उत्तराखंड//हरिद्वार//रुड़की
भारतीय सनातन संस्कृति में वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा को जीवन का आधार माना गया है। वसुधैव कुटुंबकम का अर्थ सार्वभौमिक भाईचारे और सभी प्राणियों के परस्पर जुड़ाव के साथ शुध्द आहार,सात्विक विचार एवं मजबूत शिष्टाचार के सार को समाहित करता है। यह प्राचीन भारतीय दर्शन के इस विचार पर प्रकाश डालता है कि संपूर्ण विश्व एक बड़ा परिवार है,जहां हर व्यक्ति इस परिवार का एक सदस्य है। चाहे उसकी नस्ल, धर्म,राष्ट्रीयता या जातीयता कुछ भी हो। 15 अगस्त,1947 को अंग्रेजों से सत्ता हस्तांतरण के बाद भारतीय भाषा का अंग्रेजी भाषा के साथ पश्चिमी करण होने से लोग पश्चिमी सभ्यता अपनाने लगे।
अंग्रेजी भाषा के दुष्प्रभाव से कौन-कौन से चीजें कम हुई जो निम्नववत है।
1. कुटुम्ब कम हुए। एकांकी परिवार हम दो, हमारे दो।
2.सम्बंध कम हुए हमारे नाते-रिश्ते अंकल-आंटी तक सीमित हुए।
3.जिम्मेदारियों का अभास नींद कम होना।
4. प्रेम सम्बन्धों का कम होना।
5. शिष्टाचार लोक-लज्जा का कम होना।
6.मान-सम्मान मर्यादा कम हुई।
7.घर का खाना कम और फास्ट-फूड का चलन बढ़ा। 8.स्वाध्याय की प्रवृत्ति घटी पुस्तक का वाचन कम हुआ।
9.परस्पर पारिवारिक प्रेम कम हुआ।
10. चलना कम हुआ लोग अपने में सीमित।
11.खानपान की शुद्धता कम हुई।
12.गौ पालन कम होने से घी-मक्खन कम हुआ।
13.डिस्पोजल के प्रयोग से तांबे-पीतल के बर्तन कम हुए।
14. परस्पर द्वेष से सुख-चैन कम हुआ।
15.अपने तक सीमित होने से अतिथि कम हुए।
16.भ्रष्टाचार बढ़ने से सत्य कम आग्रह कम हुआ।
17.अंग्रेजी के प्रचलन से सभ्यताएं कम हुई।
18.प्रतिस्पर्धा के दौर में मन-मिलाप कम हुआ।
19. धर्म-कर्म के काम कम होने से समर्पण घंटा।
20.बड़ों का सम्मान कम हुआ।
21.सहनशीलता कम हुई ।
22. धैर्य कम हुआ ।
23. श्रद्धा-विश्वास कम हुआ।
और भी बहुत कुछ कम हुआ जिससे जीवन सहज व सरल था।
इन सबके लिए भावी पीढ़ी को दोष न दें।
बालक या बालिका को उन कान्वेंट इंग्लिश मीडियम’ में पढ़ाया…जहाँ
अंग्रेजी’ बोलने के साथ अंग्रेजी कल्चर सिखाया।
अंग्रेजी के कल्चर के चक्कर में नमस्ते श्रीमन, सुप्रभातम,मंगल मैत्री की जगह गुड मोर्निंग,गुड नाईट,हाय मैम,हाय डैड सिखाया।
आचार्य, गुरु जी शिष्टाचार शब्दों की जगह सर,मैडम जैसे शब्दों का प्रयोग कराया।
मुख्य द्वार पर अभिभावकों एवं आगंतुकों के स्वागत में सुस्वागतम की जगह welcome लिखकर सिखाया।
बर्थ डे’ और ‘मैरिज एनिवर्सरी’
जैसे जीवन के ‘शुभ प्रसंगों’ को ‘अंग्रेजी कल्चर’ के अनुसार जीने को ही ‘श्रेष्ठ’ माना।
माता-पिता को ‘मम्म’ ‘डैड’ कहना सिखाया।
भारतीय भाषाओं को दर किनार कर कानमेंट,मॉडल स्कूलों की नकल पर आ गए।
‘अंग्रेजी’ बोलचाल व अंग्रेजी कल्चर सिखाया।
जन्मदिन व शादी की सालग्रह छोड़कर
‘बर्थ डे’ व ‘मैरिज एनिवर्सरी’ पर आ गए।
जीवन के ‘शुभ प्रसंगों’ को ‘अंग्रेजी कल्चर’ के अनुसार जीने को ‘श्रेष्ठ’ माना।
माता-पिता को ‘मम्मी’ और डैड’ कहना सिखाया।
बच्चा जब पहली बार घर से बाहर निकला तो उसे
‘प्रणाम-आशीर्वाद’ के बदले ‘बाय-बाय’ कहना सिखाने वाले आप…
परीक्षा देने जाते समय
‘इष्टदेव/बड़ों के पैर छूने’ के बदले
‘Best of Luck’
कह कर परीक्षा भवन तक छोड़ने वाले आप…
बच्चा जब ‘अंग्रेजी कल्चर’ से परिपूर्ण होकर,आपको ‘समय’ नहीं देता,आपकी ‘भावनाओं’ को नहीं समझता, आप को ‘तुच्छ’ मानकर ‘जुबान लड़ाता’ है और आपको बच्चों में कोई ‘संस्कार’ नजर नहीं आता है..
