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भक्ति अर सांस्कृतिक धरोहर की अभिव्यक्ति: सुरकण्डा मंदिर मा बद्रीश पिछौड़ी की भेंट

रानीपोखरी:  सांस्कृतिक अर धार्मिक परंपराओं कु महत्व समय-समय पर हमकु यो याद दिलान्दु च कि हमारा धार्मिक अनुष्ठान केवल भक्ति तक सीमित नी छन, बल्कि यंयूं मा हमारा प्राचीन संस्कार अर धरोहर कु संरक्षण भी छुप्युं च। हाल ही मा डोईवाला कॉलेज का पूर्व विश्वविद्यालय प्रतिनिधि, अंकित तिवारी द्वारा सुरकण्डा माता मंदिर मा भेंट करी ग्याई बद्रीश पिछौड़ी ये बात कु एक मजबूत उदाहरण बणी च।

कुछ दिन पैली, पिछौड़ी वूमेन मंजू टम्टा न अंकित तिवारी कु एक खास पिछौड़ी भेंट करी थि, जैकु वेन माता सुरकण्डा का चरणों मा चढ़ाये। ये पिछौड़ी की खास बात यो च कि येमा पैली बार ज़री बॉर्डर का दगड़ी भगवान बद्रीनाथ का वस्त्र कु एक छ्वटु अंश भी इस्तेमाल करे ग्याई च। यो वस्त्र भगवान बद्रीनाथ कु प्रसाद माणु जांदु च, अर येकु खास रूप से श्रद्धा अर आस्था का दगड़ी तैयार करे ग्याई थौ। ये पहल बटि यो केवल धार्मिक भावनाओं कु सम्मान नी करदी, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर कु भी सहेजण कु एक अनूठु प्रयास च।

मंजू टम्टा का हिसाब से, ये पिछौड़ी कु बणांदा वेकु सुखद अर आत्मिक अनुभूति व्हे, अर वो आशा करदी कि येकु पैलण वाला मनखी भी भगवान बद्रीनाथ कु आशीर्वाद महसूस करला। यो एक मान्यता च कि जखी भी भगवान का प्रसाद कु अंश होंदु, वखी आशीर्वाद अर शांति कु वास होंदु। ये खास पिछौड़ी का माध्यम बटि केवल धार्मिक आस्था ही नी, बल्कि लोक कला अर हस्तशिल्प की महत्ता भी उभरिक सामणी ऐ।

ये मौका पर मंदिर का पुजारी रामप्रकाश तिवारी, भक्त बीना तिवारी, डॉ. मनमोहन कुकरेती अर भारती तिवारी कुकरेती उपस्थित थ्या, जिन ये भव्य धार्मिक आयोजन कु सफल बणाण मा महत्वपूरण भूमिका निभाई। ये तरकि का आयोजनों बटि केवल धार्मिक आस्थाओं कु बल ही नी मिलदु, बल्कि समाज मा एकता अर समरसता की भावना भी जाग्रत होंदी।

यो आयोजन हम सब्यूं कु यो सिखान्दु च कि धर्म अर संस्कृति का संरक्षण मा केवल मंदिरों अर पूजा स्थलों कु योगदान ही नी होंदु, बल्कि समाज का हर वर्ग कु सहयोग भी जरूरी च। बद्रीश पिछौड़ी की भेंट केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नी, बल्कि भारतीय संस्कृति अर आस्था कु एक अद्भुत प्रतीक च, जो हमकु अपणा इतिहास अर परंपराओं बटि जोड़दु।

सुरकण्डा मंदिर मा भेंट करी ग्याई ये पिछौड़ी न हमकु यो याद दिलाये कि हमारी धार्मिक आस्थाएं अर सांस्कृतिक धरोहर एक-दूसरा से गहरा रूप मा जुड़ी छन। यो केवल एक श्रद्धा कु काम नी च, बल्कि एक संदेश च कि हम अपणा परंपराओं कु सम्मानित करां अर वेकु औण वाली पीढ़ियों तक पुजण कु प्रयास करां।

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