उत्तराखंडयूथशिक्षासामाजिकस्वास्थ्य

सांस्कृतिक वैभव और हिन्दुत्वज्ञानिक दृष्टिकोण का मार्ग : कमल किशोर डुकलान ‘सरल’

उत्तराखंड//हरिद्वार//रुड़की

हिंदुत्व न केवल एक धर्म होने के साथ-साथ एक जीवनशैली, एक विचारधारा और सांस्कृतिक चेतना का प्रतीक है। हिन्दुत्व हिंदू समाज की आत्मा में निहित एक विचारधारा है, जो हिन्दुत्व को सांस्कृतिक परंपराओं, रीति-रिवाजों और मान्यताओं से जोड़ती है।…

हिंदुत्व किसी एक धर्म या पंथ तक सीमित न होकर यह भारतीय संस्कृति की समग्रता का प्रतीक है, जिसमें जीवन के सभी क्षेत्रों में समरसता और संतुलन की भावना निहित है। हिंदुत्व की अवधारणा केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं है,बल्कि भारतीय सभ्यता की सांस्कृतिक धरोहर, रीति-रिवाज,परंपराओं और दर्शन पर आधारित है। प्राचीन काल से ही हिंदू धर्म ने “सर्वधर्म समभाव” और “वसुधैव कुटुंबकम्” जैसे विचारों को अपने केंद्र में रखा है। वास्तव में अगर देखा जाए तो हिंदुत्व इसी उदारता और समावेशी वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अनादिकाल से प्रतिनिधित्व करता आया है।

भारत के सांस्कृतिक एकता के संदर्भ में हिन्दुत्व की विचारधारा महत्वपूर्ण है,जहां विभिन्न भाषाओं,जातियों और धर्मों के बावजूद एक गहरी सांस्कृतिक एकता है। वामपंथी इतिहासकारों द्वारा यह कहा गया है कि हिंदुत्व एक आधुनिक औपनिवेशिक निर्माण है और इसका इतिहास में कोई ठोस आधार नहीं है। यह धारणा हिंदुत्व के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक आधार की गलत समझ को प्रदर्शित करती है।
हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा प्राचीन ग्रंथों और वैदिक साहित्य में जो विचारधाराएं प्रस्तुत की गई हैं, वे स्पष्ट रूप से हिंदुत्व के विचार का समर्थन करती हैं। यज्ञ,तप,ध्यान, और दान जैसे धार्मिक कार्यों के माध्यम से एक व्यक्ति को व्यक्तिगत और सामाजिक उन्नति के मार्ग पर प्रेरित किया गया। ये कार्य केवल धर्म के रूप में नहीं, बल्कि एक समग्र जीवनशैली के रूप में देखा गया है,जो हिंदुत्व के मूल सिद्धांत पर आधारित है।
वैदिक काल से लेकर आज तक हिन्दुत्व की जड़ें भारतीय संस्कृति और सभ्यता में फैली हुई हैं। वैदिक काल में आर्य समाज के मूल्यों और आध्यात्मिक विचारधारा के माध्यम से हिंदुत्व का विकास हुआ। इसके बाद,रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों ने हिंदुत्व को समाज में धार्मिक,नैतिक और सांस्कृतिक दिशा प्रदान की। भक्ति आंदोलन और वेदांत दर्शन ने हिंदुत्व की आध्यात्मिक गहराई को बढ़ावा दिया, जबकि विभिन्न सामाजिक सुधार आंदोलनों ने इसे समयानुसार परिष्कृत किया। यह तथ्य ध्यान देने योग्य है कि वामपंथी इतिहासकारों ने भारतीय इतिहास के विकास को विकृत करने का प्रयास किया,जबकि सच्चाई यह है कि हिंदुत्व के मूल में सार्वभौमिकता,सहिष्णुता और विविधता के प्रति सम्मान है।
भारत की हजारों वर्षों की सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराएं इस बात का प्रमाण हैं कि हिंदुत्व का विकास शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और विविध धार्मिक मान्यताओं के सम्मान पर आधारित है। वामपंथी इतिहासकार हिंदुत्व को कट्टरवादी विचारधारा के रूप में प्रस्तुत करते आये हैं। वामपंथियों के अनुसार हिंदुत्व भारतीय समाज में साम्प्रदायिकता और विभाजन को बढ़ावा देता है। लेकिन वामपंथियों द्वारा सांप्रदायिकता और विभाजनकारी दृष्टिकोण हिंदुत्व के वास्तविक स्वरूप को गलत ढंग से समझने का परिणाम है। वास्तव में, हिंदुत्व का उद्देश्य संपूर्ण भारतीय समाज को एकजुट करना है। यह सभी धर्मों और मान्यताओं के प्रति सहिष्णुता और सम्मान का प्रचार करता है।
भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता हिन्दुत्व की सबसे बड़ी ताकत है, हिन्दुत्व की यह विविधता सह-अस्तित्व की भावना के आधार पर संरक्षित और संवर्धित होनी चाहिए। वामपंथी इतिहासकारों का यह तर्क कि हिंदुत्व विभाजनकारी है, वस्तुतः हिंदुत्व की वास्तविकता से दूर है। उनका मानना है कि यह विचारधारा केवल हिंदू धर्म की श्रेष्ठता को प्रोत्साहित करती है और अन्य धर्मों के प्रति असहिष्णु है। लेकिन यह दृष्टिकोण ऐतिहासिक तथ्यों और हिंदुत्व की वास्तविक परिभाषा से परे है। हिंदुत्व की जड़ें उस समावेशी परंपरा में हैं,जो विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों को आत्मसात करने की क्षमता रखती है।
भारत में बौद्ध, जैन और सिख पंथ के साथ-साथ इस्लाम और ईसाई पंथ ने भी अपनी पहचान बनाई, लेकिन यह सब हिंदुत्व की व्यापक छाया में फलते-फूलते रहे हैं। वामपंथी विमर्श अक्सर यह तर्क देता है कि हिंदुत्व भारतीय समाज के भीतर सामाजिक विभाजन और जातिवाद को बढ़ावा देता है। हालांकि, वास्तविकता यह है कि हिंदुत्व का आदर्श जाति और वर्ग के पार जाकर एक समावेशी समाज की स्थापना करना है। इसके प्रमाण हमें स्वतंत्रता संग्राम के समय में भी मिलते हैं, जब हिंदू और मुसलमान दोनों ही एकजुट होकर अंग्रेजी शासन के खिलाफ लड़े थे।

