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सारकोमा और अस्थि कैंसर से लड़ाई में जल्दी पहचान, सही उपचार और समाजिक समर्थन की महत्वपूर्ण भूमिका : डॉ अमित सहरावत

सारकोमा और अस्थि कैंसर जागरूकता माह: समय रहते पहचान से बचाई जा सकती है ज़िंदगी

ऋषिकेश: एम्स ऋषिकेश में आज अस्थि और सारकोमा कैंसर जागरूकता माह के अवसर पर एक महत्वपूर्ण जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया। यह आयोजन मुख्य रूप से अस्थि और सारकोमा कैंसर के बारे में जागरूकता फैलाने और इन जटिल कैंसरों से प्रभावित व्यक्तियों के लिए समर्थन प्रदान करने के उद्देश्य से किया गया था। जुलाई माह को विश्वभर में सारकोमा और अस्थि कैंसर जागरूकता माह के रूप में मनाया जाता है, जो हमें इन दुर्लभ और जटिल कैंसर के बारे में जागरूक करने और प्रभावित व्यक्तियों के लिए समर्थन प्रदान करने का अवसर प्रदान करता है। इन कैंसरों में प्रमुख रूप से सारकोमा और बोन (हड्डी) कैंसर शामिल हैं, जो शरीर के संयोजी ऊतकों और हड्डियों से संबंधित होते हैं।

सारकोमा और अस्थि कैंसर: पहचान और उपचार की दिशा

सारकोमा एक दुर्लभ और जटिल प्रकार का कैंसर है, जो सॉफ्ट टिशू (मांसपेशियां, रक्त वाहिकाएं, नसें) और हड्डियों (बोन) में उत्पन्न होता है। भारत में, इस कैंसर के निदान में सबसे बड़ी चुनौती जागरूकता की कमी और प्रारंभिक लक्षणों की पहचान न होना है। एम्स ऋषिकेश के कैंसर रोग विशेषज्ञ और सह आचार्य डॉ अमित सहरावत ने इस संबंध में विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि, “सारकोमा और अस्थि कैंसर की पहचान में देरी से इलाज की प्रक्रिया भी देरी से शुरू होती है, जिससे रोग की गंभीरता बढ़ जाती है।” उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि सारकोमा को दो प्रमुख श्रेणियों में बांटा गया है: सॉफ्ट टिशू सारकोमा और बोन सारकोमा। इनकी पहचान के लिए विशेष तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है, जिनमें इम्युनोहिस्टोकैमिस्ट्री (IHC) और आणविक निदान (Molecular Diagnostics) शामिल हैं। सॉफ्ट टिशू सारकोमा के उदाहरणों में लिपोसारकोमा, लियोमायोसारकोमा, और एंजियोसारकोमा आते हैं, जबकि बोन सारकोमा में ऑस्टियोसारकोमा और इविंग सारकोमा प्रमुख हैं।

सारकोमा और अस्थि कैंसर के लक्षण

सामान्यत: गांठ,दर्द और सूजन के रूप में दिखाई देते हैं, जिन्हें अक्सर मामूली चोट या सिस्ट समझकर नजरअंदाज कर दिया जाता है। यही कारण है कि इन कैंसरों के निदान में देरी होती है। डॉ अमित सहरावत ने बताया कि, “अगर किसी व्यक्ति को हड्डी में लगातार गांठ, सूजन या दर्द जैसी समस्याएं हो रही हैं, तो उसे नज़रअंदाज नहीं करना चाहिए। इस प्रकार के लक्षणों के लिए एक साधारण एक्स-रे से प्रारंभिक पहचान की जा सकती है।”

भारत में ऑस्टियोसारकोमा और इविंग सारकोमा के इलाज में सुधार हुआ है। पिछले कुछ दशकों में, इन कैंसरों के उपचार में ऑपेरशन से पहले दिए जाने वाली कीमोथेरेपी और सर्जरी का संयोजन, जीवित रहने की दर में 75-80% तक की वृद्धि लाया है। हालांकि, चौथे स्टेज के मामलों में अभी भी परिणाम संतोषजनक नहीं हैं, और इस पर आगे शोध की आवश्यकता है।

उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि इविंग सारकोमा, जो बच्चों और युवाओं में प्रमुख रूप से पाया जाता है, के निदान में फ्लोरोसेंट इन सीटू हाइब्रिडाइजेशन तकनीक का उपयोग भारत में सामान्य हो गया है। इससे कैंसर के निदान में तेजी आई है और उपचार के लिए अधिक सटीक मार्गदर्शन प्राप्त हुआ है।

सारकोमा के निदान और उपचार में सुधार की दिशा

एम्स ऋषिकेश जैसे प्रमुख चिकित्सा संस्थान अब मल्टीडिसिप्लिनरी ट्रीटमेंट ग्रुप्स (MDTs) की सहायता से सारकोमा के मरीजों के इलाज में सहयोग कर रहे हैं। इस समर्पित प्रयास से उपचार को और अधिक प्रभावी और लक्षित बनाया जा रहा है। डॉ सहरावत ने कहा, “सारकोमा का इलाज केवल एक डॉक्टर के द्वारा नहीं किया जा सकता, इसके लिए एक टीम की आवश्यकता होती है, जो विभिन्न पहलुओं से मरीज के इलाज का मार्गदर्शन करे।”

भारत में बोन और सारकोमा कैंसर के उपचार में जागरूकता की कमी सबसे बड़ी चुनौती है। ग्रामीण क्षेत्रों में कम सुविधाओं और उच्च उपचार लागत के कारण यह समस्या और बढ़ जाती है। हालांकि, एनजीओ और प्रमुख अस्पतालों द्वारा जागरूकता अभियानों का आयोजन किया जा रहा है। एम्स ऋषिकेश और अन्य संस्थान इस दिशा में उल्लेखनीय कार्य कर रहे हैं।

समय रहते निदान और उपचार के बिना, बोन और सारकोमा कैंसर तेजी से बढ़ सकते हैं और जीवन को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकते हैं। कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ दीपक सुंदरियाल ने कहा कि, “सारकोमा का सही समय पर इलाज न केवल जीवन बचाता है, बल्कि जीवन की गुणवत्ता में भी सुधार लाता है।”

इस जागरूकता माह के अवसर पर, विशेषज्ञों ने अपील की है कि वे इस कैंसर के बारे में जागरूकता बढ़ाएं, ताकि समय रहते प्रारंभिक निदान हो सके और उपचार की प्रक्रिया शुरू हो सके।

उन्होंने कहा, “हम सभी को एक साथ मिलकर इस कैंसर के खिलाफ लड़ाई लड़नी चाहिए। जागरूकता बढ़ाकर हम किसी और को इस दर्द से बचा सकते हैं।”डॉ. अमित सहरावत ने कहा कि , “हम सभी का यह कर्तव्य बनता है कि हम इस कैंसर के बारे में जागरूकता फैलाएं। स्वास्थ्यकर्मी, शिक्षक, और माता-पिता को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि यदि बच्चों या युवाओं में अस्थि और सारकोमा कैंसर के कोई लक्षण दिखाई दें तो उन्हें तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।”
हम सबको मिलकर इस कैंसर के खिलाफ जंग लड़नी चाहिए, ताकि हम अपने बच्चों और समाज को एक स्वस्थ और बेहतर भविष्य दे सकें।

सारकोमा और अस्थि कैंसर से लड़ाई में जल्दी पहचान, सही उपचार और समाजिक समर्थन की महत्वपूर्ण भूमिका है।

कार्यक्रम के अंत में, उपस्थित सभी लोगों ने इस बीमारी के बारे में जागरूकता फैलाने का संकल्प लिया और यह सुनिश्चित किया कि वे इस दिशा में अपने योगदान देंगे।

एम्स ऋषिकेश द्वारा आयोजित इस जागरूकता कार्यक्रम ने यह सिद्ध कर दिया कि, “समय रहते पहचान और इलाज से हम जीवन को बचा सकते हैं, और इसके लिए जागरूकता और शिक्षा का होना बेहद आवश्यक है।”
जागरूकता कार्यक्रम में कार्यक्रम के संयोजक अंकित तिवारी, कुमुद बडोनी के अलावा सीनियर रेसिडेंट डॉ साईं प्रसाद, संजीवनी संस्था के अनुराग पाल, आरती राणा, गणेश पेटवाल, नर्सिंग ऑफिसर दीपिका नेगी, हिमानी धनाई, दानी राम पाण्डेय, विनीता सैनी आदि मौजूद रहे।

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