देहरादून(अंकित तिवारी): “साहित्य समाज का दर्पण होता है”, यह कहावत सदियों से हमारी सांस्कृतिक चेतना का हिस्सा रही है। लेकिन आज के दौर में जब जनसंचार के प्रभावशाली माध्यमों में सिनेमा अग्रणी भूमिका निभा रहा है, तब यह कहने में कोई संकोच नहीं कि संदेशपरक फिल्में भी समाज और व्यवस्था का जीवंत प्रतिबिंब बन चुकी हैं। इस संदर्भ में फिल्म निर्माता रवि मंमगाईं की नवीनतम गढ़वाली फिल्म ‘मिशन देवभूमि’ एक साहसिक, विचारोत्तेजक और कलात्मक प्रयास के रूप में सामने आती है, जो न केवल दर्शकों का मनोरंजन करती है, बल्कि उन्हें झकझोर कर सोचने को विवश भी करती है।
गढ़वाली सिनेमा की यह फिल्म अपने कथानक में ‘लव जेहाद’ और ‘भू-कानून’ जैसे संवेदनशील मुद्दों को केंद्र में रखते हुए सामाजिक सौहार्द और मातृभूमि की रक्षा के संदेश को मजबूती से प्रस्तुत करती है। एक ओर जहां फिल्म समाज में पनप रहे षड्यंत्रों के प्रति सचेत करती है, वहीं दूसरी ओर यह उत्तराखंड की संस्कृति, सौंदर्य और आत्मगौरव की भावनाओं को भी प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करती है।
‘मिशन देवभूमि’ सिर्फ एक फिल्म नहीं, एक मिशन है — यह एक हुंकार है उस शांत देवभूमि की, जो अब सजग हो रही है, संगठित हो रही है और अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए खड़ी हो रही है।
फिल्म की विशेषता इसकी पटकथा, सशक्त संवाद, शानदार लोकेशन्स, सिनेमैटोग्राफी, म्यूजिक और उच्च तकनीकी गुणवत्ता में निहित है। आज जब सिनेमा में तकनीकी उत्कृष्टता की तुलना अक्सर बॉलीवुड से की जाती है, ‘मिशन देवभूमि’ उस मानक पर खरी उतरती है। सुमाड़ी, श्रीनगर, ऋषिकेश, टिहरी, चकराता और देहरादून जैसे मनोरम स्थलों पर फिल्माई गई इस फिल्म की दृश्यावली दर्शकों को बाँधे रखती है।
सेवानिवृत्त प्राचार्य एवं साईं सृजन पटल पत्रिका के मुख्य संपादक प्रो. के.एल. तलवाड़ द्वारा इस फिल्म की सराहना स्वयं में एक प्रमाण है कि यह फिल्म दर्शकों को गहराई तक प्रभावित करती है। प्रो. तलवाड़ का कथन, “यह एक संदेशपरक फिल्म है जिसे हर उत्तराखंडी को अपनी बेटियों के साथ अवश्य देखना चाहिए,” फिल्म की सामाजिक प्रासंगिकता और आवश्यक संवाद को रेखांकित करता है।
फिल्म के सभी कलाकारों ने अपनी भूमिकाओं को आत्मसात करते हुए बेहतरीन अभिनय प्रस्तुत किया है, विशेषकर अंजलि के पिता शिवचरण जी की भूमिका में कलाकार ने जिस गहराई और सहजता के साथ अपनी प्रस्तुति दी, वह बॉलीवुड के मंझे हुए कलाकारों की याद दिला देती है।
‘मिशन देवभूमि’ उस दौर की फिल्म है, जब सिनेमा महज मनोरंजन नहीं बल्कि एक आंदोलन, एक सामाजिक संवाद और एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण का माध्यम बन चुका है। यह फिल्म यह भी साबित करती है कि गढ़वाली भाषा में भी राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर की उत्कृष्ट फिल्में बनाई जा सकती हैं, जिनमें संवेदना, साहस और सोचने के लिए आवश्यक तत्व सभी उपस्थित हों।
आज जब देश और विशेषकर उत्तराखंड की सांस्कृतिक अस्मिता, सामाजिक संरचना और प्राकृतिक धरोहरों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं, तब ऐसी फिल्में आशा की किरण बनकर आती हैं।
अतः, ‘मिशन देवभूमि’ एक सामयिक सिने-क्रांति है जो आने वाली पीढ़ियों को सचेत करती है, समाज को जागरूक करती है और उत्तराखंड की मातृशक्ति, संस्कृति और पहचान की रक्षा का आह्वान करती है।
इस फिल्म की पूरी टीम को ढेरों बधाई एवं शुभकामनाएं। उत्तराखंड के प्रत्येक नागरिक को यह फिल्म न केवल देखनी चाहिए, बल्कि इसके संदेश को आत्मसात भी करना चाहिए — क्योंकि यह सिर्फ कहानी नहीं, बल्कि हमारी अस्मिता की पुकार है।