हिंदुत्व ने कभी भी विभाजन की राजनीति को प्रोत्साहित नहीं किया; बल्कि इसका उद्देश्य हमेशा से एक अखंड और समावेशी समाज की स्थापना का रहा है। हिंदुत्व केवल धार्मिक या सांस्कृतिक पहचान तक सीमित नहीं है,बल्कि यह भारत के राष्ट्रीय चरित्र का एक अभिन्न अंग है। गांधी से लेकर विवेकानंद तक, सभी ने भारतीय संस्कृति और हिंदू दर्शन को राष्ट्रीय पुनर्जागरण के संदर्भ में देखा है।

हिंदुत्व ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को भी प्रेरित किया और भारतीय समाज को औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वामपंथी इतिहासकार इस तथ्य को अनदेखा करते हैं कि हिंदुत्व ने भारतीय राष्ट्रवाद को एक नई दिशा दी और इसे उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष में प्रेरित किया। वे हिंदुत्व के इस पक्ष को दरकिनार करते हैं और इसे केवल सांप्रदायिकता के चश्मे से देखते हैं। परंतु सच्चाई यह है कि हिंदुत्व का उद्देश्य न केवल धार्मिक जागरूकता बढ़ाना है, बल्कि भारतीय समाज के सभी वर्गों को एकता के सूत्र में पिरोना है।

हिंदुत्व की एक विशेषता यह है कि यह सहिष्णुता और विविधता का सम्मान करता है। हिंदुत्व में एक ही परब्रह्म की अलग-अलग स्वरूपों में उपासना की जाती है, और यह बहुलतावाद भारतीय समाज की आत्मा में गहराई से रचा-बसा हुआ है। हिंदुत्व का दर्शन यह सिखाता है कि सभी पंथ और विचार धाराएँ एक ही परम सत्य की ओर ले जाती हैं। यह सहिष्णुता और समावेशिता हिंदुत्व के मूल में है, जो वामपंथी इतिहासकारों के कट्टरता के आरोपों को खारिज करता है। वास्तव में, हिंदू समाज ने ऐतिहासिक रूप से यह साबित किया है कि वह विभिन्न धर्मों, संस्कृतियों और जातियों को स्वीकार करता है और उन्हें समाहित करने की क्षमता रखता है।

भारत में पारसी, यहूदी, बौद्ध, जैन, सिख और मुस्लिम समुदायों का समृद्ध इतिहास इस बात का प्रमाण है कि हिंदुत्व सह-अस्तित्व और सहयोग का प्रतीक है। वामपंथी आलोचनाओं के विपरीत, हिंदुत्व का उद्देश्य एक ऐसे समाज का निर्माण करना है, जिसमें विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक पहचानें एक-दूसरे के साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व में रहें। आधुनिक भारत में हिंदुत्व ने न केवल सांस्कृतिक पुनर्जागरण में योगदान दिया है, बल्कि समाज के विभिन्न क्षेत्रों में भी सुधार किए हैं। हिंदुत्व आधारित संगठनों ने शिक्षा, स्वास्थ्य, और सामाजिक न्याय के क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

भारतीय समाज में महिलाओं के अधिकार, दलितों और पिछड़े वर्गों के उत्थान, और पारिवारिक मूल्यों की पुनर्स्थापना में भी हिंदुत्व की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। वामपंथी इतिहासकारों द्वारा हिंदुत्व को केवल सांप्रदायिकता और राजनीति से जोड़ा जो गलत है। हिंदुत्व ने भारतीय समाज के समग्र विकास में योगदान दिया है और यह केवल एक राजनीतिक विचारधारा नहीं, बल्कि एक सामाजिक आंदोलन भी है। भारतीय संविधान के सिद्धांतों के अनुरूप, हिंदुत्व भारतीय समाज में समता, स्वतंत्रता, और बंधुत्व की भावना को बढ़ावा देता है।

अंततः, हिंदुत्व प्रत्येक हिंदू की आत्मा में गहराई से निहित है,जिसका कि अविभाज्य संबंध है । यह केवल धार्मिक ही नहीं,बल्कि सामाजिक,सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पहचान का प्रतीक भी है। वामपंथी इतिहासकारों ने इसे जिस प्रकार से विकृत किया है,वह न केवल गलत है, बल्कि भारतीय सभ्यता के मूल्यों और आदर्शों के खिलाफ भी है। हिंदुत्व न केवल हिंदुओं के लिए,बल्कि संपूर्ण भारतीय समाज के लिए एक मार्गदर्शक का सिद्धांत भी है, जो सहिष्णुता, समरसता, और विविधता को महत्व देता है। आधुनिक भारत के संदर्भ में, हिंदुत्व एक सकारात्मक विचारधारा के रूप में उभर कर सामने आया है,जो भारत की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करता है। इसे न केवल राजनीति या सांप्रदायिकता के चश्मे से देखने की बजाय भारत की आत्मा और उसकी सांस्कृतिक पहचान के प्रतीक के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button