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घ्यूं संक्रांति भाद्रपद मास का प्रथम दिवस

उत्तराखंड//देहरादून

घृत संक्रांति ( घ्यू त्यार, उत्तराखंड) भाद्रपद मास का प्रथम दिवस| भारतीय समाज सदा ही उत्सवधर्मी रहा है| इन उत्सवों और लोकरीतियों में आतिथ्य और सम्मान की भावना सतत् परिलक्षित होती है| इन विधानों, रीतियों तथा परम्पराओं का महत्व पुरातन काल से रहा है | यद्यपि कुछ आधुनिकता के पक्षधर इन्हें पुराने जमाने की बात कहकर इनसे किनारा कर रहे हैं| तथापि इन परम्पराओं का महत्व अक्षुण्ण है| उत्तराखण्ड सहित समूचे भारत में प्रत्येक मास उत्सवों से अभिरंजित रहता है| आज का दिन भी उत्तराखण्ड में घ्यू त्यार (घृत संक्रांति) के रूप में मनाया जाता है| ऐसी जनश्रुति है कि इस दिन परिवार के प्रत्येक सदस्य को घी का सेवन करना चाहिए| जो ऐसा नहीं करता उसे अगले जन्म में घोंघा🐌 के रूप में जन्म लेना पड़ता है| खान- पान की अच्छी व स्वास्थ्यवर्धक आदतों को लोक परम्पराओं से जोड़कर उनको सार्वदेशिक व सार्वकालिक बनाने की अनूठी परम्परा भारतीय समाज की दूरदर्शिता का परिचायक ही है| इसी कारण हमारे समृद्ध अतीत का वैज्ञानिक व लोककल्याणकारी ज्ञान परम्पराओं के माध्यम से पीढ़ी दर पीढ़ी अग्रेषित होता रहा है | घृत संक्रांति भी इसी परम्परा का अंश है| यदि गौर किया जाए तो महान आयुर्वेदिक ग्रन्थ *”चरक संहिता” में इस ओर संकेत किया गया है| चरक संहिता के छठे अध्याय में ऋतुवर्णन के सन्दर्भ में महर्षि चरक ने किस ऋतु में कैसी दिनचर्या होनी चाहिए, इसका सटीक, वैज्ञानिक वर्णन किया है | भाद्रपद मास (वर्षा ऋतु) की दिनचर्या के वर्णन में चरक कहते हैं- *भूवाष्पान्मेघनिस्यन्दात् पाकादम्लाज्जलस्य च | वर्षास्वग्निबले क्षीणे कुप्यन्ति पवनादय:|| अर्थात् वर्षा ऋतु में भूमि से निकलने वाली वाष्प से, बादलों के बरसने से तथा भोजन में जल के अम्लविपाक होने से अग्नि (जठराग्नि) का बल क्षीण हो जाता है जिससे वातादि प्रकुपित हो जाते हैं (वात आदि का प्रभाव बढ़ जाता है) | इन प्रकोपों को शान्त करने के उपाय बताते हुए चरक कहते हैं- *व्यक्ताम्ललवणस्नेहं वातवर्षाकुलेऽहनि|* *विशेषशीते भोक्तव्यं वर्षास्वनिल शान्तये||* अर्थात् वर्षा ऋतु में तेज वायु और वर्षा वाले दिनों में वायु का प्रकोप बढ़ने पर रोग उत्पन्न होने की सम्भावना होती है| अत: वायु विकारों को दूर करने के लिए अम्लीय, नमक और चिकनाई युक्त ( घी, तेल युक्त) भोजन करना चाहिए|

क्योंकि भाद्रपद मास में वर्षा अपने चरम पर होती है और वायु का प्रभाव भी बढ़ने लगता है| इसलिए उत्तराखण्ड में भाद्रपद मास के प्रथम दिवस संक्रांति को घी का सेवन तथा बेड़ुवा रोटी ( आटे में उड़द/रैंस/लोबिया को पीसकर अन्दर भरकर बनाई गई रोटी) में घी लगाकर सेवन किया जाता है| ऋतुचर्या के दृष्टिकोण से भी यह सर्वथा उचित है|

क्योंकि यह प्रदेश हिमालय का ही भाग है तथा इसके बाद यहाँ शीत बढ़ती जाती हैं|इस दिन वर्षा माह में उत्पन्न होने वाले फलों सब्जियों को भी मंदिर में अर्पित किया जाता है पश्चात् उनका सेवन किया जाता है| प्रकृति के प्रति कृतज्ञता की यह सुंदर रीति निश्चय ही अनुकरणीय है| यह हमें मानव होने का अहसास कराती है तथा संवेदना की भाव भूमि पर मनोभावों का सिंचन करती है|

इस प्रकार हम ऋतु के अनुसार समुचित आहार करके स्वस्थ एवं दीर्घायु जीवन जी सकते हैं| क्योंकि उस समय आज की तरह चिकित्सालय या संप्रेषण सुविधा नहीं थी, इसलिए पूरे जन समुदाय को स्वस्थ रखने का यह अनूठा तरीका लोक में रच-बस गया|

आज आवश्यकता है कि हम अपनी जड़ों से जुड़ें| उनका सिंचन करें तथा इस समृद्ध परम्परा के संवाहक बनें| यह बात हमेशा याद रखनी होगी कि कोई भी परंपरा, रीति या कहावतें बनती हैं तो वे निराधार नहीं होतीं| उनके पीछे लोककल्याण की भावना निहित रहती है| साथ ही अधिसंख्य जनसमुदाय के लिए ये प्रेरणास्रोत का कार्य करती हैं| @©®

डॉ ० हेम चन्द्र तिवारी 🔏

सर्वेषां सुदिनं भवतु।

सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।🙏🙏🙏💐💐💐🌲🌲🌲

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