ऋषिकेश (अंकित तिवारी): अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ऋषिकेश में मेडिसिन और नेफ्रोलॉजी विभाग के संयुक्त तत्वाधान में कार्डियो डायबेटिक सोसाइटी और यूके.आर.एस.एस.डी.आई के सहयोग से “डायबेटिक किडनी रोग” पर एक महत्वपूर्ण सीएमई (सतत चिकित्सा शिक्षा) कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य चिकित्सकों को इस गंभीर बीमारी के प्रबंधन, उपचार और रोकथाम के नवीनतम उपायों के बारे में जागरूक करना था।
सीएमई के उद्घाटन अवसर पर संस्थान की कार्यकारी निदेशक प्रो. मीनू सिंह ने कहा कि “स्वस्थ जीवनशैली, डॉक्टरों द्वारा नियमित जांच और चिकित्सीय परामर्श का पालन करने से मधुमेह रोगी अपनी किडनी को स्वस्थ रख सकते हैं।” उन्होंने यह भी कहा कि इस कार्यक्रम से विशेषज्ञों को एक मंच पर लाकर डायबेटिक किडनी रोग के इलाज और रोकथाम के लिए नए उपायों पर चर्चा करने का अवसर मिलेगा।
कार्यक्रम के आयोजक अध्यक्ष और मेडिसिन विभाग के प्रमुख प्रो. रविकान्त ने डायबेटिक किडनी रोग के प्रबंधन पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने बताया कि “मधुमेह से पीड़ित कई मरीजों को उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) की समस्या भी हो जाती है, जिसके कारण किडनी पर प्रतिकूल असर पड़ता है। इसीलिए, शुगर रोगियों को नियमित रूप से अपना रक्तचाप चेक कराना अत्यंत आवश्यक है।”
सीएमई के सह संयोजक डॉ. मुकेश बैरवा (मेडिसिन विभाग) और डॉ. शेरोन कंडारी (नेफ्रोलॉजी विभाग) ने बताया कि कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य चिकित्सकों को डायबेटिक किडनी रोग के बढ़ते मामलों के बारे में जागरूक करना और उन्हें अद्यतन चिकित्सा जानकारी प्रदान करना था।
कार्यक्रम में डीन एकेडमिक प्रो. जया चतुर्वेदी, चिकित्सा अधीक्षक प्रो. बी. सत्या श्री, और यूके.आर.एस.एस.डी.आई के चेयरमैन डॉ. दीपक रस्तोगी समेत कई अन्य विशेषज्ञों ने भी संबोधित किया।
इसके अलावा, विभिन्न चिकित्सा संस्थानों से आए विशेषज्ञ डॉक्टरों ने डायबेटिक किडनी रोग के प्रबंधन, नवीनतम शोध और उन्नत उपचार विधियों पर विचार प्रस्तुत किए। इस अवसर पर डॉ. संजय शाह, डॉ. दीपांकर भौमिक, डॉ. पुनीत अरोड़ा, डॉ. कल्याणी एस, और डॉ. पर्वन शेट्टी जैसे प्रमुख चिकित्सकों ने अपने विचार साझा किए।
सीएमई में विशेषज्ञों ने रोग की रोकथाम के लिए जीवनशैली में सुधार, समय-समय पर जांच, और सही उपचार पद्धतियों को अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया। इस कार्यक्रम ने डायबेटिक किडनी रोग के इलाज और उसकी रोकथाम के बारे में चिकित्सकों के ज्ञान में विस्तार किया और उन्हें बेहतर रोगी देखभाल प्रदान करने के लिए प्रेरित किया।