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राजधानी के एक पोलिंग बूथ की दर्द भरी दास्तान!

डोईवाला//थानों//सतेली

हेलो! मैं राजधानी का पोलिंग बूथ सतेली गैरवाल बोल रहा हूं। मेरी इस जीर्ण शीर्ण कंकाल काया को मत देखो। दो साल पहले तक मैं भी युवा था;जब मेरे आंगन में नन्हें मुन्ने बाल भगवानों की किलकारी सुनाई देती थी। अब बच्चे नहीं हैं मेरे द्वार पर ताला लग गया है तो मैं समय से पहले बुजुर्ग खंडहर हो गया हूं।सड़क , स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में पहले मेरा पड़ोसी गांव रैठवान गांव खाली हुआ। फिर वहां का सरकारी स्कूल बंद हुआ। फिर मेरे गांव का आंगनबाड़ी केंद्र बंद हुआ मैं बहुत रोया पर सरकार को मेरे आंसू दिखाई नहीं दिए दर्द महसूस होना तो बहुत दूर की बात थी।दो साल पहले यहां का अर्थात सतेली का सरकारी प्राइमरी स्कूल बंद हो गया मैं बहुत रोया पर मेरी आवाज़ कौन सुनता। सड़क के अभाव में लोग सड़क पर शहर चले गए। आज इस गांव सतेली (देहरादून जनपद) का एक परिवार व बमेंडी (जनपद टिहरी गढ़वाल) का एक परिवार अर्थात एक और एक ग्यारह होकर सुबह शाम दीपक जलाने के लिए इस गांव में जुगनू की तरह टिमटिमाते हुए रह गए हैं। मेरे पड़ोसी जूनियर हाईस्कूल में इस समय तीन बच्चे अध्ययनरत हैं वो भी जनपद टिहरी गढ़वाल के बमेंडी गांव की मेहरबानी से—-उसके दिन भी कुछ अच्छे नहीं हैं। कभी भी मेरी तरह उसके भी दुर्दिन आ सकते हैं।स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में मरीज यहां समय से पहले स्वर्गवास हो जाते हैं।पेयजल के लिए सोलर पम्पिंग सिस्टम एक साल से खराब है। कौन आएगा यहां उसकी सुध लेने और क्यों आएगा। जल ही जीवन है तो केवल नारा है।चुनाव के समय यहां जरूर शहर से मतदान कर्मी आते हैं, सेक्टर मजिस्ट्रेट आते हैं, टिहरी जनपद से होकर कच्चे पक्के रास्तों पर गिरते पड़ते हिचकोले खाते वाहनों की घुंघयाट अवश्य सुनाई देती है। अबकी बार सुना है सड़क की मांग को लेकर ग्रामीणों ने चुनाव बहिष्कार की इच्छा जाहिर की है।
जीवन जीना तो यहां चुनौती है ही लेकिन जीने से ज्यादा कठिन यहां मरना है। शव को कांधे पर ढोने के लिए चार कहार कहां से लाएं दोस्तों।

पोलिंग पार्टी यहां के लिए राजधानी देहरादून से चलकर 105 किलोमीटर का सफर तय करके वाया टिहरी जनपद यहां तक पहुंचेगी।
यदि सरकार हल्द्वाड़ी से पसनी तक लगभग दो किलोमीटर सड़क बना दे तो यह दूरी देहरादून से मात्र 45 किलोमीटर हो सकती है। अगर सरकार थानो – नाहीं से सतेली को जोड़ दे तो यह दूरी मात्र 35 किलोमीटर हो सकती है।
दो परिवार लेकिन सैकड़ों मतदाता—-ये भी मजेदार बात है दोस्तों। यहां से पलायन कर पुन्नीवाला, रामनगर डांडा, देहरादून बसे लोगों को अपनी माटी से इतनी मुहब्बत है कि वे यहां से मतदाता सूची से अपना नाम अन्यत्र नहीं दर्ज कराते, सोचते हैं कभी सड़क आ जाएगी तो फिर यहीं गांव की सुंदर बांज बुरांस की शीतल छांव में आश्रय प्राप्त करेंगे।
कभी गैरोला लोगों का यह गांव एक प्राकृतिक आपदा में अपना अस्तित्व गंवा बैठा था।
आज तिवाड़ी लोगों की कर्मभूमि फिर मूलभूत सुविधाओं के अभाव में पलायन के कारण निर्जन होने की कगार पर है।
काश! कोई मेरा अपना होते जो मेरे पास आकर मुझसे लिपटकर फूट फूट कर रोता—मेरा तो रोज रोज रोकर बुरा हाल है अब आंसू भी सूख चुके हैं। मेरे अच्छे दिन के आएंगे। हेलो—- #लोकसभाचुनाव2024

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