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एम्स ऋषिकेश में एलर्जिक और क्रॉनिक पल्मोनरी एस्परगिलोसिस पर विशेषज्ञों का मंथन

ऋषिकेश(अंकित तिवारी):अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, ऋषिकेश के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के तत्वावधान में एलर्जिक ब्रोंकोपल्मोनरी एस्परगिलोसिस (एबीपीए) और क्रॉनिक पल्मोनरी एस्परगिलोसिस (सीपीए) विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। जिसमें चिकित्सा विशेषज्ञों ने सघन चर्चा की।

एम्स के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग की ओर से आयोजित कार्यशाला में संस्थान की कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर (डॉ.) मीनू सिंह ने एलर्जिक ब्रोंकोपल्मोनरी एस्परगिलोसिस (एबीपीए) और क्रॉनिक पल्मोनरी एस्परगिलोसिस (सीपीए) विषय पर जानकारी देते हुए कहा कि एलर्जिक ब्रोंकोपल्मोनरी एस्परगिलोसिसि एबीपीए और क्रॉनिक पल्मोनरी एस्परगिलोसिस सीपीए का अक्सर कम और गलत निदान किया जाता है। उनका कहना है कि चिकित्सकों में जागरूकता बढ़ाने से इन विकारों का निदान सही तरीके से हो सकता है, ऐसा करने से रुग्णता और मृत्यु दर को काफी हद तक कम किया जा सकता है। कार्यशाला में संस्थान की कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर मीनू सिंह ने ऑनलाइन माध्यम से प्रतिभाग किया।

इस अवसर पर पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर डॉ. रितेश अग्रवाल ने एबीपीए का उपचार और निदान के संबंध में व्याख्यान दिया। साथ ही उन्होंने एबीपीए-सीपीए ओवरलैप – मिथकों पर चर्चा की । पीजीआईएमईआर चंडीगढ़ के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. इंद्रपाल सिंह सहगल ने सीपीए का उपचार और निदान विषय पर जानकारी प्रस्तुत की। कार्यशाला में एम्स, ऋषिकेश के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग की प्रोफेसर डॉ. रुचि दुआ ने भारत में एबीपीए-सीपीए के बोझ पर चर्चा की। कार्यशाला में संकायाध्यक्ष (रिसर्च) प्रोफेसर शैलेन्द्र शंकर हांडू, पल्मोनरी मेडिसिन विभागाध्यक्ष प्रोफेसर गिरीश सिंधवानी, कार्यशाला के सह-अध्यक्ष एवं जनरल मेडिसिन विभागाध्यक्ष प्रोफेसर रविकांत, पल्मोनरी विभाग की प्रोफेसर रुचि दुआ, प्रोफेसर मयंक मिश्रा, एडिशनल प्रोफेसर डॉ. प्रखर शर्मा, एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. लोकेश कुमार सैनी आदि ने सहयोग प्रदान किया।

फेफड़ों का एस्परगिलोसिस, जिसे पल्मोनरी एस्परगिलोसिस के नाम से भी जाना जाता है, एक क्रॉनिक फंगल संक्रमण है, जो फेफड़ों को प्रभावित करता है। यह आमतौर पर अन्य श्वसन संबंधी बीमारियों से जुड़े लक्षणों से छिपा हो सकता है, इसलिए इसका निदान देरी से हो सकता है।

कार्यशाला में फेफड़ों के एस्परगिलोसिस (पल्मोनरी एस्परगिलोसिस) पर भी विस्तृत चर्चा की गई, जिसे एक क्रॉनिक फंगल संक्रमण बताया गया जो फेफड़ों को प्रभावित करता है और अन्य श्वसन रोगों के लक्षणों के पीछे छिप सकता है, जिससे निदान में देरी हो सकती है। विशेषज्ञों ने इसके कारक (एस्परगिलस फंगस), जोखिम कारक (फेफड़ों की बीमारियों वाले रोगी), लक्षण (क्रॉनिक खांसी, खून की खांसी, वजन कम होना, थकान, सांस लेने में तकलीफ) और विभिन्न प्रकारों (एलर्जिक ब्रोंकोपल्मोनरी एस्परगिलोसिस और क्रोनिक पल्मोनरी एस्परगिलोसिस) पर जानकारी दी। निदान के लिए सीटी स्कैन और रक्त परीक्षण, उपचार के लिए एंटीफंगल दवाएं और आवश्यकतानुसार सर्जरी, तथा फेफड़ों की बीमारी वाले व्यक्तियों के लिए नियमित निगरानी के महत्व पर जोर दिया गया। निष्कर्ष में, समय पर निदान और उपचार को इस गंभीर स्थिति की प्रगति को रोकने में महत्वपूर्ण बताया गया।

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