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इंसानों का जीवन बचाने में अहम एक पेड़ प्रकृति मां के नाम : कमल किशोर डुकलान ‘सरल’

उत्तराखंड//हरिद्वार//रुड़की

प्रतिवर्ष सरकारी,शैक्षिक एवं सामाजिक स्तर पर पर्यावरण संरक्षण के नाम पर केवल वृक्षारोपण की औपचारिकता नहीं बल्कि अधिक से अधिक पेड़ लगाकर प्रकृति मां को संरक्षित करने वाले प्रत्येक नागरिक के भाव-चाव का आधार बनें!…..

उसर भूमि से मरुस्थलीय में बदलती धरती आज पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय बनी हुई है। उजड़ती हरियाली से न केवल तपिश बढ़ रही है, बल्कि बढ़ते प्रदूषण ने भी जीना दुश्वर कर दिया है। ऐसे में पेड़ लगाना और उन्हें सहेजना ही धरती के रंग और इंसानों का जीवन बचाया जा सकता है। हवा में घुलते जहर, बढ़ते तापमान और मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कटते वृक्षों से पैदा हो रहे पर्यावरण असंतुलन से मुकाबला करने का आज एकमात्र रास्ता अधिक से अधिक पेड़ लगाना ही रह जाता है।

“एक पेड़ मां के नाम” अभियान का व्यावहारिक पक्ष यह है कि वर्षों-वर्षों से सरकारी अथवा सामाजिक,शैक्षिक संस्थानों के द्वारा पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्धन के नाम पर केवल पेड़ लगाने की औपचारिकता पूरी करने भर से नहीं बल्कि रोपे गए पौधों को पोसने के भाव से भी जुड़ी है। प्रतिवर्ष सरकारी, शैक्षिक एवं सामाजिक स्तर पर बड़ी संख्या में वृक्षारोपण के बावजूद पालने-पोसने के प्रति गंभीरता न होने के कारण बहुत से पौधे नष्ट हो जाते हैं। ऐसे में वृक्षारोपण अभियान के साथ पौधों के प्रति भावनात्मक जुड़ाव का भाव होना पेड़ लगाने के बाद उनके संरक्षण में भी मददगार साबित होगा। इसी भाव को बल देने वाला “एक पेड़ मां के नाम” अभियान प्रकृति मां की रक्षा करने और सतत जीवन शैली अपनाने की प्रत्येक भारतीय की प्रतिबद्धता है।

वर्षों-वर्षों से पर्यावरण संरक्षण के नाम पर वृक्षारोपण के सामूहिक प्रयास हमेशा से ही महत्वपूर्ण रहे हैं परन्तु देखने में आ रहा है कि केवल पर्यावरण संरक्षण के नाम पर वृक्षारोपण होना काफी नहीं है। वर्तमान समय में जो उजड़ती हरियाली से तपिश बढ़ रही है और प्रदूषण जो मानव जीवन जीना दुश्वर हो गया है। आज समस्या लगाए गए पेड़- पौधों की देखभाल के प्रति गंभीर न रहने की ज्यादा है। प्रतिवर्ष वृक्षारोपण के नाम पर लगाए गए पौधे सिंचाई के अभाव में या तो सूख जाते हैं या वे पौधे जंगल में मवेशियों के चारागाह बन जाते हैं। प्रतिवर्ष सरकारी, शैक्षिक या सामाजिक संस्थाओं की लापरवाही के कारण बाकायदा अभियान चलाकर रोपे गए पेड़ भी सूख जाते हैं, जबकि वन क्षेत्रों में नहीं गांवों-शहरों में भी निर्माण कार्यों के कारण पेड़ों की कटाई निरंतर जारी है। एक ओर बढ़ती आबादी के कारण शहरी इलाकों में आवासीय क्षेत्रों का विस्तार हो रहा है तो दूसरी ओर गांवों-कस्बों में भी जमीनी जीवनशैली में बदलाव आ रहा है। ज्ञातव्य है कि वन विभाग की ओर से हर वर्ष नर्सरी तैयार कर वन क्षेत्रों में पौधे रोपे जाते हैं, पर लक्ष्य से दोगुनी संख्या में पौधे रोपने बावजूद काटे भी जाते हैं। कटे पेड़ों की तुलना में नए पेड़ कम ही लग पाते हैं, जिसके कारण वन क्षेत्र संरक्षित करना भी आसान नहीं है, परन्तु देशभर में वन हानि रोकने के प्रयास गंभीरता से किए जा रहे हैं।

देशभर में छ: जुलाई से प्रारम्भ होने वाले “एक पेड़ प्रकृति मां के नाम” अभियान से जुड़कर अपने खेत-खलिहानों, उद्यानों और घर के आंगन को हराभरा बनाकर प्रकृति संरक्षण में हम सभी भागीदार बन सकते हैं। असल में प्रकृति के अंधाधुंध दोहन के कारण खत्म हो रही हरियाली को पोसने के मोर्चे पर पौधरोपण संग निजी जुड़ाव और जवाबदेही का यह भाव वाकई सहायक सिद्ध हो सकता है। अपनी प्रकृति मां के नाम एक पेड़ लगाने को प्रेरित करने वाला यह अभियान वृक्षों को बचाने वाली व्यावहारिक और प्रेरणादायी , सार्थक पहल है। धरती माता के आंगन को हरा भरा रखने वाली संवेदनासिक्त अभियान है। एक पेड़ मां के नाम अभियान मानवीय मन का बहुत व्यावहारिक सा पक्ष है क्योंकि इससे व्यक्तिगत जुड़ाव के बाद संरक्षण का भाव और प्रबल हो जाता है। यही जुड़ाव प्रकृति को संरक्षित करने वाले भाव-चाव का कभी ना डिगने वाला आधार बन सकता है।

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