कर्णप्रयाग (अंकित तिवारी)। डॉ. शिवानंद नौटियाल राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, कर्णप्रयाग के भूगोल विभाग के बीए पंचम सेमेस्टर के 31 विद्यार्थियों ने अपने शैक्षणिक पाठ्यक्रम के अंतर्गत नैनीताल का तीन दिवसीय भौगोलिक भ्रमण सफलता पूर्वक पूरा किया। इस दल का नेतृत्व भूगोल विभाग के प्राध्यापक डॉ. नेहा तिवारी पांडे, नरेंद्र पंघाल और अनुसेवक शुभम रावत ने किया। महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. डॉ. आर.ए. सिंह और भूगोल विभाग प्रभारी डॉ. आर.सी. भट्ट ने पूरी टीम को भ्रमण के सफल समापन पर बधाई दी।
यह शैक्षिक भ्रमण विद्यार्थियों के लिए न केवल भूगोल से संबंधित जानकारी का खजाना था, बल्कि इसके माध्यम से उन्हें उत्तराखंड की सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और धार्मिक धरोहरों को भी जानने का अवसर मिला। दल ने कर्णप्रयाग से अपनी यात्रा शुरू की और गैरसैंण, द्वाराहाट, रानीखेत तथा कैंची धाम होते हुए नैनीताल पहुंचे।
भ्रमण के पहले दिन टीम ने कैंची धाम में नीम करोली बाबा की पूजा-अर्चना की और आशीर्वाद लिया। दूसरे दिन, छात्रों ने समुद्र तल से 1,938 मीटर की ऊंचाई पर स्थित प्रसिद्ध नैनी झील का भ्रमण किया। विद्यार्थियों ने नौका विहार का अनुभव किया और नैनीताल के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को समझा। नैनीताल का नाम नैना (आंखें) से लिया गया है और यह स्थान प्राचीन मान्यता के अनुसार भगवान शिव की आंखों के गिरने से जुड़ा हुआ है। विद्यार्थियों ने नैना देवी मंदिर में दर्शन किए और वहां के धार्मिक महत्व को जाना।
इसके बाद, टीम ने माल रोड का भ्रमण किया और नैनीताल के पर्यटन-संचालित अर्थव्यवस्था और शहरी संरचना का अध्ययन किया। फिर विद्यार्थियों ने भीमताल का दौरा किया, जो महाभारत के भीम द्वारा गदा से ज़मीन पर प्रहार करने से बना था। यहां विद्यार्थियों ने भीमेश्वर महादेव मंदिर का अवलोकन किया और क्षेत्रीय इतिहास को समझा।
तीसरे दिन, दल ने घोड़ाखाल स्थित प्रसिद्ध गोलू देवता मंदिर का दौरा किया, जो अपनी हज़ारों घंटियों के लिए प्रसिद्ध है। भक्त इस मंदिर में अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए घंटियाँ चढ़ाते हैं और यहां की प्राचीन प्रथा के बारे में विद्यार्थियों ने गहन अध्ययन किया।
वापसी यात्रा के दौरान, टीम ने सोमेश्वर घाटी की प्राकृतिक सुंदरता और कृषि परिदृश्यों का आनंद लिया। उन्होंने गोमती नदी के बाएँ तट पर स्थित प्राचीन बैजनाथ मंदिर परिसर का भ्रमण भी किया, जो कत्यूरी शासकों द्वारा 9वीं और 12वीं शताब्दी के बीच निर्मित है। यहां भगवान शिव के मुख्य मंदिर के साथ देवी पार्वती की खड़ी मूर्ति भी स्थित है।
यह शैक्षिक भ्रमण विद्यार्थियों के लिए भूगोल, संस्कृति, इतिहास और पर्यावरणीय अवलोकन का एक अमूल्य अनुभव साबित हुआ। सभी विद्यार्थियों को इस भ्रमण के दौरान प्राप्त ज्ञान पर आधारित एक विस्तृत भौगोलिक रिपोर्ट तैयार करनी है, जिसे वे अपनी आगामी कक्षाओं में प्रस्तुत करेंगे।