तब घर के वातावरण को ‘गमगीन किए बिना’… या…
‘संतान को दोष दिए बिना’…कहीं ‘एकान्त’ में जाकर ‘विचार करें. कि
संतान की पहली वर्षगांठ से ही,
‘भारतीय संस्कारों’ के बजाय,मंदिर जाने की जगह,
‘केक’ कैसे काटा जाता है सिखाने वाले आप ही हैं…
‘हवन कुण्ड में आहुति’ कैसे दी जाए…
‘मंत्र,आरती,हवन, पूजा-पाठ,आदर-सत्कार के संस्कार देने के बदले’…
केवल ‘फर्राटेदार अंग्रेजी’ बोलने को ही,
अपनी ‘शान’ समझने वाले भी शायद आप ही हैं…
बालक या बालिका के ‘सफल’ होने पर, घर में परिवार के साथ बैठ कर ‘खुशियाँ’ मनाने के बदले…
‘होटल में पार्टी मनाने’ की ‘प्रथा’ को बढ़ावा देने वाले आप…
बालक या बालिका के विवाह के पश्चात्…
‘कुल देवता / देव दर्शन’
को भेजने से पहले…
‘हनीमून’ के लिए ‘फाॅरेन/टूरिस्ट स्पॉट’ भेजने की तैयारी करने वाले आप…
ऐसी ही ढेर सारी ‘अंग्रेजी कल्चर्स’ को हमने जाने-अनजाने ‘स्वीकार’ कर लिया है…
अब तो बड़े-बुजुर्गों और श्रेष्ठों के ‘पैर छूने’ में भी ‘शर्म’ आती है…
गलती किसकी..?
मात्र माँ-बाप की’…
अंग्रेजी अंतरराष्ट्रीय भाषा’ है…
कामकाज हेतु इसे ‘सीखना’है,अच्छी बात है पर
इसकी ‘संस्कृति’ को,’जीवन में उतारने’ की कोई बाध्यता न पहले थी न आज है?
अपनी पाश्चात्य संस्कृति को त्यागकर नैतिक मूल्यों,मानवीय संवेदनाओं रहित पाश्चात्य सभ्यताओं की जीवनशैली अपनाकर हमनें क्या पाया? अवैध संबंध? टूटते परिवार? व्यसनयुक्त तन? थकाहारा मन?टूटते रिश्ते? अभद्र,अनुशासनहीन संतानें? असुरक्षित समाज? भयावह भविष्य? और न जाने क्या.क्या…
यह इस पाश्चात्य,भौतिकवादी युग में विचार करने का विषय है,संस्कारवान पीढ़ी ही क्यों आवश्यक है?
संस्कारों से सुदृढ़ समाज की नई पीढ़ी का निर्माण संभव है। संस्कार के बिना मनुष्य का जीवन अधूरा है। वर्तमान समय में कॉनमेंट व मॉडल स्कूलों की पाश्चात्य शिक्षा से नैतिकता व संस्कार में कमी आ रही है। जिस कारण भ्रष्टाचार व अपराध बढ़ रहे हैं। संस्कार का ह्रास हो जाए तो समाज समाप्त हो जाएगा। इसलिए इसे बनाए रखने के लिए भारतीय संस्कृति और जीवन मूल्यों पर चलने वाली शिक्षा की जरूरत है।