देहरादून
स्वतंत्रता सेनानी श्रीराम शर्मा “प्रेम” जी के पुत्र वरिष्ठ साहित्यकार और जनकवि डॉक्टर अतुल शर्मा का जन्म 1956 में देहरादून में हुआ। सरल सहज व्यक्तित्व के धनी डॉक्टर अतुल शर्मा जी की कविताओं में भी वही सरलता वही सादगी दिखाई देती है। अतुल शर्मा जी कल्पना के कवि नहीं है बल्कि धरातल पर जीते हैं। पहाड़ गांव के हर सुख दुख के साथ ही एवं सारथी अतुल शर्मा जी की कलम हर विषय पर हर विधा में चलती है। अब तक आपकी 40 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। आपके गीत हर जुबां पर आसानी से सम्मान पाते हैं। आपकी साहित्यिक भाषा बड़ी सरल है जिसमें स्थानीय बोली भाषा के शब्द अनायास ही आ जाते हैं। आपने वाह रे बचपन पुस्तक का संपादन भी किया है जिसमें लगभग 80 छाती नाम लोगों के बचपन का वर्णन सम्मिलित है। जल जंगल जमीन और पर्यावरण के प्रति आप बहुत सजग रहते हैं और आम जनता को भी सचेत करने के लिए गीत और साहित्य के साथ-साथ धरातल पर खुद भी आगे बढ़कर कार्य करते हैं। 1991 की उत्तरकाशी चमोली के भूकंप की त्रासदी हो या उत्तराखंड आंदोलन हो या 2013 की केदारनाथ आपदा हो आपने उत्तराखंड के हर सुख दुख में सहभागिता निभाई है।
आपके गीत, आपका साहित्य पहाड़, गांव के साथ-साथ कदमताल करता हुआ आगे बढ़ता है। उत्तराखंड आंदोलन के समय 1994 में लिखा आपका लिखा गीत “लड़ के लेंगे भिड़ के लेंगे उत्तराखंड लेंगे—- जनगीत के रूप में उस समय हर सभा, हर जुलूस में गाया गया”।
जल जंगल और जमीन के मुद्दों पर लिखा गया आपका गीत “नदी तू बहती रहना ——–हर जुबान पर आज भी तैर रहा है”। देहरादून शहर से जुड़ी आपके पास बहुत सी यादें हैं। आपने बताया कि कभी देहरादून को नहरों का शहर के नाम से जाना जाता था। टांगे की सवारी और रिश्तो में वह अपनापन आज भी याद आता है। हर सामाजिक, सांस्कृतिक मुद्दों पर आप कलम चलाने के साथ-साथ अपनी प्रत्यक्ष उपस्थिति भी दर्ज कराते हैं। 67 वर्षीय डॉ अतुल शर्मा जी आज भी साहित्य साधना में सतत प्रयत्नशील हैं। आपके पास अप्रकाशित डायरियों का बहुत बड़ा संग्रह आज भी आपकी किराए की कोठरी की शान बढ़ा रहा है। जन सरोकारों और साहित्य सृजन में रत डॉक्टर अतुल शर्मा जी सादगी भरा जीवन जीते हैं। आपके रहन-सहन, खान-पान, वेशभूषा, व्यवहार हर तरफ शालीनता, सादगी, सरलता, अपनापन झलकता है। जो भी आप के संपर्क में आता है या तो वह आपका हो जाता है या आप उसके हो जाते हैं।
मधुर व्यवहार के धनी, कोमल कंठ वाले, हंसमुख स्वभाव के डॉक्टर अतुल शर्मा जी आकाशवाणी और दूरदर्शन की भी शान हैं। आप कहानीकार, नाटककार, उपन्यासकार, गीतकार, साहित्यकार के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान रखते हैं। दशकों पहले देहरादून की बासमती की जो खुशबू देश दुनिया तक प्रसिद्ध थी वही खुशबू, वही अपनापन, वही प्रेम आज आपके साहित्य में भी देखने को, महसूस करने को मिलता है। जनकवि डॉक्टर अतुल शर्मा जी को नमन, वंदन और अभिनंदन।