स्वास्थ्य

एम्स ऋषिकेश में ‘विश्व एंटीमाइक्रोबियल जागरूकता सप्ताह’ शुरू: एंटीबायोटिक्स के दुरुपयोग पर विशेषज्ञों ने जताई चिंता

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में सप्ताहव्यापी चिंतन-मंथन का दौर

ऋषिकेश(अंकित तिवारी): अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), ऋषिकेश में ‘विश्व एंटीमाइक्रोबियल जागरुकता सप्ताह’ का औपचारिक शुभारंभ हो गया। सप्ताहभर तक चलने वाले इस जागरुकता अभियान का उद्देश्य एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध (एएमआर) के प्रति जनसामान्य को जागरूक करना और एंटीमाइक्रोबियल्स के विवेकपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देना है।


इस सप्ताहव्यापी जनजागरुकता मुहिम का शुभारंभ सामुहिक दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ, इस अवसर पर चिकित्सा और चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र के कई विशेषज्ञों ने प्रतिभाग किया। इस अवसर पर एम्स संस्थान की कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर( डॉ. )मीनू सिंह, डीन (अकादमिक) प्रोफेसर (डॉ. )जया चतुर्वेदी, मेडिकल सुपरिटेंडेंट( डॉ.) संजीव कुमार मित्तल, चिकित्सा विभाग की प्रोफेसर और प्रमुख डॉक्टर रविकांत, डॉ. वर्तिका सक्सेना, डॉ. रीता शर्मा, डॉ. प्रसन्न के. पंडा, नर्सिंग फैकल्टी डॉक्टर मनीष शर्मा,डॉ. राखी मिश्रा और विभिन्न विभागों के संकाय सदस्य, वरिष्ठ और कनिष्ठ चिकित्सक , डीएनएस व वरिष्ठ एवं कनिष्ठ नर्सिंग अधिकारी शामिल थे।
सात दिवसीय जनजागरुकता अभियान के उद्घाटन सत्र में निदेशक एम्स प्रो. मीनू सिंह ने एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध के प्रति जागरुकता बढ़ाने के महत्व को रेखांकित किया और इस महत्वपूर्ण विषय पर स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की अहम भूमिका बताई। उन्होंने कहा कि एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध चिकित्सा विज्ञान की दशकों पुरानी प्रगति को उलट सकता है, जिससे साधारण संक्रमण भी जानलेवा हो सकते हैं। लिहाजा इन्हें समय रहते ठीक करना होगा। प्रो. सिंह ने सभी स्वास्थ्यकर्मियों से एंटीमाइक्रोबियल प्रबंधन और निदान निर्णय में सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाने की अपील की, ताकि प्रतिरोधी संक्रमणों के प्रसार को रोका जा सके।

उद्घाटन कार्यक्रम के बाद, एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध (एएमआर) पर एक कार्यशाला आयोजित की गई। जिसका उद्देश्य प्रशिक्षकों को एंटीमाइक्रोबियल्स के विवेकपूर्ण उपयोग और निदान प्रबंधन की प्रथाओं के बारे में प्रशिक्षित कर दक्ष बनाना था। कार्यशाला में 100 से अधिक प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया, जिसमें संकाय सदस्य, वरिष्ठ और कनिष्ठ रेसिडेंट्स चिकित्सक, नर्सिंग अधिकारी और विभिन्न विभागों के अन्य कार्मिक शामिल थे।

कार्यशाला में (एएमआर) के प्रभाव, प्रभावी एंटीमाइक्रोबियल प्रबंधन की रणनीतियों और एंटीबायोटिक्स के गलत उपयोग को रोकने के लिए सही निदान प्रथाओं पर इंटरएक्टिव चर्चाएं, केस स्टडीज और प्रस्तुतियां दी गईं। जिसमें इस विषय के प्रमुख विशेषज्ञों डॉ. प्रसन्न कुमार पंडा और डॉ. वान्या सिंह ने (एएमआर )से निपटने के लिए संस्थान और समुदाय स्तर पर किए जाने वाले जरुरी प्रयासों पर महत्वपूर्ण विचार साझा किए।

विशेषज्ञों ने कहा कि एम्स , ऋषिकेश स्वास्थ्य देखभाल प्रथाओं को बेहतर बनाने और (एएमआर) के खिलाफ संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए शिक्षा, शोध और सहयोग के माध्यम से लगातार प्रतिबद्ध है। बताया गया कि इस सप्ताहव्यापी जनजागरुकता अभियान के तहत विभिन्न दिवसों में होने वाली सभी गतिविधियां संस्थान की भूमिका को और मजबूत करने का कार्य करेंगी, ताकि एंटीमाइक्रोबियल्स का जिम्मेदार, प्रभावी और टिकाऊ उपयोग सुनिश्चित किया जा सके।

गौरतलब है कि यह पहल विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ एकजुट होकर एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध से निपटने के वैश्विक प्रयासों के अनुरूप है, जिसे डब्लू०एच०ओ ने वर्तमान समय की सबसे बड़ी स्वास्थ्य चुनौतियों में से एक माना है।

समारोह के अंत में सभी स्वास्थ्यकर्मियों ने एंटीमाइक्रोबियल्स के विवेकपूर्ण उपयोग का सामुहिक संकल्प लिया। बताया गया कि जनजागरुकता अभियान के उद्घाटन कार्यक्रम व इसके अंतर्गत प्रथम दिवस आयोजित कार्यशाला ने स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को एक मंच प्रदान किया, जहां वह आपस में ज्ञान का आदान-प्रदान कर सकें और भविष्य की पीढ़ियों के लिए एंटीमाइक्रोबियल्स की प्रभावशीलता की रक्षा हेतु सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाने का संकल्प ले सकें।

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