थानों//भोगपुर
कर्मयोगी शिक्षक चतर सिंह मनवाल जी को सेवानिवृत्त हुए एक दशक से अधिक का समय हो गया है लेकिन अभी भी उनमें वही ऊर्जा वही जोश बरकरार है। हाथों में हर समय कुदाल है और कदम हर समय खेतों की ओर दौड़ते रहते हैं। मनवाल जी ने अपने घर पर पॉली हाउस लगाया हुआ है।
अपनी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए साग सब्जी का उत्पादन घर पर ही करते हैं। *उन्होंने बहुत सुंदर किचन गार्डन तैयार किया हुआ है।* किचन गार्डन में आलू, प्याज, लहसुन, गोभी, टमाटर सहित बहुत सारी सब्जियां हर मौसम में उगाई जा रही हैं।
*श्री मनवाल जी गो पालन भी करते हैं और प्रतिदिन प्राप्त होने वाला 10 लीटर दूध घर परिवार में ही काम आता है।* श्री मनवाल जी ने बताया कि वह दूध की बिक्री नहीं करते हैं।
*श्री मनवाल जी एक आदर्श शिक्षक रहे हैं।* बचपन से ही वह परिश्रमी रहे हैं। अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही प्राप्त करने के पश्चात उन्होंने हाईस्कूल स्तर की शिक्षा प्राप्त करने के लिए 25 से 30 किलोमीटर का सफर प्रतिदिन तय किया है। श्री मनवाल जी खेती किसानी के काम में भी बचपन से ही जुटे रहे हैं। उसी का परिणाम है कि *सेवानिवृत्ति के पश्चात आज भी वे पूरा समय खेती और बागवानी को देते हैं।* श्री मनवाल जी के लीची और आम के बगीचे अब फल देने लग गए हैं। श्री मनवाल जी ने बताया कि जब उन्होंने आम का बगीचा लगाया था तो अपने बच्चों को साथ ले जाकर गड्ढे करवाए थे और उस समय उन्होंने बच्चों से कहा था कि जब इन पौधों पर फल लगेंगे तो इसके आम मैं तुम्हें भेजूंगा। तुम जहां भी नौकरी में रहोगे अपने लगाए बगीचे के फलों का स्वाद चखोगे। मनवाल जी उन दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि उस समय की हमारी मेहनत का फल अब हमें प्राप्त हो रहा है।
श्री मनवाल जी ने तीन दशक से अधिक समय तक सरकारी नौकरी की है। इस दौरान वे जिन – जिन क्षेत्रों में भी सेवा में रहे अपने मधुर व्यवहार, कार्य कुशलता, छात्रों के प्रति समर्पण के कारण वह आज भी अभिभावकों और छात्रों द्वारा याद किए जाते हैं। श्री मनवाल जी ने बताया कि मैं सबसे पहले जब सेवा में लगा था तो उत्तरकाशी जनपद मेरी कर्मभूमि बनी। उन्होंने बताया कि गत वर्ष हम जब गंगोत्री – यमुनोत्री यात्रा पर गए तो उस दौरान अपनी पहली कर्मभूमि के गांव में रहे। कर्मभूमि के गांव के लोगों उनका बड़ी आत्मीयता के साथ स्वागत सत्कार किया।
श्री मनवाल जी ने बताया कि तीन – चार दशक पहले जब वह सरकारी सेवा में घर से बहुत दूर रहे तो उस समय परिवार की जिम्मेदारी, बच्चों के लालन-पालन और शिक्षा दीक्षा का समस्त भार उनकी धर्म पत्नी जी ने वहन किया। *उन्होंने बताया की धर्मपत्नी जी के परिश्रम का ही फल है* कि आज उनके चारों बच्चे सफल हैं।
श्री मनवाल जी प्याज की पौध के लिए भी कई दशकों से प्रसिद्ध हैं। इनकी क्यारी में उगाई गई प्याज की पौध दूर दराज के क्षेत्र तक पहले ही मांग करके बुक कर दी जाती है। श्री मनवाल जी ने बताया कि मूल गांव में भी वह अपनी भूमि को पुनः आबाद करने के लिए प्रयासरत हैं। उन्होंने बताया कि उनके छोटे भाई श्री राजेंद्र सिंह मनवाल जी गांव में ही डेरा जमा कर खेती का कार्य कर रहे हैं और पशुपालन भी कर रहे हैं।
श्री मनवाल जी जैसे आदर्श शिक्षक, कुशल किसान, व्यवहार कुशल व्यक्तित्व, हंसमुख स्वभाव वाले, मधुर वाणी के धनी सफल व्यक्तित्व को बारंबार सैल्यूट।