उत्तराखंड

डॉ० हर्षवन्ती बिष्ट: पर्यावरण की प्रहरी और भोजवृक्षों की रक्षक

देहरादून(अंकित तिवारी): हिमालय की गोद में बसे गंगोत्री गोमुख क्षेत्र के कठिन भू-भाग में भोज के पेड़ अब लहलहाते हुए पर्यावरण संरक्षण का एक अनुपम उदाहरण बन गए हैं। इन वृक्षों के पीछे छुपी है एक महिला पर्वतारोही, पर्यावरणविद, और दृढ़ संकल्प की मिसाल—डॉ. हर्षवन्ती बिष्ट की कहानी।

साल 1984 में, जब डा. बिष्ट भारतीय एवरेस्ट अभियान दल का हिस्सा थीं, तब उन्हें एहसास हुआ कि पर्वतारोहण से परे भी उनके सपनों को नया आकार देने की गुंजाइश है। गंगोत्री गोमुख क्षेत्र में, उन्होंने एक नये दृष्टिकोण से देखा कि पर्यटन और तीर्थाटन के बढ़ते प्रभाव से पर्यावरण को हो रहे नुकसान को रोकने के लिए कुछ ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। उनके मन में वृक्षारोपण का विचार आया, लेकिन आसान राह नहीं थी।

डा. बिष्ट ने पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को एक परियोजना भेजी, जो स्वीकार कर ली गई। इस परियोजना के अंतर्गत भोज के पेड़ों को पुनर्जीवित करने का संकल्प लिया गया। कई स्थानीय पंडों ने यह कहकर उन्हें हतोत्साहित किया कि भोज देववृक्ष है और इसे कोई उगा नहीं सकता, परन्तु डा. बिष्ट के संकल्प ने इस चुनौती को अवसर में बदल दिया। उन्होंने इस क्षेत्र में भोज वृक्षारोपण की नींव रखी।

कार्य की शुरुआत में स्थानीय पंडों की ओर से नकारात्मकता और वन विभाग की चुनौतियाँ भी सामने आईं, जिन्होंने उन्हें कई बार हतोत्साहित किया। यहाँ तक कि उनके विरुद्ध झूठे मुकदमे भी दर्ज किए गए। परन्तु भारतीय न्यायपालिका पर विश्वास और पूर्व मुख्यमंत्रियों भुवन चन्द्र खंडूरी एवं हरीश रावत के समर्थन से डा. बिष्ट ने यह साबित कर दिखाया कि उनके इरादे अटल हैं।

 

बड़ी कठिनाईयों और संघर्ष के बाद डा. बिष्ट ने अपनी इस परियोजना को साकार किया। आज गंगोत्री के भोजबासा में लहलहाते 15-20 फुट ऊंचे भोज के पेड़ डा. हर्षवन्ती बिष्ट के संकल्प और प्रतिबद्धता का जीता जागता प्रमाण हैं। उन्होंने अपनी पूरी टीम, खासकर रतन सिंह चौहान और नेपाली श्रमिकों के योगदान को इस सफलता का श्रेय दिया।

यह कहानी सिर्फ वृक्षारोपण की नहीं है; यह संकल्प, साहस, और सामूहिक प्रयास की कहानी है। डा. बिष्ट ने एक संदेश दिया कि कोई भी कार्य छोटा या बड़ा नहीं होता, और एक व्यक्ति का संकल्प पर्वतों पर भोजवृक्ष को फिर से खिल सकता है।

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