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“देवभूमि में रचनाधर्मिता का नवांकुर  भारत का पहला लेखक गाँव :कोविंद “

ऋषिकेश(अंकित तिवारी): भारत के पूर्व राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद ने हाल ही में देवभूमि उत्तराखंड में देश के पहले “लेखक गाँव” में आयोजित अंतरराष्ट्रीय साहित्य, संस्कृति एवं कला महोत्सव में भाग लिया। उनका उद्बोधन न केवल साहित्यिक समुदाय के प्रति उनकी गहरी संवेदनशीलता का परिचायक था, बल्कि यह भी दर्शाता था कि कैसे लेखन का कार्य हमारी सांस्कृतिक धरोहर और समाज के परिवर्तन में अपनी अमूल्य भूमिका निभाता है। इस अद्वितीय पहल के लिए श्री कोविंद ने विशेष रूप से डॉ. निशंक को साधुवाद दिया, जिनके प्रयासों से यह अद्वितीय गाँव अस्तित्व में आया है।

साहित्य, संस्कृति और कला के माध्यम से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की गहरी सांस्कृतिक धरोहर को उजागर करने के उद्देश्य से ‘अंतर्राष्ट्रीय साहित्य, संस्कृति एवं कला महोत्सव’ का आयोजन देवभूमि उत्तराखंड के लेखक गाँव में हुआ। इस महोत्सव में अपने-अपने क्षेत्र में विशेषज्ञता रखने वाले प्रतिष्ठित साहित्यकार, कलाकार, और वैज्ञानिकों के साथ-साथ 40 देशों के अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधियों ने अपनी रचनात्मकता का आदान-प्रदान किया। इस ऐतिहासिक अवसर पर पूर्व राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद ने अपने ओजस्वी भाषण में साहित्य और संस्कृति के महत्व को रेखांकित किया, साथ ही लेखक गाँव की स्थापना के पीछे छिपी कहानी और उद्देश्यों को भी विस्तार से साझा किया।

लेखक गाँव की परिकल्पना का जन्म और अटल जी का प्रेरणा-स्त्रोत

पूर्व राष्ट्रपति कोविंद ने अपने संबोधन में बताया कि किस तरह से लेखक गाँव की परिकल्पना भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की प्रेरणा से जन्मी। उन्होंने साझा किया कि 2007 में श्री वाजपेयी ने लेखकों, साहित्यकारों और रचनाकारों की उपेक्षा के प्रति चिंता व्यक्त की थी। अटल जी के कवि हृदय ने इस पीड़ा को भली-भांति समझा और इस दिशा में कुछ ठोस कार्य करने की इच्छा जताई। इस सोच को साकार रूप देने का बीड़ा उठाया साहित्यकार और राजनेता डॉ. निशंक ने, जिन्होंने इस दिशा में पहल की और लेखक गाँव के रूप में इस महान संकल्प को धरातल पर उतारा। निशंक जी ने वाजपेयी जी की भावना का सम्मान करते हुए लेखक गाँव की नींव रखी, जो आज न केवल भारत बल्कि विश्व के साहित्य प्रेमियों के लिए एक प्रेरणास्रोत बन चुका है।

लेखक गाँव का गठन साहित्यिक और सांस्कृतिक चेतना को समर्पित है और इसे भविष्य के रचनाकारों के लिए एक प्रेरणास्त्रोत माना जा सकता है।

लेखन की शक्ति और रचनात्मकता की अमरता

पूर्व राष्ट्रपति ने लेखन की शक्ति पर अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि लेखन मात्र शब्दों का खेल नहीं, बल्कि समाज को दिशा देने वाला एक सशक्त माध्यम है। उन्होंने बताया कि लेखन के माध्यम से किसी व्यक्ति के विचारों और भावनाओं का प्रवाह न केवल उसे आत्मविश्वास प्रदान करता है, बल्कि समाज में एक सकारात्मक परिवर्तन भी ला सकता है। लेखन की यह प्रक्रिया विचारों को व्यवस्थित करने, तार्किक संबंध स्थापित करने और एक सुविचारित संवाद स्थापित करने में सहायता करती है। कोविंद जी ने इस महोत्सव में उपस्थित सभी लेखकों को लेखन की निरंतरता बनाए रखने और आने वाली पीढ़ियों के लिए अपनी रचनात्मक धरोहर छोड़ने की प्रेरणा दी।

