उत्तराखंड: साहित्य, संस्कृति और समाज के व्यापक फलक पर ‘साईं सृजन पटल’ ने अपने मात्र दस अंकों की प्रकाशन यात्रा में जो स्थान और सम्मान अर्जित किया है, वह किसी उपलब्धि से कम नहीं है। मई 2025 में इस मासिक पत्रिका के दसवें अंक का विमोचन उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में एक सादगीपूर्ण किंतु गरिमामयी समारोह में हुआ, जहां आर.के.पुरम के संरक्षक सेवानिवृत्त सहायक कृषि अधिकारी केशर सिंह ऐर ने पत्रिका का विमोचन कर संपादकीय टीम को शुभकामनाएं दीं।
उन्होंने कहा कि इस ऐतिहासिक अवसर ने केवल एक अंक का विमोचन नहीं किया, बल्कि एक विचारधारा, एक आंदोलन और एक सतत रचनात्मक प्रयास को मान्यता दी है, जो उत्तराखंड की सांस्कृतिक चेतना, ग्रामीण जीवन, पर्यटन, पर्यावरण संरक्षण और युवा प्रतिभाओं को एक साझा मंच प्रदान करता है।
संयोजक प्रो. डॉ. के.एल. तलवाड़ के नेतृत्व में यह पटल न केवल साहित्यिक गतिविधियों में संलग्न है, बल्कि यह छात्रवृत्ति वितरण, मोटिवेशनल व्याख्यान, सम्मान समारोह और सृजनात्मक संवाद जैसे कार्यों में भी सतत सक्रिय है। यह उल्लेखनीय है कि सेवा निवृत्ति के पश्चात प्रो. तलवाड़ ने जिस ऊर्जा और निष्ठा से इस मंच को गति दी है, वह उनके भीतर विद्यमान समाज-समर्पित लेखक और शिक्षक के स्वरूप को दर्शाता है।
उप संपादक अंकित तिवारी द्वारा यह बताना अत्यंत प्रेरणादायक रहा कि दस माह के अल्पकाल में पत्रिका ने सैकड़ों नवोदित लेखकों, कवियों, शोधार्थियों और रचनाकारों को एक मंच प्रदान किया है। आज यह पत्रिका केवल महानगरों तक सीमित नहीं, बल्कि उत्तराखंड के सुदूर ग्रामीण अंचलों में भी सृजनात्मकता का अलख जगा रही है।
इस अंक के विमोचन के अवसर पर इंसाइडी मीडिया कंपनी के सीईओ अक्षत, और नीलम तलवाड़ की उपस्थिति ने इस आयोजन को और अधिक विशिष्ट बना दिया। इस मौके पर उत्तराखंड के उच्च शिक्षा निदेशक डॉ. कमल किशोर पांडे का शुभकामना संदेश विशेष रूप से उल्लेखनीय रहा, जिसमें उन्होंने लिखा साईं सृजन पटल उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर, नवाचार और साहित्यिक प्रतिभा का जीवंत दस्तावेज है। यह पत्रिका आने वाले समय में और अधिक सृजनशील और प्रामाणिक मंच बने, यही मेरी कामना है।
यह संपादकीय इस बिंदु पर विशेष ध्यान देना चाहता है कि आज जब मुख्यधारा की मीडिया और प्रकाशन संस्थान बाज़ार की दौड़ में संवेदना से कटते जा रहे हैं, तब साईं सृजन पटल जैसी पहलें समाज के भीतर छिपी उस उजास को सामने लाने का कार्य कर रही हैं, जो शब्दों में नहीं, कर्म में झलकती है।
यह पत्रिका न केवल उत्तराखंड की धार्मिक, साहसिक और सांस्कृतिक यात्रा को दस्तावेज़बद्ध कर रही है, बल्कि यह लोक साहित्य, लोक चित्रण, ग्रामीण उद्यमिता और पलायन जैसे ज्वलंत विषयों को भी रचनात्मक दृष्टिकोण से प्रस्तुत कर रही है।
आज जब हम इसके दसवें अंक के प्रकाशन की उपलब्धि को देखते हैं, तो यह कहना अनुचित नहीं होगा कि ‘साईं सृजन पटल’ अब एक आंदोलन बन चुका है — साहित्यिक स्वावलंबन, सांस्कृतिक जागरूकता और रचनात्मक आत्मबल का आंदोलन।
इस ऐतिहासिक पड़ाव पर संपादकीय मंडल, लेखक समुदाय, पाठकों और सभी सृजनधर्मी सहयोगियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। यह यात्रा निरंतर गतिशील रहे, और ‘साईं सृजन पटल’ भविष्य में भी साहित्य, संस्कृति और समाज को इसी प्रकार प्रकाशमान करता रहे — यही हमारी अपेक्षा और शुभेच्छा है।