लेखक गाँव(अंकित तिवारी): हिमालय की पवित्रता, गंगा की उद्गम स्थली, और ऋषि-मुनियों की साधना स्थली से युक्त उत्तराखंड का ये लेखक गाँव – साहित्य, संस्कार, और संकल्प की नई प्रेरणा के रूप में प्रतिष्ठित हो चुका है। यहाँ पर जूना अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज ने एक ऐतिहासिक संबोधन में भारतीय आत्मचेतना, सनातनता, और विचार की नित्य-नवीनता का उद्घोष किया। यह संपादकीय उसी ऐतिहासिक क्षण और विचारधारा को समर्पित है।
लेखक गाँव: अद्वितीय साहित्यिक मंच भारत का यह पहला लेखक गाँव, पूर्व केंद्रीय शिक्षा मंत्री और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक जी की कल्पना का साकार रूप है। इस गाँव ने साहित्य को एक अनोखा मंच प्रदान किया है, जहाँ लेखक, मनीषी, और विचारक निर्भ्रांत और निर्जन एकांत में अपनी सृजनात्मकता का विकास कर सकते हैं। स्वामी अवधेशानंद गिरि जी ने इस लेखक गाँव के महत्व को समझाते हुए इसे “सारस्वत अनुष्ठान” और “साहित्यिक नवजागरण” का स्वरूप बताया, जो साहित्य, संस्कृति, और विचार की अनवरत यात्रा का प्रतीक है।
हिमालय की आध्यात्मिकता और लेखक गाँव की प्रेरणा स्वामी अवधेशानंद जी के शब्दों में, हिमालय मात्र एक पर्वत नहीं है; यह आत्मा की नित्य-शाश्वतता, सत्यता और सनातनता का प्रेरणास्रोत है। उन्होंने हिमालय की गिरिकंदराओं में साधना करने वाले ऋषि-मुनियों की साधना का स्मरण किया और उस तत्व की अविनाशिता पर बल दिया, जो आत्मा और चेतना का आधार है। यह लेखक गाँव उसी हिमालय की गोद में एक ऐसा स्थान है जहाँ लेखकों को अपनी रचनात्मकता को साकार करने का अवसर मिलेगा।
साहित्य और लेखन का महत्व: स्वामी जी की दृष्टि में स्वामी जी ने रामायण और महाभारत का संदर्भ देते हुए बताया कि लेखन केवल साहित्य नहीं, बल्कि इतिहास भी रचता है। संस्कृत भाषा में लिखे गए इन महाकाव्यों का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि लेखक गाँव एक ऐसा केंद्र बनेगा, जो नवोदित और अनुभवी लेखकों को एक शांत और स्वाध्यायशील वातावरण प्रदान करेगा। यहाँ से लेखकों को यह संदेश भी मिलेगा कि लेखन एक साधना है और उसका निरंतर अभ्यास जीवन को प्रेरणा, ऊर्जा, और दिशा प्रदान करता है।
लेखक गाँव का सामाजिक एवं सांस्कृतिक संदेश इस अवसर पर मंच पर उपस्थित पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद , राज्यपाल गुरमीत सिंह , मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी , और प्रसिद्ध लेखक प्रसून जोशी जैसे विद्वानों ने भी लेखक गाँव की अद्वितीयता को सराहा। यह गाँव साहित्यकारों के लिए एक नए युग का उद्घाटन करेगा, जहाँ वे चिंतन, मनन, और लेखन के माध्यम से समाज को नई दिशा देंगे।
स्वामी अवधेशानंद जी का संकल्प स्वामी जी ने अपनी लेखन साधना का उल्लेख करते हुए बताया कि वे हर दिन एक लेख लिखते हैं और इसे पिछले 11 वर्षों से बिना विघ्न के निभाते आए हैं। उनका संकल्प, “मेरा लेखन, चिंतन, अध्ययन आबाद रहे,” साहित्य प्रेमियों के लिए प्रेरणास्रोत है और बताता है कि निरंतरता और समर्पण लेखन की आत्मा है।
यह लेखक गाँव न केवल साहित्य और संस्कृति को समर्पित है, बल्कि समाज को एक नई दिशा प्रदान करने वाला केंद्र बनेगा। स्वामी अवधेशानंद जी के प्रेरणास्पद विचारों के साथ, यह लेखक गाँव हमें बताता है कि हिमालय की उपत्यकाओं में, इस साहित्यिक केंद्र की स्थापना से साहित्यकारों को एक ऐसा मंच मिलेगा, जहाँ से वे समाज के कल्याण, मानवता के उत्थान और सृजन की साधना में अपना योगदान दे सकेंगे।
हम इस संपादकीय के माध्यम से डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक के उस विचार को नमन करते हैं, जिसने इस लेखक गाँव के माध्यम से साहित्य, संस्कृति और आत्मबोध का एक नया प्रकाश फैलाने का संकल्प लिया है।