लेखन: विचारों की शक्ति का अमर स्रोत

कोविंद के विचार में लेखन एक ऐसी शक्ति है जो समय और भौगोलिक सीमाओं से परे जाकर विचारों का आदान-प्रदान करता है। उनके अनुसार लेखन केवल विचारों को व्यक्त करने का माध्यम नहीं, बल्कि आत्म-खोज और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी का मार्ग भी है। उन्होंने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि कैसे लेखन ने उन्हें आत्मसाक्षात्कार में मदद की। लेखन के माध्यम से हम अपनी अंतर्मुखी भावनाओं को न केवल खुद से जोड़ सकते हैं, बल्कि उन्हें संरक्षित भी कर सकते हैं ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी उनसे लाभान्वित हो सकें।

लेखक गाँव: एक सांस्कृतिक धरोहर और पर्यटन स्थल की संभावना

लेखक गाँव न केवल लेखकों और साहित्यकारों के लिए एक रचनात्मक आश्रय है, बल्कि यह हिमालय के नैसर्गिक सौंदर्य और सांस्कृतिक धरोहर को भी उजागर करता है। श्री कोविंद ने इस स्थान को भविष्य में एक प्रमुख पर्यटन स्थल बनने की संभावना बताते हुए उत्तराखंड सरकार और मुख्यमंत्री से भी इसे अधिक से अधिक प्रोत्साहित करने का आह्वान किया। यहां अतिथि गृह, लेखन के लिए एकांत कुटीर, संगोष्ठी सभागार, पुस्तकालय, और अन्य सुविधाओं का संयोजन साहित्यकारों को रचनात्मक वातावरण प्रदान करता है, जो उनके सृजन कार्य में सहायक सिद्ध होगा।

 

लेखक गाँव: सृजनशीलता का नया तीर्थस्थल

लेखक गाँव की अवधारणा न केवल लेखकों के लिए एक सुरक्षित और प्रेरणादायक स्थान का निर्माण करती है, बल्कि यह साहित्य, संस्कृति, कला और ज्ञान-विज्ञान के समर्पित साधकों को हिमालय की गोद में सृजन के लिए एक शांति और आत्म-साक्षात्कार का वातावरण भी प्रदान करती है। हिमालय के नैसर्गिक सौंदर्य में बसे इस लेखक गाँव में शोध, अध्ययन, और रचनात्मकता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पुस्तकालय, संग्रहालय, और अध्ययन कक्ष जैसी सुविधाएँ भी प्रदान की गई हैं। इस प्रकार का माहौल लेखकों को न केवल लेखन में अपितु स्वयं को और अधिक संपूर्णता से व्यक्त करने में मदद करेगा।

 

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार

इस महोत्सव के माध्यम से भारतीय संस्कृति और लोक कला को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तुत किया गया। विभिन्न देशों से आए बुद्धिजीवियों और कलाकारों ने इस महोत्सव के दौरान भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों, साहित्यिक धरोहरों, और कला परंपराओं के बारे में गहनता से जानकारी प्राप्त की। श्री कोविंद ने अपने उद्बोधन में बताया कि कैसे भारतीय संस्कृति और साहित्य को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रस्तुत करके भारत को एक बार फिर से ‘विश्व गुरु’ के रूप में पुनर्स्थापित किया जा सकता है।

 

