ऋषिकेश: एक भूवैज्ञानिक खजाना
भूविज्ञान विशेषज्ञ डॉ. अनूप कुमार सिंह ने छात्रों को बताया कि ऋषिकेश का भूवैज्ञानिक इतिहास अत्यंत समृद्ध है, जिसमें क्वार्टजाइट, स्लेट, फ़िलाइट और चूना पत्थर जैसी चट्टानें प्रमुख रूप से पाई जाती हैं। यह क्षेत्र लघु हिमालय और गढ़वाल सिंकलाइन के अंतर्गत आता है, जहां चट्टान संरचनाओं और नदी प्रक्रियाओं का अद्भुत मिश्रण देखने को मिलता है।
डॉ. पवन कुमार गौतम ने बताया कि ऋषिकेश लघु हिमालय के बाहरी क्षेत्र में स्थित है, जो मुड़ी हुई चट्टानों और जटिल भूवैज्ञानिक संरचनाओं से युक्त है। यह क्षेत्र गढ़वाल सिंकलाइन का भी हिस्सा है, जो चट्टानों की परतों और परिदृश्य को प्रभावित करती है।
प्रमुख चट्टान प्रकार और उनकी विशेषताएँ
डॉ. गौतम ने छात्रों को बताया कि क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की चट्टानें पाई जाती हैं, जिनमें शामिल हैं:
-
क्वार्टजाइट, स्लेट और फ़िलाइट – ये चट्टानें इस क्षेत्र में कायापलट और तह के भूवैज्ञानिक इतिहास को दर्शाती हैं।
-
चूना पत्थर – इसमें स्ट्रोमेटोलिटिक, चेर्टी और डोलोमाइट जैसी विभिन्न श्रेणियाँ शामिल हैं।
-
डायमिक्टाइट – यह चट्टान हिमनदीय वातावरण के अस्तित्व का संकेत देती है।
-
ग्रेवैक – यह तलछटी चट्टान क्षेत्र में अन्य चट्टानों के साथ पाई जाती है।
-
मेटाबेसिक्स – ये ज्वालामुखीय चट्टानों से उत्पन्न कायांतरणीय चट्टानें हैं, जो फ़िलाइट्स के साथ अंतःस्थापित होती हैं।
शिवालिक पहाड़ियों और संरचनात्मक विशेषताएँ
इस अध्ययन भ्रमण में डॉ. गजेंद्र कुमार, भूविज्ञान विभाग, पंडित एल.एम.एस. कैंपस, ऋषिकेश, श्री देव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय ने भी भाग लिया और छात्रों के विभिन्न भूवैज्ञानिक प्रश्नों का उत्तर दिया। उन्होंने शिवालिक पहाड़ियों और ऋषिकेश की भूवैज्ञानिक संरचनाओं की व्याख्या की।
उन्होंने बताया कि जौनसार समूह की चांदपुर संरचना अपने फ़िलाइट-क्वार्टजाइट संघटन के लिए प्रसिद्ध है। इसके अलावा, उन्होंने उत्तरी अल्मोड़ा थ्रस्ट (NAT) की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला, जो लघु हिमालय को आंतरिक और बाहरी भागों में विभाजित करता है।
गंगा नदी: भूविज्ञान को आकार देने वाली धारा
गंगा नदी ऋषिकेश के भू-परिदृश्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। नदी के कटाव और निक्षेपण प्रक्रियाएँ यहाँ के भूवैज्ञानिक स्वरूप को प्रभावित करती हैं।
-
बाढ़ के मैदान – ये ऋषिकेश के भूवैज्ञानिक स्वरूप का प्रमुख हिस्सा हैं।
-
तलछट संचय – नदी तलछट जमाकर बिंदु पट्टियाँ और बाढ़ के मैदान बनाती है, जो परिदृश्य को आकार देते हैं।
डॉ. अनूप कुमार सिंह ने छात्रों को बताया कि यह क्षेत्र भारतीय और यूरेशियन प्लेटों की टक्कर के कारण बने हिमालय पर्वत श्रृंखला की भूवैज्ञानिक प्रक्रियाओं को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
भू-तकनीकी अध्ययन और भविष्य की संभावनाएँ
ऋषिकेश और कर्णप्रयाग के बीच रेलवे सुरंग के लिए किए गए भू-तकनीकी अध्ययन को भी समझाया गया। इस अध्ययन का उद्देश्य चट्टान द्रव्यमान विशेषताओं को समझना और सुरक्षित उत्खनन विधियाँ विकसित करना है।
इस अवसर पर डॉ. प्रियंका सिंह ने भी छात्रों के विभिन्न प्रश्नों का उत्तर दिया।
छात्रों के लिए यादगार अनुभव
भूविज्ञान विभाग के प्रमुख प्रो. नरेंद्र कुमार और अन्य शिक्षकों के मार्गदर्शन में छात्रों को इस अध्ययन यात्रा से महत्वपूर्ण व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त हुआ। छात्रों ने इस विशेष अध्ययन भ्रमण के आयोजन के लिए विभागाध्यक्ष एवं शिक्षकों का आभार व्यक्त किया।
यह शैक्षणिक यात्रा न केवल छात्रों के लिए एक व्यावहारिक सीखने का अवसर बनी, बल्कि ऋषिकेश के समृद्ध भूवैज्ञानिक इतिहास को भी उजागर करने का एक महत्वपूर्ण प्रयास साबित हुई।