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संपादकीय: तीन पीढ़ियां, एक परंपरा: शिक्षा और सृजन की यात्रा

उत्तराखंड- कुछ दिवस जीवन के लिए विशेष और अत्यंत महत्वपूर्ण रहते है। जीवन में कुछ ऐसे क्षण होते हैं जो न केवल हमें प्रेरित करते हैं, बल्कि हमारे व्यक्तित्व और सोच पर गहरा प्रभाव डालते हैं। आज का अनुभव भी कुछ ऐसा ही रहा, जब मुझे मेरे गुरु, मार्गदर्शक और प्रेरणास्त्रोत डॉ. के. एल. तलवाड़ जी का फोन आया। गुरुजी ने सूचना दी कि देहरादून में ‘लेखक गांव’ के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण बैठक होने जा रही है, जिसकी अध्यक्षता भारत सरकार के पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री एवं उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक करेंगे। गुरुजी का आदेश मेरे लिए सर्वोपरि था, इसलिए तुरंत अपने वाहन से देहरादून में उनके आवास पर पहुंचा।

गुरुजी के साथ बैठकर उनके अनुभवों और मार्गदर्शन को आत्मसात करने का अवसर मिला। उनके साथ कार में बैठक स्थल की ओर प्रस्थान करते हुए मन में एक गहरा संतोष था कि मैं अपने गुरु के साथ हूँ। वहाँ पहुँचते ही मेरा परिचय एक और महान व्यक्तित्व से हुआ—प्रोफेसर डॉ. सविता मोहन जी, जो न केवल पूर्व उच्च शिक्षा निदेशक थीं, बल्कि मेरे गुरुजी के गुरु भी रही हैं। यह मुलाकात मेरे जीवन की सबसे महत्वपूर्ण मुलाकातों में से एक थी, क्योंकि यह केवल दो व्यक्तियों की भेंट नहीं, बल्कि तीन पीढ़ियों का संगम था—प्रो. सविता मोहन , मेरे गुरु डॉ. के. एल. तलवाड़ , और मैं (अंकित तिवारी)।

प्रो. सविता मोहन ने मुझे ‘नाती’ कहकर संबोधित किया, और इस एक शब्द ने हमारे बीच भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से एक अद्वितीय रिश्ता जोड़ दिया। यह मेरे लिए एक अभूतपूर्व अनुभव था कि मैं उस वंश परंपरा का हिस्सा बन गया, जिसमें शिक्षा, सृजन, और सामाजिक सेवा की एक लंबी धारा प्रवाहित होती आ रही है। यह गुरु-शिष्य परंपरा की सजीवता थी, जो न केवल मुझे गौरवान्वित करती है बल्कि मेरे कर्तव्यों की जिम्मेदारी भी बढ़ा देती है।

बैठक के दौरान, गुरुजी ने मुझे ‘साईं सृजन पटल’ के उप-संपादक और अपने प्रिय शिष्य के रूप में प्रस्तुत किया। यह मेरे लिए अत्यंत गर्व का क्षण था, जब गुरुजी के साथ साईं सृजन पटल के प्रथम अंक को डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक जी और मेरी दादी समान प्रो. सविता मोहन जी को भेंट किया। यह क्षण न केवल व्यक्तिगत रूप से महत्वपूर्ण था, बल्कि उस कार्य की पहचान भी थी जिसे हम सभी मिलकर समाज के लिए कर रहे हैं।

यह अनुभव मुझे सिखाता है कि जब तीन पीढ़ियां एक साथ आती हैं, तो ज्ञान, अनुभव और सृजन की एक नई धारा बहती है, जो समाज और देश के विकास के लिए आवश्यक होती है। हम सभी का यह दायित्व बनता है कि हम अपने पूर्वजों के अनुभवों और मार्गदर्शन को आत्मसात करें और उसे अगली पीढ़ी तक पहुंचाएं।

इस बैठक के माध्यम से ‘लेखक गांव’ जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा हुई, जो भविष्य के लिए कई नए विचार और योजनाओं का बीज बोएगा। यह भेंट मेरे जीवन में एक नई दिशा का संचार करती है और मुझे प्रेरित करती है कि मैं अपने गुरुजनों के पदचिन्हों पर चलकर समाज और राष्ट्र की सेवा करूं।

अंततः, यह दिन मेरे लिए तीन पीढ़ियों के संगम का सजीव प्रतीक बन गया और एक अद्वितीय प्रेरणा स्रोत भी। यह एक ऐसा दिन था, जिसे मैं हमेशा अपने हृदय में संजो कर रखूंगा।

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