लेखक गाँव की स्थापना: भविष्य के रचनाकारों का आधार

लेखक गाँव न केवल वर्तमान साहित्यकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत है, बल्कि यह भावी पीढ़ियों के रचनाकारों के लिए भी एक मजबूत नींव है। इस परियोजना को डॉ. निशंक के साथ स्पर्श हिमालय फाउंडेशन के योगदान से साकार किया गया है, जिसमें हिमालय के सौंदर्य और एकांत में साहित्यिक चेतना का संचार किया गया है। यह केंद्र उन लेखकों के लिए आदर्श स्थल है जो अपनी रचनात्मकता को संजोने और उसे अभिव्यक्त करने के लिए एकांत की तलाश में रहते हैं।

अंतरराष्ट्रीय महोत्सव: हमारी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का उत्सव

लेखक गाँव में आयोजित यह अंतरराष्ट्रीय साहित्य, संस्कृति एवं कला महोत्सव एक वैश्विक मंच बना, जहाँ 40 से अधिक देशों के लेखक, कलाकार, और विचारक एकत्र हुए। इस महोत्सव ने न केवल भारतीय सांस्कृतिक धरोहर को प्रस्तुत किया, बल्कि वैश्विक प्रतिनिधियों के साथ संवाद का माध्यम भी बना। कोविंद जी ने इस महोत्सव के महत्व को रेखांकित करते हुए बताया कि यह भारतीय संस्कृति की समृद्धि और विविधता को वैश्विक मंच पर सशक्त रूप से प्रस्तुत करने का एक अभूतपूर्व अवसर है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि इस महोत्सव से प्राप्त विचारों का अमृत भारत को पुनः विश्वगुरु के रूप में स्थापित करने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगा।

 

संस्कृति, साहित्य, और कला के महोत्सव का सार्थक मंच

इस महोत्सव के चतुर्थ और पंचम सत्र को विशेष रूप से लोक संस्कृति और भारतीय संस्कृति के प्रति समर्पित किया गया। इस प्रकार की गहनता से विश्लेषण और चर्चा, भारतीय कला, संस्कृति और साहित्य को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अधिक प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने का माध्यम बनेगा। यह महोत्सव एक ऐसे बड़े मंच का निर्माण करेगा जहां से वैज्ञानिक ज्ञान, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और कला के प्रोत्साहन को बढ़ावा मिलेगा।

 

पूर्व राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद का यह भाषण लेखकों, साहित्यकारों और संस्कृति प्रेमियों के लिए एक प्रेरणा और सम्मान की बात है। उनकी यह अपील कि लेखन के माध्यम से समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाया जा सकता है, लेखन की असीम शक्ति को रेखांकित करती है। लेखक गाँव की स्थापना एक ऐतिहासिक पहल है, जो साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होगी। ऐसे महोत्सव न केवल भारत की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित और संवर्धित करेंगे, बल्कि वैश्विक स्तर पर इसकी पहचान भी स्थापित करेंगे।

लेखक गाँव केवल एक शारीरिक संरचना नहीं, बल्कि एक विचार है जो हमें अपने भीतर की सृजनात्मकता से जोड़ता है। यह लेखकों, कवियों, कलाकारों और विचारकों के लिए एक ऐसा तीर्थस्थल है जो उन्हें आत्म-अन्वेषण और रचनात्मकता के सागर में गोता लगाने का अवसर प्रदान करता है। यह उत्तराखंड को न केवल साहित्यिक तीर्थस्थल के रूप में स्थापित करता है बल्कि देश और विश्व में एक अनूठा साहित्यिक आंदोलन भी शुरू करता है। इस पहल के लिए निशंक जी और उनके सहयोगियों की जितनी प्रशंसा की जाए, कम है।

 

लेखक गाँव का यह महोत्सव भारत के सांस्कृतिक धरोहर का एक अद्वितीय उत्सव है, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करेगा। भारत में साहित्य और संस्कृति के संवर्धन की दिशा में यह महोत्सव एक प्रभावी कदम है, और यह सुनिश्चित करेगा कि भारतीय साहित्यिक धरोहर अमर रहे।

 

 

 

 

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