य में साहित्य, कला, संस्कृति और विज्ञान के संगम से एक प्रेरणास्त्रोत बनेगा। यह गाँव भारतीय सभ्यता और संस्कृति के संवर्धन के साथ-साथ वैश्विक स्तर पर एक नई पहचान स्थापित करेगा।
इस कार्यक्रम में ग्राफिक एरा, तुलाज इंस्टिट्यूट, सनराइज अकैडमी आदि संस्थानों के लगभग 250 से अधिक शिक्षक और विद्यार्थी तथा यूकॉस्ट और आंचलिक विज्ञान केन्द्र के अधिकारी और कर्मचारी मौजूद रहे।