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गंगा के तट पर कर्णप्रयाग कॉलेज का पौधरोपण कार्यक्रम पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कदम

कर्णप्रयाग(अंकित तिवारी): उत्तराखंड में हरेला पर्व न केवल सांस्कृतिक महत्व का प्रतीक है, बल्कि यह हमारे पर्यावरण के संरक्षण की आवश्यकता को भी उजागर करता है। हरेला सप्ताह के तहत  राजकीय महाविद्यालय, कर्णप्रयाग में आयोजित पौधरोपण कार्यक्रम ने न केवल पर्यावरण के प्रति जागरूकता को बढ़ाया, बल्कि यह गंगा के संरक्षण और उसके तटीय क्षेत्र में हरियाली को बढ़ावा देने का एक ठोस कदम साबित हुआ।

नमामि गंगे परियोजना के तहत इस कार्यक्रम का आयोजन महत्त्वपूर्ण था क्योंकि यह गंगा नदी की स्वच्छता और उसके किनारे हरियाली को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। गंगा, जो भारतीय संस्कृति और जीवनशैली का अभिन्न हिस्सा है, उसकी रक्षा का कार्य हमें आज से ही शुरू करना होगा। गंगा के तटीय क्षेत्रों में वृक्षारोपण से न केवल पर्यावरणीय सुधार होगा, बल्कि इससे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को भी कम किया जा सकेगा।

महाविद्यालय के छात्रों ने इस कार्यक्रम में सक्रिय रूप से भाग लिया और प्रकृति के प्रति अपनी जिम्मेदारी का अहसास किया। यह कदम न केवल उनकी पर्यावरणीय चेतना को बढ़ावा देता है, बल्कि आगामी पीढ़ी को भी इस दिशा में प्रेरित करता है। छात्रों ने इस आयोजन में पौधारोपण के साथ-साथ पौधों की देखभाल का संकल्प लिया, जो भविष्य में उनके पर्यावरणीय दायित्वों की ओर एक मजबूत कदम साबित होगा।

कार्यक्रम में महाविद्यालय की प्राचार्य प्रो. वी. एन. खाली और नमामि गंगे के नोडल अधिकारी कीर्तिराम डंगवाल के नेतृत्व में लगभग 20 विभिन्न प्रजातियों के पौधे लगाए गए, जो न केवल कर्णप्रयाग महाविद्यालय के परिसर में हरियाली लाएंगे, बल्कि गंगा के तटीय क्षेत्र में भी वनीकरण की दिशा में मददगार साबित होंगे। इस पहल ने एक बहुत बड़ा संदेश दिया कि अगर हम मिलकर पर्यावरण संरक्षण के लिए कदम उठाते हैं, तो हम अपने जीवन, अपनी संस्कृति और अपने भविष्य को बचाने में सफल हो सकते हैं।

हरेला सप्ताह के इस पौधरोपण कार्यक्रम ने यह सिद्ध कर दिया कि पर्यावरण की रक्षा की दिशा में हमारे छोटे-छोटे प्रयासों का भी बड़ा असर हो सकता है। इस आयोजन के माध्यम से, हम गंगा और हमारी संस्कृति के संरक्षण के प्रति अपनी जिम्मेदारी को महसूस करते हैं। यह कार्यक्रम न केवल वृक्षारोपण की दिशा में एक कदम था, बल्कि यह हमारे अंदर पर्यावरणीय चेतना और जिम्मेदारी को भी उजागर करता है।

नमामि गंगे जैसे अभियानों का यह प्रयास हमें यह सिखाता है कि हमारे प्रकृति के साथ तालमेल बनाए रखना सिर्फ हमारी जिम्मेदारी नहीं, बल्कि यह हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक उपहार है। हमें अपनी धरती और नदियों के संरक्षण में भागीदार बनकर इसे सुरक्षित और हरा-भरा रखना है।

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